डॉ मीरा सहायक प्राध्यापिका

आज देश भारत कोकिला या नाइटएंगल ऑफ इंडिया कही जाने वाली नेत्री सरोजनी नायडू को उनके जन्मदिवस 13 फरवरी पर याद कर रहा है। सरोजिनी नायडू एक निडर स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ-साथ एक प्रसिद्ध कवियत्री रही।भारतीय समाज में आज महिला सशक्तिकरण की लहर चल रही है, लेकिन यह लहर आज की नहीं बल्कि एक अर्से से भारतीय समाज का हिस्सा है आजादी की लड़ाई में कई भारतीय वीरांगनाओ ने अपना योगदान दिया और यह साबित किया कि वे भी इस समाज का एक सशक्त एवं अहम हिस्सा हैं आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान देने वाली महिलाओं में खास थीं भारत कोकिला सरोजनी नायडू। अपनी अनोखी एवं विलक्षण प्रतिभा से उन्होंने बचपन से ही सबको हैरान कर दिया था। 13 वर्ष की आयु में उन्होंने 1300 पदों की ‘द लेडी ऑफ लेक’ झील की रानी नामक कविता लिखी। नायडू ने अपनी कविताओं में भारत की प्रकृति, नदी, पहाड़ों, सामाजिक परिवेश, बच्चों, राष्ट्रप्रेम, मातृभूमि और महिला सशक्तिकरण को समाहित किया है। उनकी कविता की कुछ पंक्तिया – मैं सोच भी बदलता हूँ ,ऩजरिया भी बदलता हू….!मिले न मंजिल मुझे,तो मैं पाने का जरिया बदलता हूँ …बदलता नहीं अगर कुछ ,तो मैं लक्ष्य नहीं बदलता हूँ …!उसे पाने का पक्ष नहीं बदलता हूँ। 1879 को हैदराबाद में जन्मी नायडू एक होनहार छात्रा रही और उन्होंने किंग्स कॉलेज इंग्लैंड से अपनी पढ़ाई की। इंग्लैंड में उनके द गोल्डन थ्रेसोल्ड, द ब्रोकन विंग और बर्ड ऑफ़ टाइम कविता संग्रह प्रकाशित हुए। नायडू का स्वतंत्रता संग्राम में अहम योगदान रहा। वे बार बार ब्रिटिश हुकूमत के द्वारा गिरफ्तार की गईं। नमक सत्याग्रह से लेकर, सविनय अवज्ञा आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन सहित बहुत सारे आंदलनो में उन्होंने अपनी उल्लेखनीय उपस्थिति दर्ज की।भारत की सवतंत्रता के लिए अनेक आन्दोलनो का महत्वपूर्ण हिस्सा बनकर सरोजनी नायडू महात्मा गाँधी,नेहरु, रविंद्र नाथ टैगोर, गोपाल गोखले एनी बेसेंट , मोहम्मद अली जिन्ना के साथ खड़ी रही।

जलियांवाला बाग हत्याकांड से आहत होकर ‘केसर ए हिन्द सम्मान’ जो उन्हें 1908 में मिला था, वापिस लोटा दिया था। भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने 21 महीने जेल में बिताए, वही दांडी मार्च में भारत कोकिला ने गांधी जी के साथ बड़ी सक्रियता से भाग लिया। राजनैतिक क्षेत्र और स्वतंत्रता संग्राम में उनके अतुल्य योगदान से वे महिला सशक्तिकरण के तौर पर सर्वश्रेष्ठ महिलाओं में लोकप्रिय रही हैं। 1925 में राष्ट्रीय कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्ष एवं आजाद भारत की पहली महिला राज्यपाल सरोजिनी नायडू एक विशाल जनसंख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश से बनी। सरोजिनी नायडू ने दक्षिण अफ्रीका में भी स्वयंसेविका के रूप में कार्य किया। सरोजिनी नायडू का युवाओं के प्रति विचार था कि युवा पीढ़ी सुदृढ़ और सुयोग्य राष्ट्र का अनूठा खजाना है। नारी के प्रति वे मानती थी कि शिक्षित महिलाएं ही अपने परिवार एवं समाज को और बेहतर बना सकती हैं।

उन्होंने अपने जीवन में महिलाओं की मुक्ति, नागरिक अधिकारों, हिंदू मुस्लिम एकता, शिक्षित समाज, अज्ञानता, रूढ़िवादी रीति-रिवाजों का खंडन आदि विभिन्न‌ आयामों पर जोर देते हुए एक महान समाज सुधारक के रूप में बढ़-चढ़कर अपनी भूमिका निभाई। व्यक्तित्व में वे एक अच्छी कवियत्री के साथ-साथ एक मधुर गायिका, राष्ट्र प्रेमी, समाज सुधारक, प्रकृति प्रेमी और सक्रिय नेत्री नजर आती हैं। भारतीय समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने के लिए महिलाओं को जागृत करने के उद्देश्य साथ, उन्होंने नारी मुक्ति और नारी शिक्षा आंदोलनों में बढ़-चढ़कर भाग लिया जिसके परिणाम स्वरूप वे महिला नेत्रित्व की बेमिसाल प्रेरक बन गयी।

हम सरोजिनी नायडू के जन्मदिन को राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाते है। वह भारतीय महिला परिषद की सदस्य भी रही, सरोजनी नायडू जी ने जीवन में आने वाली हर समस्या का डटकर मुकाबला करके, एक धीर वीरांगना की तरह देश के गांव-गांव व कोने- कोने में घूम कर, देश प्रेम और राष्ट्रीयता को लोगों के दिलों में जगाया और पूरे भारतवर्ष में भ्रमण करते हुए लोगों को जागरूक किया। उनमें विभिन्न भाषाओं का जैसे हिन्दी, बँगला, फारसी, उर्दू का ज्ञान होने के परिणाम स्वरूप ग्रामीण लोगों के साथ अच्छा संपर्क बनाकर उनके दिलो में देशप्रेम और देशभक्ति की ज्योति जलाई, हम उनके अतुल्यनीय एवं प्रशंसनीय योगदान को हमेशा याद रखेंगे।

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