उमेश जोशी पाँच राज्यों में काँग्रेस की शर्मनाक हार से हरियाणा के काँग्रेसियों को सबक लेना चाहिए। लेकिन ढिठाई के पैमाने पर हरियाणा के काँग्रेसी पूरे देश में नंबर वन हैं। ऐसी घड़ी में, जब काँग्रेस की लोकप्रियता का ग्राफ धरातल के पास है, एकजुटता से काम करना चाहिए। खेमेबाजी खत्म कर बंद मुट्ठी की तरह एकजुट दिखना चाहिए। लेकिन, कोई काँग्रेसी अपनी चौधर नहीं छोड़ना चाहता। हरियाणा काँग्रेस को अभी तक लग रहा था कि इनेलो लगभग खत्म हो चुकी है। जननायक जनता पार्टी ने किसान आन्दोलन के दौरान अपनी साख गँवा दी है। मैदान में अब सिर्फ दो पार्टी बीजेपी और काँग्रेस रह गई हैं। बीजेपी से नाराज मतदाता कहाँ जाएगा? उसके पास काँग्रेस के अलावा कोई विकल्प नहीं है। इस तरह अगला चुनाव काँग्रेस जीत जाएगी। इसी भ्रम में काँग्रेस के सारे नेता जी रहे हैं। यही वजह है कि सरकार की नीतियों का विरोध करने के लिए कोई नेता घर से बाहर नहीं निकल रहा। उन्हें लगता है कि जनता प्लेट पर कुर्सी थमा देगी। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अक्तूबर 2019 में विधानसभा चुनावों के करीब दो साल बाद विपक्ष की भूमिका निभानी शुरू की और ‘विपक्ष आपके द्वार’ यात्रा निकाल कर राज्य के अलग अलग हिस्सों में जनता के बीच पहुँच रहे हैं। कुछ दिन पहले चौथी यात्रा निकाली थी। यह राजनीतिक कार्यशैली बीजेपी की है जिसे हुड्डा ने अपना लिया। अब हुड्डा जी को कौन समझाए कि अच्छे और असली विपक्ष को सप्ताह में सातों दिन चौबीसों घंटे जनता के द्वार पर रहना पड़ता है। मीडिया की तरह विपक्ष भी जनता की आँख बन कर सरकार की गतिविधियों पर हर पल नजर रखता है। ऐसी भूमिका में हरियाणा का विपक्ष कभी नजर नहीं आया। दिलचस्प बात यह है कि हुड्डा जनता के बीच यह साबित करना चाहते हैं कि हरियाणा में विपक्ष का मतलब सिर्फ भूपेंद्र सिंह हुड्डा हैं। जनता का कोई एक व्यक्ति हुड्डा से सवाल करता है और हुड्डा जवाब देते हैं। लब्बोलुआब यह है कि हुड्डा इस यात्रा की आड़ में मुख्यमंत्री की कुर्सी का अपना दावा मजबूत कर कुमारी सेलजा को हाशिये पर धकेलना चाहते हैं। कुछ दिनों से, खास तौर से ऐलनाबाद उपचुनाव के समय से कुमारी सेलजा काफी मजबूत दिख रही हैं और अगले मुख्यमन्त्री के लिए उनके नाम की चर्चा भी है। हुड्डा ने खुद को कुमारी सेलजा से बड़ा नेता दिखाने के किए ‘विपक्ष आपके द्वार’ यात्रा का स्वांग रचा है। हरियाणा के कॉंग्रेसियों को यह तो समझ आ गया होगा कि मतदाता का मूड भाँपना बहुत मुश्किल है। उत्तर प्रदेश में ऊपरी तौर पर अखिलेश यादव की स्थिति काफी मजबूत दिख रही थी। अखिलेश के मजबूत होने का अर्थ है बीजेपी कमजोर हो गई है। लेकिन 10 मार्च को जब नतीजे आए तो सभी चौंक गए। काँग्रेसियों के पैरों तले जमीन खिसक गई। ऊपर जो हवा थी उसके उल्ट नतीजे आए। कोई ताज्जुब नहीं है, हरियाणा में भी ऐसा ही हो जाए। इसके अलावा पंजाब में आँधी बन कर आई आम आदमी पार्टी का अब अगला लक्ष्य हरियाणा और हिमाचल प्रदेश हैं। हरियाणा से सटे पंजाब और दिल्ली दोनों राज्यों में आम आदमी पार्टी सत्ता पर काबिज है। हरियाणा के मतदाताओं पर दोनों राज्यों का असर पड़ने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। बीजेपी का मतदाता पार्टी के प्रति पूरी तरह समर्पित है। उसके वोट बैंक में सेंध लगाना लगभग नामुमकिन है इसलिए आम आदमी पार्टी सिर्फ काँग्रेस को नुकसान पहुंचाएगी। ऐसी स्थिति में बीजेपी को ही फायदा होगा। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आम आदमी पार्टी (आप) की पंजाब में अप्रत्याशित कामयाबी से प्रभावित होकर कुछ छोटे बड़े नेता उसका दामन थामेंगे। हर पार्टी में कुंठित नेता और कार्यकर्ता होते हैं। वे अपनी राजनीतिक सम्भावनाएँ तलाश करने के मकसद से दूसरा दरवाज़ा ढूंढ़ते हैं इसलिए इस बात से हैरान नहीं होना चाहिए कि बीजेपी और काँग्रेस के कुछ लोग आम आदमी पार्टी में जाएँगे। हालात इशारा कर रहे हैं कि अगले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को कड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ेगा। अब वो राजनीतिक समीकरण नहीं रहे जो 10 मार्च से पहले थे। पाँच राज्यों में दुर्गति और आम आदमी पार्टी की दो पड़ोसी राज्यों में दमदार उपस्थिति ने काँग्रेस को नई जमीन तैयार करने के लिए मजबूर कर दिया है। हरियाणा के काँग्रेस नेता अब भूल जाएँ कि चुनावों में राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी को करिश्मा कर देंगे। अभी तक पूरी काँग्रेस का भार ढो रहे गांधी परिवार का करिश्मा खत्म हो गया है। उत्तर प्रदेश के नतीजों से तो यही लगता है कि प्रियंका गांधी का जादू भी काम नहीं कर रहा है। अभी तक काँग्रेसियों में यह भ्रम था कि प्रियंका गाँधी काँग्रेस में जान फूँक सकती हैं; सभी नेता उसमें दादी इंदिरा गाँधी की छवि देख रहे थे। लेकिन, वह भ्रम भी टूट गया। प्रियंका गाँधी गाँव गाँव गई, पुरजोर अपील की, लेकिन मतदाताओं को काँग्रेस की तरफ़ नहीं मोड़ पाईं। काँग्रेस नेताओं को घर से बाहर निकल कर सड़कों पर आंदोलन करने की आदत नहीं रही। सभी नेता हाथ पर हाथ धर कर कोई करिश्मा होने का इंतजार करते रहते हैं। पार्टी में ऐसे नेताओं की भरमार है जो गांधी परिवार की कृपा से कुर्सी हासिल कर उसका सुख भोगना चाहते हैं। ऐसे आराम पसंद और संघर्ष से कोसों दूर रहने वाले नेता कैसे विजय दिला पाएंगे। यदि गाँधी परिवार सचमुच हरियाणा में काँग्रेस की स्थित मजबूत करना चाहता है तो उसे कड़े फैसले करने होंगे। पार्टी को परिवारवाद की चहारदीवारी से बाहर निकालना होगा। नया जनाधार तैयार करने के लिए पहली पंक्ति के नेताओं को स्वार्थों से ऊपर उठ कर कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। उम्रदराज नेताओं को सिर्फ सलाहकार की भूमिका तक सीमित करना होगा। उन्होंने पूरे जीवन सत्ता सुख भोगने का ठेका नहीं ले रखा है। नई पीढ़ी को आगे आने का अवसर देना होगा क्योंकि मौजूदा नेताओं से कड़ी मेहनत और संघर्ष की उम्मीद करना बेमानी होगा। Post navigation हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल को मिला कोविड-19 कमिटमेंट अवॉर्ड मुख्यमंत्री रजिस्ट्री घोटाले पर लीपापोती करने की बजाय घोटाले की जांच हाईकोर्ट के सिटिंग जज से करवाये : विद्रोही