-कमलेश भारतीय

राजनीति में किसी एक दल से बंधकर या आस्था प्रदर्शित कर राजनीति करने का युग कब का बीत गया । अब तो राजनीति में रहना है तो दल बदल कर प्यारे वरना ये राजनेता जीने नहीं देंगे । अभी देखिए न कि रीता बहुगुणा जोशी जोकि भाजपा की इलाहाबाद से संसद हैं और सन् 2017 तक उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की प्रदेशाध्यक्ष थीं लेकिन ऐन मौके पर कांगेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने में देर नहीं लगाई और मजे की बात कि लखनऊ कैंट से भाजपा ने टिकट भी दे दिया जहां उनका मुकाबला मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव से था लेकिन वे जीत गयीं । इसके बाद रीता बहुगुणा को इलाहाबाद से लोकसभा के चुनाव में उतारा गया । वे खुशकिस्मत रहीं कि जीत गयीं । आपको याद दिला दूं कि इनके पिता हेमवती नंदन बहुगुणा कभी उत्तर प्रदेश के कांग्रेस के राज में मुख्यमन्त्री थे और इलाहाबाद ही इनका लोकसभा का चुनाव क्षेत्र था जहां उन्हें अमिताभ बच्चन ने हराया था क्योंकि ये भी आपातकाल के बाद कांग्रेस छोड़कर चले गये थे और इन्हें भारी मतों से अमिताभ बच्चन ने हराया था ।

यह बहुगुणा जोशी परिवार दलबदल के खेल में पारंगत हो चुका है । उत्तराखंड में रीता बहुगुणा जोशी के भाई विजय बहुगुणा ने भी दलबदल कर सत्ता पाई थी । बाद में इनके बेटे उत्तरकाशी आपदा के समय हेलीकॉप्टर पर पिकनिक मनाने से चर्चित हुए तब विजय बहुगुणा की छ्ट्टी का आधार भी गया । इस तरह यह परिवार यह संदेश देता है कि राजनीति में रहने के लिए समय-समय पर दल बदलते रहो । हालांकि कांग्रेस की उत्तर प्रदेश की अध्यक्ष रहते समय इनके घर को आग के हवाले कर दिया था कथित तौर पर बसपा कार्यकर्त्ताओं द्वारा । पर फिर इन्हें लगा कि कांग्रेस को छोड़ना ही बेहतर है । अब भी सुना है कि ऑफर दिया था भाजपा नेतृत्व को कि मेरे बेटे मयंक को लखनऊ कैंट से भाजपा का टिकट दे दो , आप कहो तो मैं इलाहाबाद से सासंद पद से त्यागपत्र दे दूंगी लेकिन भाजपा नहीं मानी । आखिर कल इनका बेटा मयंक अपने परिवार की परंपरा का निर्वाह करते हुए सपा में अखिलेश यादव की उपस्थिति में शामिल हो गया जबकि रीता बहुगुणा विदेश में थीं और उन्होंने बयान जारी किया कि वे इस बात से अनजान हैं और वे भाजपा में ही रहेंगीं । यह हुई न बात । अगले लोकसभा चुनाव में देखी जायेगी कि कहां जाना है ।

यह दलबदल सभी जगह गुल खिला रही है । हरियाणा में सबसे ज्यादा दल बदलने वाले अनेक नेता हैं जिनमें चौ रणजीत चौटाला , राव इंद्रजीत , चौ वीरेंद्र सिंह , धर्मवीर सिंह आदि आदि । चौ रणजीत सिंह ने घर की पार्टी और मंत्रिपद छोड़ राजीव गांधी का हाथ पकड़ लिया था । फिर नाराज होकर कुछ समय भाजपा में रहे और बाद में फिर कांग्रेस मे आ गये । पिछला चुनाव निर्दलीय लड़े । अब मंत्री भी हैं । चौ वीरेंद्र सिंह ने भी बेटे बृजेंद्र सिंह को हिसार लोकसभा क्षेत्र से भाजपा टिकट दिलवाने के लिए ऑफर दी कि वे राज्यसभा सीट छोड़ देंगे और वे खुशकिस्मत रहे कि बात मान ली गयी ।

अब बृजेंद्र सिंह हिसार से भाजपा के सांसद हैं जबकि रीता बहुगुणा जोशी इतनी खुशकिस्मत न रहीं कि उनकी ऑफर मान ली जाती और मयंक को लखनऊ कैंट से टिकट मिल जाती । राजनाथ सिंह , वसुंधरा राजे खुशकिस्मत हैं जिनके बेटों को राजनीति में टिकट मिले लेकिन हमारे राव इंद्रजीत इतने खुशकिस्मत नहीं कि उनकी बेटी आरती को भाजपा से या कांग्रेस से टिकट न मिला । न्याय रथ भी कुछ न कर पाया । राजनीति ऐसे ही खेल दिखाती है । कितने तो दलबदल कर भी टिकट नहीं पाते जैसे उत्तराखंड के पूर्व मंत्री हरक सिंह रावत । कांग्रेस की सरकार गिरा कर भाजपा में गये लेकिन अब विधानसभा चुनाव में जब भाजपा में एक न चली तो भाजपा ने निष्कासित कर दिया । फिर जा खटखटाया कांग्रेस का दरवाजा और कांग्रेस ने शामिल तो कर लिया लेकिन टिकट न दी । हां , बेटी को टिकट दे दी तो यहां भी संतान के लिए कुर्बानी देनी पड़ी ।तो भैये राजनीति में रहना है

तो दलबदल कर प्यारे
वरना ये राजनेता
जीने नहीं देंगे
सिद्धांतों को ताक पर रख प्यारे
जहां भी टिकट मिले
वहां शामिल हो जा प्यारे ,,
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।

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