भाजपा पहले ही भूपेंद्र यादव को मैदान में उतार कर दे चुकी है संकेत
गुजरात के साथ हरियाणा में नेतृत्व बदलाव की संभावना
भूपेंद्र यादव को बनाया जा सकता है नया मुख्यमंत्री
राव इंद्रजीत सिंह ने भी अपनी बेटी आरती राव को मैदान में उतारकर अपने मंसूबे साफ कर दिए

अशोक कुमार कौशिक

क्या वास्तव में ही उत्तर प्रदेश के चुनावी परिणाम गुजरात और हरियाणा में नेतृत्व परिवर्तन की के साथ अहीरवाल की राजनीति की दशा व दिशा तय करेंगे यह बात आपको भले ही अटपटी लगे पर हां जी, यह घटने जा रहा है। इसके संकेत (भाजपा व राव राजा) दोनों ओर से मिलने शुरू हो गए हैं। अतीत में भाजपा ने दक्षिणी हरियाणा की राजनीति में राव इंदरजीत के वर्चस्व को कम करने की रणनीति के तहत भूपेंद्र यादव को मैदान में उतार कर अपने मंसूबे जाहिर कर दिए थे। अब उनकी हरियाणा में ताजपोशी की चर्चाएं सुनने को आ रही है। इधर रामपुरा हाउस के सिरमौर राव इंद्रजीत सिंह ने भाजपा की रणनीति की भनक भांपते हुए अपनी बेटी आरती राव को नांगल चौधरी के नायन गांव में एक जनसभा करवा कर अपने इरादे स्पष्ट कर दिए।

राव इंदरजीत सिंह काफी समय से भाजपा में घुटन महसूस कर रहे समय-समय पर वह इसका इजहार भी करते हैं अब उन्होंने अपनी बेटी आरती राव को मैदान में उतारकर दिया । वह आरती राव के माध्यम से उन नौजवानों में भी अपनी पैठ मजबूत करना चाह रहे हैं जो उनके उम्र दराज होने के कारण उनसे दूर रहते हैं। युवा पीढ़ी और बुजुर्गों के तालमेल से भावी राजनीति की ओर पग बढ़ा रहे हैं।

इसके बाद गत दिनों जिला महेंद्रगढ़ के गांव सेहलंग गांव में भाजपा को आईना दिखाने का काम किया उन्होंने अपने वक्तव्य में स्पष्ट रूप से कहा कि भाजपा अब 40 के आसपास भी सीटे लेने सफल नहीं होती दिखाई दे रही 70 बार का नारा तो बहुत बड़ी बात है। इस बयान ने तो राजनीति क्षेत्र में एक हलचल मचा दी। अब राजनेता तरह-तरह का आकलन लगा रहे है। भाजपा कांग्रेस के साथ दूसरे दलों में उनके वक्तव्य के बाद छटपटाहट देखने को मिल रही है।

इसके बाद उन्होंने दक्षिणी हरियाणा में आजकल अहीर रेजिमेंट गठन की मांग को लेकर चल रहे आंदोलन को अपना समर्थन देखकर अपने मंसूबो ओर चाल का खुला इजहार कर दिया। रामपुरा हाउस के नेता ने अपने इस वक्तव्य के माध्यम से भाजपा को पसोपेश में अवश्य डाल दिया है। उनके विरोधी अब उन पर यह कटाक्ष तो कर ही रहे हैं कि जब वह केंद्र में रक्षा राज्य मंत्री थे तब इसके बारे में प्रयास क्यों नहीं किए। पर यह सर्वविदित है कि अहीरवाल में अहीर रेजिमेंट का गठन एक सेंटीमेंटल मामला है जिसको को भुनाने वह गठन कराने के लिए हर कोई ललायित है।

राव राजा के बारे में यह सर्वविदित है कि वह कोई भी आयोजन बगैर किसी प्रयोजन के नहीं करते । उनका हर वक्तव्य बड़ा सोच समझकर कुशल रणनीति के तहत दिया जाता है। उनकी पीड़ा सर्वविदित है कि उनके नाम पर दक्षिण हरियाणा में 2014 मिल लहर बनाई और 2017 के चुनाव में उनको मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित किया गया था, पर कांग्रेस की तरह हीं उनको भाजपा में भी ठगा गया। अहीरवाल में भी कांग्रेश शासन के समय भूपेंद्र सिंह हुड्डा की जाट राजनीति की खुलकर मुखालफत देखने को मिली जिसके बाद राज लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा की राजनीति में पहली बार हरियाणा में भाजपा को अपने बलबूते पर सरकार बनाने का मौका मिला। भाजपा वाले भले ही इसमें मोदी का जादू मानते हो लेकिन यह भी सर्वविदित है कि इस जादू को प्रभावशाली बनाने में रेवाड़ी की सैनिक रैली की एक अहम भूमिका रही थी। इस रैली के बाद लोकसभा चुनाव में भाजपा और मोदी का तिलिस्म सा बन गया था।

अपनी इस घुटन और पीड़ा का इजहार उन्होंने समय-समय पर सार्वजनिक तौर पर इशारों इशारों में किया है भले ही वह मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के साथ किसी सांझा जनसभा की बात रही हो या दोगडा अहीर की। राव राजा के बारे में यह भी सर्वविदित है कि वह हवा का रुख आपने में माहिर है किसान आंदोलन के बाद हरियाणा की राजनीति में भाजपा के प्रति गहरी नाराजगी पनप गई जिसका उन्हें आभास भाजपा के साथ राव राजा को हो गया। इसके फलस्वरूप ही रामपुरा हाउस दिग्गज ने अपने राजनीतिक पाशे चलने शुरू कीये।

सुनने में तो यह आ रहा है कि यदि भाजपा को उत्तर प्रदेश में आशातीत सफलता नहीं मिलती और वह सरकार बनाने में रुक जाती है तो राव राजा अपने उन कांग्रेसी मित्रों के सहारे जो आज भाजपा में सांसद हैं को लेकर हरियाणा की राजनीति में कोई बड़ा धमाका कर सकते हैं। उनके कांग्रेसी मित्रों के साथ आज भी मधुर संबंध है। सभी मिलकर कोई नया संगठन या क्षेत्रीय दल बना सकते हैं इसके लिए उन्हें जाट नेता विरेंद्र सिंह डूमरखा का भी सहयोग मिल सकता है। यदि ऐसी परिस्थिति बनती है तो भाजपा के साथ साथ कांग्रेस, दूसरे क्षेत्रीय दलों को भी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। यह दिगर बात है की चौधरी ओम प्रकाश चौटाला की इनेलो से उनका गठबंधन भी हो जाए।

अब बात करें भारतीय जनता पार्टी की तो यदि उसे उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणामों में आशा के अनुरूप परिणाम मिलने पर वह राव राजा इंदरजीत सिंह को बाहर का रास्ता दिखा सकती है या उन्हें पार्टी छोड़ने पर मजबूर कर सकती है। सरकार व पार्टी की ओर से उनके अतीत में कांग्रेस सरकार के कार्यकाल के समय घोटाले की वह कमजोरियों की बारीकी से खुफिया जांच की जा रही है। उनकी हर कमजोरी पर खुफिया जानकारी एकत्रित की जा रही है। इन्हीं जानकारियों के माध्यम से उनको धत्ता दिखाई जा सकती है। ऐसा करने के लिए भाजपा पूर्ण तैयारी में जुटी हुई है।

यही नहीं एक संभावना और भी बन रही है । वह आज नहीं बन पाई तो कल बन सकती है ।

भाजपा के विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार भाजपा भूपेंद्र यादव को मैदान में उतारने के बाद अब राव इंद्रजीत सिंह के पर काटने की तैयारी में है।

भाजपा कैडर की पार्टी है और वहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नीति के अनुरूप राजनीति होती है। क्योंकि राव इंदरजीत सिंह कांग्रेसी कल्चर के व्यक्ति हैं और आरएसएस कैडर से उनका कोई सरोकार नहीं है। मनोहर लाल खट्टर ने भाजपा के अपने सभी विरोधियों को किनारे लगा रखा है। मनोहर लाल खट्टर मुख्यमंत्री के तौर पर एकदम फ्लॉप मुख्यमंत्री रहे हैं, ऐसे में मुख्यमंत्री बदला तो पार्टी में भी एक बैलेंस देखने को मिलेगा। वह अपनी गैर जाट राजनीति को ही अमलीजामा बनाए रखना चाहती है क्योंकि जाट बेल्ट में उसका मैदान साफ है। ऐसा माना जा रहा है कि इस मामले में ,ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर की पहचान वाले नेता भूपेंद्र यादव उपयुक्त उम्मीदवार के रूप में देखे जा रहे हैं। यदि ऐसा हुआ तो फिर प्रदेश और देश में हरियाणा का महत्व और बढ़ जाएगा।

भाजपा आलाकमान किसी भी प्रदेश में चुनाव से साल दो साल पहले मुख्यमंत्री बदलने का काम अमूमन करती रहती है । हरियाणा का मामला यह है भूपेंदर यादव की ताजपोशी की जा रही है। यह जो हम आपको बता रहे हैं यह कोरी कल्पना नहीं है । इस मामले में पॉलिटिकल एक्सरसाइज भी हो रही बताई गई हैं । सच्चाई यह है कि अमित शाह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जितने विश्वस्त हैं उतने ही विश्वस्त जांचे परखे भूपेंद्र यादव भी हैं।

अब ऐसी स्थिति बन रही है कि भाजपा दक्षिणी हरियाणा से नया मुख्यमंत्री बनाकर अहीरवाल, फरीदाबाद, पलवल, मेवात जिलो के साथ जीटी रोड बेल्ट को जोड़कर इस जोड़ भाग पर आ रही है कि किसी खास वोट बैंक और खास ब्लॉक्स पर फोकस करके हरियाणा में फिर सरकार बनाई जा सकती है। लोकसभा के चुनाव हरियाणा विधानसभा के चुनाव से पहले होना भी हरियाणा के मामले में भाजपा के पहले भी काम आया है आगे भी आ सकता है। 2014 का उदाहरण हमारे सामने है । अत: बेसब्री से दस तारीख और राजनीतिक उखाड़ पछाड़ का इंतजार करिए ।