खुशी की होली…….

राजकुमार अरोड़ा गाइड

होली खुशी का त्यौहार,सब को अपना बनाने का पर्व, दुर्गणों को ,बुराइयों को भूल,सद्गुण व अच्छाई अपनाने के गर्व की अनुभूति!खुशी तो हमारे मन का एहसास है, भावनाओं कीअभिव्यक्ति है।अपनी सामर्थ्य के प्रति भ्रामक धारणा व वास्तविकता को स्वीकार न करने की प्रवर्ति खुशी की राह में सबसे बड़ी बाधा है,कोई कभी भी सर्वगुणसम्पन्न नहीं हो सकता।अपनी क्षमता का आकलन हमें खुशी देता है व एक भी अक्षमता का एहसास खुशी से दूर कर देता है,गर इसी को स्वीकार कर लें या दूरकर लें तो खुशी फिर से वापस! जब खुश हैं,खुशी महसूस कर रहे हैं तो हर दिन त्यौहार है,खास है,होली,दीवाली सदृश!

जब उत्पन्न परिस्थितियां अपने बस में नहीं हैं, तो उनमें खुशी ढूंढने का,उसे अच्छे से मनाने काअवसर समझ  लेंगे,तो हमारा जीवन खुशियों से भर जायेगा!इसके विपरीत यदि बच्चों को छोटी छोटी बात पर बार बार झिड़कने व बीवी से भीकिसी भी बात पर उलझना व किचकिच मचाना,टोकाटाकी करना शुरुआत किसी की तरफ से हो,घर में कलह का ही वातावरण हो गया,सारी की सारी खुशियां काफ़ूर!घर में खुशी का,आपसी विश्वास का माहौल न हो तो होली,दीवाली भी मुहर्रम लगती है,घर घर नहीं,मकान जैसा लगता है,जिसमें कुछ प्राणी ईंट सीमेंट से बने एक ढांचे में रहते हैं,जिसमें ढल नहीं पाये!खुशियां सहेजने में समय लगता है बिखरने में कुछ क्षण। 

खुशी तो हमारे मन की ही उपज है,उपजती भी अंदर से ही है।यदि तेज़ मिर्च लग रही हो थोड़ा सा गुड़ उसके एहसास को शांत कर देता है,बसअपने अंदर से किसी के प्रति घृणा, नकारात्मकविचार नहीं रखे तो खुद को भी अच्छा लगेगा वक्रोध भी नहीं आयेगा।मन खुशी के एहसास से भर जाएगा।

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