उनकी पूण्य तिथि 26 फरवरी पर विशेष

सुरेश गोयल धूप वाला,
मीडिया प्रभारी, डॉ कमल गुप्ता, शहरी स्थानीय निकाय मंत्री, हरियाणा सरकार

वीर सावरकर ऐसे महान क्रांतिकारी थे , जिनकी स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका रही। उन्होंने अपनी वीरता, नीडरता , ओजस्वी वक्ता लेखन के रूप में अंग्रेजो के विशाल साम्राज्य को हिलाने व स्वन्त्रता प्राप्त करने में विजय हासिल की। वे आजादी की लड़ाई में अनेको युवकों के साथ अमीर शहीद मदनलाल ढींगड़ा के प्रेरणा स्त्रोत बने।

उनका आजादी के आंदोलन में अमूल्य योगदान रहा है । वे हिंदुत्ववादी व सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पोषक रहे। यही कारण रहा कि देश की आजादी के बाद भी वोट बैंक की राजनीति व तुष्टिकरण की नीति के कारण वह सम्मान नही मिल पाया जिसके वास्तव में वे हकदार थे। उन्हें अंग्रेजो ने कालापानी की सजा दी । वे भारत के महान क्रांतिकारी के साथ साथ इतिहासकार व समाज सुधारक के रूप में भी जाने जाते है।

वीर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र प्रान्त के नासिक जिले के भागुर में हुआ। उनके पिता का नाम दामोदर पंत सावरकर व माता का नाम राधाबाई सावरकर था। वे बचपन से ही उत्साही वीर बालक रहे। वे अपने नटखट स्वभाव के साथ साथ मेधावी छात्र भी थे। पढ़ाई में वे बहुत तेज थे।

अंग्रेजो की पराधीनता उन्हें बचपन से ही खटकती थी। वे छोटे-छोटे बालको को इकठ्ठा कर उनके समूह बनाकर अंग्रेजी सत्ता के खिलाप कुछ न कुछ सक्रियता रहती थी। अंग्रेजी सरकार द्वारा आये दिन उन्हें सरकार के खिलाप शाजिश रचने के रूप में फसाया जाता था। वे 12 वर्ष की अल्प आयु में ही पूरे गांव व आस -पास के क्षेत्र में काफी प्रसिद्ध हो गए थे ।

सावरकर ने हाई स्कूल के समय से ही उन्होंने अपनी राजनीतिक गतिविधियां तेज कर दी थी।

कानून की पढ़ाई के लिए वे यूनाइटेड किंगडम गए। पढ़ाई के साथ साथ वे भारत की पूर्ण स्वंत्रता के लिए इंडिया हाउस औऱ फ्री इंडिया जैसी संस्थाओ से अपने आपको जोड़ा । उन्होंने इसी दौरान अपनी प्रसिद्ध पुस्तक का प्रकाशन करवाया। पुस्तक के माध्यम से भारतीय जनमानस में स्वंत्रता के प्रति जागरूक करने का उनका उद्देश्य था। अंग्रेजी सरकार ने पुस्तक को प्रतिबंध कर दिया।

1910 में वीर सावरकर को गिरफ्तार कर लिया गया। जेल से छूटने पर वे भारत वापिस के दौरान उन्होंने फ्रांस में शरण लेकर अपनी गतिविधियों को तेज करने का निश्चय किया। अंतराष्ट्रीय कानून केउल्लंघन के कारण भारत लौटने पर उन्हें 50 साल की कठोर कारावास की दो आजीवन सजा सुनाई गई। उन्हें अंडमान निकोबार द्वीप समूह स्थित कालापानी की सजा दी गई । उस समय काला पानी की सजा बहुत बड़ा खोप था बहुत ही खूंखार अपराधियो को यहां रखा जाता था। जिनसे अंग्रेज बहुत ही भयभीत रहते थे। इन्हे यहां कठोर यातनाएं दी जाती थी। इन्हें नारियल का छिलका उतार कर कोल्हू में डालकर उसका तेल निकलवाया जाता था। जो बहुत ही मुश्किल भरा काम था। कोल्हू के बैल की तरह इन्हें चलाया जाता था। कई कई घण्टे हाथ से आटा पीसने की चक्की चलवाई जाती थी।

काला पानी की यातना एंव त्रासदी की कल्पना मात्र से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। हाथो में हथकड़ियां औऱ जंजीरो से बांध कर उन्हें रखा जाता था। उन्हें सेल्युलर जेल की तीसरी मंजिल की छोटी सी कोठड़ी में रखा गया था।

सावरकर को नही बताया गया था कि उनका बड़ा भाई भी इसी जेल में बंदी है।

वे 1911 से 1921 तक पोर्टब्लेयर की जेल में बंदी रहे।

भारतीय जनता के भारी विरोध और आंदोलनों से घबरा कर अंग्रेजी हकूमत को उन्हें छोड़ना पड़ा। वे खुद भी यही चाहते कि अंग्रेजो के विरुद्ध आजादी की जो लड़ाई लड़नी है वह यहां जेल में रह कर नही लड़ी जा सकती।

वे भारत आकर भूमिगत तौर पर स्वतंत्रता आंदोलन में पूरी तरह से सक्रिय हो गए।आखिरकार अनेको शहीदों ने अपना बलिदान देकर व सावरकर जैसे महान त्यागी, तपस्वी क्रांतिकारियों के कारण देश आजाद हो गया।

वे इसे आधी अधूरी आजादी समझते थे। देश का बंटवारा उनको बिल्कुल भी रास नही आ रहा था।

देश की आजादी के बाद उन्हें वह मान सम्मान नही मिल पाया जिसके वे हकदार थे। उन्होंने खुद भी कभी इसकी अपेक्षा रखी नही थी।

देश के कई कांग्रेसी नेताओं ने उनके विरुद्ध प्रचार किया कि सावरकर माफी मांग कर कालापानी की सजा से छूटे है। आज भी कांग्रेस के कई नेताओं द्वारा यह दुष्प्रचार किया जाता है।

गांधी जी की हत्या में भी सावरकर के हाथ होने का आरोप भी लगा। उनके विरुद्ध लगाए गए सभी आरोप पूरी तरह मिथ्या , असत्य व अप्रमाणिक पाए गए।

1965 में उन्हें तेज बुखार हो गया । उनका स्वास्थ्य तेजी से गिरने लगा। 26 फरवरी 1966 को वे परलोक सिधार गए। मृत्यु से एक महीने पहले उन्होंने मृत्यु पर्यन्त उपवास रखने का फैसला ले लिया था।

उनके स्वर्ग सिधारने की खबर से पूरे देश मे शोक की लहर दौड़ गई।

उनका चिंतन था ,वे हमेशा कहा करते थे कि हमारा देश इतना महाशक्ति शाली बने की कोई भी दूसरा देश हमारी तरफ उंगली उठा कर भी न देख सके। हमारा राष्ट्र अतीत में विश्व में आध्यात्मिक गुरु रहा है , वही स्थान फिर से प्राप्त हो, हमारे पास आज भी सम्पूर्ण ज्ञान का भंडार है। हमारा राष्ट्र पुनः परमवभवशाली राष्ट्र बने ।

सावरकर सभी धर्मों के रूढ़िवादी विश्वासों का जोरदार तरीके से विरोध करते थे।

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी ने अपने उद्द्बोधनो मे कई बार कहा है कि वे वीर सावरकर के ही संस्कार है कि हमने राष्ट्रवाद को राष्ट्र निर्माण के मूल में रखा है।

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