उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव-2022 पर विशेष श्रृंखला-6

अमित नेहरा

27 फरवरी को यूपी में अयोध्या, अवध और आसपास के 12 जिलों की 61 सीटों पर पांचवें चरण का मतदान सम्पन्न हुआ। पिछली बार इनमें से 51 सीटों पर बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टी अपना दल ने जीत हासिल की थी, जबकि सपा को पांच, कांग्रेस पार्टी को एक व बीएसपी को कोई भी सीट नहीं मिली।

जबकि दो सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों को जीत मिली। इनमें से एक चर्चित सीट कुंडा भी है जहां से रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया पिछले कई साल से लगातार विधायक रहे हैं। लेकिन इस बार इस चरण में परिस्थितियां बिल्कुल बदली हुई हैं।
इस चरण का मतदान धर्मनगरी अयोध्या-प्रयागराज-चित्रकूट की उस पट्टी में होने जा रहा है, जिसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी अपना गढ़ समझते रहे हैं, लेकिन अब यहां हालात यह हैं कि मुख्यमंत्री योगी को अयोध्या विधानसभा सीट से लड़ने का इरादा आखिरी क्षणों में त्यागना पड़ा और गोरखपुर वापस लौटना पड़ा। राम-मंदिर निर्माण के दौर में भी अयोध्या विधानसभा सीट बुरी तरह फँसी पड़ी है। मजेदार बात यह है कि बीजेपी, अयोध्या और निर्माणाधीन राम-मंदिर के नाम पर पूरे प्रदेश में वोट मांग रही है! इसके साथ ही इसी चरण में प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य को सिराथू में कड़े संघर्ष का सामना करना पड़ रहा है।

पांचवें चरण में खास बात यह है कि इसकी ज्यादातर सीटों पर राजे-रजवाड़ों या राजनीतिक रूप से मजबूत परिवारों का दबदबा रहा है व कुछ सीटों पर बाहुबली नेता प्रभावी हैं।

इसी कड़ी में राजा भैया हैं जो प्रतापगढ़ की भदरी रियासत से संबंध रखते हैं और अनेक रियासतों में उनकी रिश्तेदारी है वे कुंडा से लगातार छह बार जीत चुके हैं और साथ लगती बाबागंज सीट पर भी उनके चहेते उम्मीदवार को ही जीत मिलती रही है। लेकिन इस बार उनकी लड़ाई आसान नहीं दिख रही है। राजा भैया साल 1993 से लगातार निर्दलीय विधायक चुने जाते आ रहे हैं और सपा और बीजेपी के सहयोग से मंत्री बनते रहे हैं। पिछले ढाई दशक से सपा ने कुंडा में राजा भैया के सामने अपना कोई प्रत्याशी नहीं उतारा, जिसके चलते वो आसानी से कुंडा सीट से जीतते रहे हैं। लेकिन, वर्ष 2013 में सीओ जियाउल हक हत्याकांड में उनके साथ नामजद रहे गुलशन यादव को सपा ने इस बार उनके सामने खड़ा कर दिया है, इससे राजा भैया की डगर मुश्किल हो गई है।

उधर, कभी संजय गांधी के बेहद खास रहे अमेठी राजघराने के डॉक्टर संजय सिंह अनेक दफा गांधी परिवार के सदस्यों के लिए अमेठी की सीट खाली कर चुके हैं। इस बार वे इसी अमेठी सीट से कांग्रेस पार्टी से नहीं बल्कि बीजेपी से विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। वर्तमान में इस सीट पर उनकी पहली पत्नी गरिमा सिंह विधायक हैं जिन्हें साल 2017 में बीजेपी ने टिकट दिया था और उन्होंने रोचक मुकाबले में कांग्रेस उम्मीदवार और संजय सिंह की दूसरी पत्नी अमिता सिंह को हरा दिया था। संजय सिंह पिछला लोकसभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर सुल्तानपुर से लड़े थे जहां उन्हें बीजेपी उम्मीदवार मेनका गांधी ने हरा दिया था। उसके बाद संजय सिंह अपनी दूसरी पत्नी अमिता सिंह के साथ बीजेपी में शामिल हो गए। इस बार अमेठी पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी।

इसी तरह प्रतापगढ़ में भी राजनीति राजघरानों के ही इर्द-गिर्द घूमती रही और कालाकांकर का राजपरिवार हमेशा कांग्रेस के साथ रहा लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में पूर्व सांसद और राजा दिनेश सिंह की बेटी रत्ना सिंह कांग्रेस छोड़ बीजेपी में चली गई। रत्ना सिंह इस समय बीजेपी के पक्ष में वोट करने के लिए अपील कर रही है।

इसी कड़ी में कैसरगंज से बीजेपी सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह का इस इलाके में अच्छा-खास प्रभाव है और आसपास के जिलों की ज्यादातर सीटों पर उनकी इच्छा से उम्मीदवारों की जीत तय होती रही है। लेकिन इस बार ब्रजभूषण की प्रतिष्ठा भी दाँव पर है और सपा उन्हें कड़ी चुनौती दे रही है।

इस चरण में प्रयागराज को छोड़ दिया जाय तो यह पूरा क्षेत्र मूलतः खेती-किसानी का ही इलाका है। पूरे प्रदेश की तरह राज्य सरकार ने बिना किसी नीति के, किसानों के खेतों और फसलों को सांडों और आवारा जानवरों के हवाले कर दिया। इसके चलते पिछले पाँच सालों से गाँवों में हाहाकार मचा रहा, मगर कोई सुनने वाला नहीं था। इस तबाही के सबसे ज्यादा शिकार छोटे किसान हुए। इसके चलते किसानों में बीजेपी के प्रति भारी नाराजगी है।

रही बात शहरी क्षेत्र प्रयागराज की, यह ऐतिहासिक तौर पर उत्तर भारत के शिक्षा और प्रतियोगी परीक्षाओं के सबसे बड़े केंद्रों में रहा है। लेकिन आज यहां लाखों युवा सरकार से रोजगार माँग रहे है। इसी कड़ी में रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड के परिणाम में अनियमितता का आरोप लगाते हुए अभ्यर्थी लंबे समय से आंदोलनरत थे, अचानक 25 जनवरी 2022 को सैकड़ों प्रतियोगी छात्र जुलूस बनाकर सरकार विरोधी नारेबाजी करते हुए वे प्रयाग स्टेशन पहुंच गए। इन पर पुलिस ने बर्बर तरीके से लाठीचार्ज कर दिया। बेकसूर युवाओं को शहर के हॉस्टलों और लॉजों के दरवाजे तोड़-तोड़कर बाहर निकाल कर बेदर्दी से मारा गया। इस पुलिसिया जुल्म के सैंकड़ों वीडियो वायरल हो गए। इससे पूरे प्रदेश के युवाओं में प्रदेश सरकार के खिलाफ जबरदस्त आक्रोश व्याप्त हो गया। विपक्ष ने भी सरकार की इस बर्बर कार्यवाही की भर्त्सना की। सरकार ने आनन फानन में छात्रों पर लाठीचार्ज करने वाले छह पुलिसकर्मियों को सस्पेंड करके डेमेज कंट्रोल कंट्रोल करने का प्रयास किया लेकिन इसका प्रभाव सरकार के खिलाफ वोटिंग में दिखेगा।

कुल मिलाकर यह देखना दिलचस्प रहेगा कि जनता के सरकार के इतने विरोध के सामने बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग कितना टिक पायेगी ?

इस चरण में भी सीधा-सीधा मुकाबला बीजेपी और सपा के बीच है, जबकि बीएसपी और कांग्रेस सत्ता की दौड़ से लगभग बाहर ही हैं

चलते-चलते
पांचवें चरण में अपना दल के संस्थापक स्वर्गीय सोनेलाल पटेल के परिवार में चल रही राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई की भी परीक्षा होगी।

मूल अपना दल इस समय किसी के पास नहीं रह गया है। सोनेलाल परिवार में अब दो नए दल हैं। अपना दल (सोनेलाल) का नेतृत्व सोनेलाल की बेटी व केंद्रीय राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल कर रही हैं जिसका विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ गठबंधन है। बीजेपी ने अनुप्रिया को कुल 17 सीटें दी हैं। जिनमें से सबसे अधिक सात सीटें पांचवें चरण की हैं। इसके चलते यह चरण अनुप्रिया के लिए बेहद अहम है।

वहीं सोनेलाल की पत्नी कृष्णा पटेल, अपना दल (कमेरावादी) की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और उन्होंने सपा के साथ गठबंधन किया है। कृष्णा पटेल प्रतापगढ़ सदर सीट से खुद चुनाव मैदान में हैं। उनकी दूसरी बेटी पल्लवी पटेल सपा के सिंबल से उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के खिलाफ सिराथू में ताल ठोक रही है।

सबसे बड़ी बात यह है कि जहाँ बीजेपी ने अपना दल (सोनेलाल) को कुल 17 सीटें देकर अनुप्रिया को अपने ऊपर हावी होने का मौका दिया है तो वहीं समाजवादी पार्टी ने अपना दल (कमेरावादी) को केवल चार सीटें देकर यह दिखाने का प्रयास किया है कि वह मोलभाव करने में बेहद सख्त है। साथ ही सपा हवा का रुख भी बेहतर तरीके से पहचान रही है!

जारी………… (लेखक वरिष्ठ पत्रकार, राजनीतिक विश्लेषक, लेखक, समीक्षक और ब्लॉगर हैं)

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