सब नातो से बड़ा नाता गुरु शिष्य का : कंवर साहेब जी

गुरुमुख ही गुरु का नाम रोशन करता : हुजूर कँवर साहेब जी
आज हुजूर कंवर साहेब जी महाराज का 75वां जन्मदिवस पर वार्षिक सत्संग में उमड़ेगी लाखों की तादाद मे साध संगत।
गुरू देता सबको है पर लेता कोई बड़भागी है : कंवर साहेब जी
गुरु आज्ञा हर पल कल्याणकारी व हितकारी : कंवर साहेब जी
जिसने गुरु को जीत लिया उसने समस्त जगत को ही जीत लिया।

भिवानी जयवीर फोगाट

01 मार्च सत्संग आत्मिक अनुशासन के साथ साथ नियमो में बंधना सिखाता है। इंसान भी वही है जो नियमो को मानता है क्योंकि नियमो को असुर प्रवृति के लोग ही भंग करते हैं। सेवादार सत्संग की सही तस्वीर प्रस्तुत करते हैं क्योंकि सेवा मनमुखता को परे हटा कर गुरुमुखता की और ही बढ़ते हैं। गुरु जी ने सेवादारों को सेवा संबंधी हिदायते और सत्संग संचालन हेतु निर्देश दिए। गुरु जी ने फरमाया कि गुरु सदैव शिष्य की भलाई की ही बात करता है लेकिन शिष्य कई बार गुरु की बात को अपने स्वार्थ के अनुसार ढालता है। गुरु के वचन को बुद्धि की तराजू पर नहीं तोल सकते बल्कि संतो के वचन की पालना तो केवल कोई करनी करने वाला गुरुमुख ही कर सकता है। गुरु की आज्ञा हर पल कल्याणकारी और हितकारी है। उन्होंने कहा कि सतगुरु के जैसा दाता नहीं है और याचक शिष्य से बढ़कर नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि गुरु की रहमत पाने के लिए तो छठी का दूध निक्सता है। गुरु के मार्ग पर चलने के लिए बाधाएं आती हैं। इस मार्ग पर चलने के लिए भगत को अनेकों परीक्षाएं पार करनी पड़ती हैं। जो इन परीक्षाओं में उत्तीर्ण हो जाता है उसे ही गुरु का संसर्ग मिलता है। जिसने गुरु को जीत लिया उसने तो समस्त जगत को ही जीत लिया लेकिन यह भी सत्य है कि गुरु तो सबको देता है लेकिन लेता कोई कोई ही है।

उन्होंने आज के दिन को महान दिन बताते हुए कहा कि आज राधास्वामी मत को सत साहित्य द्वारा फैलाने वाले और राधास्वामी मत के तीसरे गुरु महर्षि शिववृत लाल जी का जन्मदिन का विशेष दिन है और साथ ही साथ महाशिवरात्रि का पर्व भी है। उन्होंने कहा संतो का जन्मदिवस विशेष होता है और ऐसे में सत्संग का आयोजन होना तो और भी पावन कारज है। गुरु जी ने कहा कि मेहनत के बिना कुछ हासिल नहीं हो सकता। जैसे खिलाड़ी खेल में और विधार्थी शिक्षार्जन के लिए दिन रात मेहनत करता है और अपने अपने क्षेत्र में अभ्यास द्वारा मेरिट हासिल करता है वैसे ही भगत को भी भक्ति रूपी मेरिट में आने के लिए दिन रात अभ्यास की आवश्यकता है। गुरु जी ने कहा कि कहने को तो सब कहते हैं कि संचय में क्या रखा है लेकिन लगे हुए हैं सब के सब संचय करने में ही। उन्होंने कहा कि अगर झूठ कपट और ठगी बदी में धन कमाते हो तो वो जाएगा भी ऐसे ही। लगन और तपस्या से जो काम करोगे तो आपको उसका आनंद भी उतना ही आएगा। गुरु जी ने कहा कि पूत सपूत तो काहे कमाना और पूत कपूत तो क्या कमाना। उन्होंने कहा कि कभी भी हीन भावना और दुर्बल विचारो को मन में मत आने दो। महाराज जी ने कहा कि सेवक हो तो सदेव ही सेवकाई को महत्व दो क्योंकि सेवा से बढ़कर सच्ची भक्ति नहीं है। इस सेवा को केवल आश्रमों तक ही सीमित मत रहने दो इसे अपने घरों तक लेकर जाओ। अपने माता-पिता की भी ऐसे ही सेवा करो जैसे यहां संगत की करते हो। उन्होंने कहा की चाहे मंदिरों मस्जिदों गुरुद्वारों और आश्रमों में आरती मत गाना लेकिन यदि माता-पिता को सुख दे दिया तो आपको भक्ति संपूर्ण हो जाएगी। उन्होंने कहा कि गुरु और परमात्मा भी तभी राजी होगा जब माता पिता राजी रहेंगे। उन्होंने कहा कि धारणा यदि सुदृढ़ है तो आप नियमो के पक्के हो जाते हो और जो नियमो का पक्का है वो ही भगत है। उन्होंने कहा कि आपका अच्छा आचरण ही आपके पूर्वजों की निंदा करवाता है और आपका बुरा आचरण ही आपके पूर्वजों की निंदा करवाती है।

जीवनी हुजूर कंवर साहेब महाराज जी की

संत सतगुरू ने परम सन्त हुजूर कंवर साहेब जी महाराज के रूप में हरियाणा प्रान्त के जिला भिवानी के गांव दिनोद में, 2 मार्च 1948 को माता मुथरी देवी की कोख से जन्म लिया। आपके पिता का नाम चौ. सुरजा राम है। आपके जन्म के मात्र चार साल पश्चात ही आपके सिर से पिता साया उठ गया। एम.ए.बी.एड. तक शिक्षा प्राप्त की हुजूर ने और प्राथमिक शिक्षा गांव दिनोद में ही मिली। संत सतगुरु के अलावा कोई नही जानता था कि साधारण सा दिखने वाला यह आलौकिक बालक आगे चलकर अपनी ज्ञान रोशनी से विश्व के अज्ञान रूपी अंधेरे को दूर करेगा।

हुजूर का विवाह प्रचलित परम्पराओं के अनुसार अल्पायु मे ही माता सावित्री देवी के साथ 1964 में संपन्न हुआ। शिक्षा अर्जन पूर्ण होते ही आप शिक्षा विभाग में बतौर अध्यापक बन सेवाएं देने लगे। शिक्षा के साथ-साथ आपने घर बार व खेती का कार्य भी बखूबी संभाल कर सच्चे कर्म योगी होने का प्रमाण दिया।

आध्यात्मिक इतिहास स्पष्ट संकेत देता है कि संतो का संग कोई बिरला ही कर सकता है। 1976 में हुजूर महाराज जी ने पहली बार राधास्वामी आश्रम दिनोद में कदम रखा और 7 जुलाई 1977 में अपने गुरू से नाम की बख्शीश ले गुरू सेवा, भक्ति और सत्संग प्रेम की ऐसी मिसाल पेश की जिसका वर्णन किसी भी सुरत में नही किया जा सकता है। स्कूल में अध्यापन कार्य व आश्रम में गुरू की सेवा। दोनो कार्य बिना किसी कोताही के आपने पूर्ण कर्तव्यनिष्ठा से पूरे किए। गुरू के चरणों में रहते हुए आपने उच्च कोटि के भक्ति साहित्य का सृजन भी किया।

आपके द्वारा लिखित पुस्तक राधास्वामी नाम निजनाम व सदा की मुक्ति। जुई से जहान तक, प्रवचन संग्रह से राधास्वामी मत से जुडऩे वाले नए सत्संगियों के मन में उठने वाली प्रश्र श्रृखंला का हल चुटकी बजाते ही हो जाता है। आपकी पुस्तक सतगुरू प्रेम तो भक्ति साहित्य का अनमोल नगीना है। पुस्तक में संकलित उच्चकोटि के शब्द जहां गुरू के प्रति आपके प्रेम की पाक गवाही देते हैं वहीं भक्ति काव्य मे आपकी ओजस्वी पकड़ का एहसास भी करते हैं। 3 जनवरी 1997 को जब परमसंत ताराचन्द जी अपनी साध संगत को हुजूर महाराज जी के सत हाथों में सौप कर अंतरध्यान हो गए तब हर चेहरा शोकाकुल था पर आपके चेहरे में वही दीप्ती थी जो आपके सतगुरू में थी। 17 मार्च 1997 को आपने प्रधानाचार्य पद से स्वैच्छिक सेवानिवृति लेकर स्वयं को गुरू के कारज में पुर्णतया: समर्पित कर दिया। आज आपके सद वचनों से जीव जहां आध्यात्मिक सागर के गोते लगा रहे हैं वहीं आपके द्वारा समाज सुधार हेतु जारी नियम जीव की सामाजिक एवं आर्थिक उन्नति की सीढ़ी भी बने हैं। आपने नशा मुक्ति, सदाचार, मांसाहार त्याग, जल संरक्षण, पर्यावरण सरंक्षण जैसी सामाजिक मुहिम चलाकर कई कुरितियों को नेस्तानाबूद किया है। इसके अतिरिक्त आपने वर्तमान समाज की सबसे घिनौनी बिमारी कन्या भ्रूण हत्या के विरूद्ध प्रभावशाली अभियान चलाकर स्वयं को संत सिपाही रूप भी समाज को दिखाया।

गुरुमुख ही गुरु का नाम रोशन करता : हुजूर कँवर साहेब जी

संतमत के अनुसार गुरुमुख वो है जो गुरु के कार्य को आगे बढ़ाए। आपने इस उक्ति को अक्षरश: सत्य साबित किया। आज देश विदेश में फैली राधास्वामी आश्रम दिनोद की 44 शाखाएं और लाखों करोड़ों की संगत इस बात प्रमाण है कि आप संतमत में गुरूमुखता का अनुपम एंव अविस्मरणीय उदाहरण हैं।

You May Have Missed

error: Content is protected !!