उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव-2022 पर विशेष श्रृंखला-9

अमित नेहरा

लेख लिखे जाने तक यूपी में मतगणना जारी है, अभी तक कुल 403 सीटों में से बीजेपी गठबंधन 257 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है जबकि समाजवादी पार्टी गठबंधन 137 सीटों पर आगे चल रहा है। अंतिम आंकड़ों में कोई खास फेरबदल हो पायेगा, इसकी संभावना बेहद कम है। बीजेपी को लगभग दोगुनी सीटों पर बढ़त है अतः उत्तरप्रदेश में बीजेपी की दोबारा सरकार बनना तय है।

इन रुझानों से साबित हुआ है कि विभिन्न एजेंसियों द्वारा किये गए एग्जिट पोल सही साबित हुए हैं। जबकि चुनाव के दौरान अपने यूपी दौरों, अपने पत्रकार मित्रों से हुई वार्ताओं, सभी राजनीतिक दलों से हुई बातचीत और प्रदेश में बह रही राजनीतिक बयार के आधार पर किया गया आकलन गलत निकला। इसे मानने में मुझे कोई गुरेज नहीं है। कई बार हवा का रुख पहचानने में गलती हो जाती है और यूपी का आकार और जनसंख्या इतनी बड़ी है कि इसे भाँपना बड़ा मुश्किल है। खैर भविष्य में इस तरह के आकलन में और सावधानी बरती जाएगी।

हालांकि बीजेपी 2017 की तरह बम्पर जीत तो हासिल नहीं कर रही लेकिन वह स्पष्ट रूप से स्पष्ट बहुमत की ओर अग्रसर है। एंटी इनकम्बेंसी और तमाम तरह की बाधाओं के बावजूद बीजेपी का दोबारा सत्तासीन होना बहुत कुछ कहता है। इस पर काफी समय तक विश्लेषण होता रहेगा। फिलहाल तो कहा जा सकता है कि यूपी की अधिकांश जनता ने बीजेपी और बीजेपी उम्मीदवारों में आस्था व्यक्त की है। दूसरा बसपा ने एक तरह से इन चुनावों में आत्मसमर्पण सा कर दिया और पार्टी सुप्रीमो मायावती चुनावों में कहीं कोई खास उपस्थिति नहीं दिखाई। बसपा का वोट बैंक किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया और बीजेपी इस बड़े तबके को अपने साथ लाने में कामयाब हो गई। इसके साथ-साथ फ्री राशन ने भी दोबारा शासन लाने में महती भूमिका निभाई है। सबसे बड़ी बात तो बीजेपी का इलेक्शन मैनेजमेंट बेहतर रहा। बीजेपी ने अपने साधन और संसाधन इस चुनाव में झौंक दिए नतीजा सामने है।

उधर समाजवादी पार्टी ने कई दलों ने गठबंधन किया, इसमें राष्ट्रीय लोकदल, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी, महान दल, राष्ट्रीय जनवादी पार्टी, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, अपना दल (कमेरावादी), गोंडवाना पार्टी सहित अन्य दल शामिल थे। इस गठबंधन का नेतृत्व अखिलेश यादव कर रहे थे। वे ही यूपी में विपक्ष का चेहरा बने। वे ही सपा गठबंधन के मुख्य रणनीतिकार और स्टार प्रचारक थे। उनके साथ जयंत चौधरी, ओमप्रकाश राजभर, स्वामी प्रसाद मौर्य आदि कुछ ही नेता थे। इन सभी ने अपना सर्वश्रेष्ठ तो दिया लेकिन ये सभी मिलकर भी बीजेपी का मुकाबला नहीं कर पाए।

सपा गठबंधन ने मुद्दे तो काफी पकड़े जिनमें महंगाई, कोविडकाल की दुर्दशा, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की बिगड़ी सूरत, किसानों की समस्याएं व आवारा पशुओं का आतंक आदि प्रमुख थीं। लगता है या तो गठबंधन इन्हें डिलीवर करने में असमर्थ रहा या जनता को इन पर विश्वास नहीं हुआ। गठबंधन राज्य की जनता में फैली निराशा और हताशा को अपने वोटों में तब्दील करने में नाकामयाब रहा।

अब अगले पांच साल बीजेपी प्रदेश की जनता पर अपनी पकड़ कैसे बनाये रखेगी और विपक्ष इस दौरान धरातल पर रहकर कैसे जनता को अपने पाले में लाएगा यह देखना दिलचस्प रहेगा।

चलते-चलते

यूपी में बीजेपी की इस आंधी में विपक्षी पार्टियों के बड़े-बड़े बरगद गिर गए हैं, लेकिन कुछ भाजपा दिग्गज भी अपनी जमीन नहीं बचा पाए हैं. ऐसे ही उम्मीदवारों में एक नाम संगीत सोम का भी है। संगीत सोम ने मुजफ्फरनगर कांड को बीजेपी के पक्ष में भुनाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और वे यूपी की सरधना सीट से बीजेपी के दो बार विधायक रहे हैं। संगीत सोम इस बार अपने प्रतिद्वंदी और सपा-रालोद गंठबंधन के प्रत्याशी अतुल प्रधान से हार गए हैं।

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