गांधी लगातार प्रासंगिक बने हुए हैं और बने रहेंगे । कितनी कितनी फिल्में गांधी की सोच को बता रही हैं यहां तक कि विदेशों में भी गाँधी की विचारधारा को अपनाया जा रहा है ।

-कमलेश भारतीय

आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को याद करने का दिन है । आइंस्टाइन ने कहा था कि आने वाली पीढ़ियां बहुत मुश्किल से विश्वास करेंगी कि कोई हाड़ मांस जैसा ऐसा व्यक्ति धरती पर जन्मा होगा । सच है यह बात । सन् 1975 में मुझे केंद्रीय हिंदी निदेशालय की ओर से अहमदाबाद में लगाये गये युवा लेखक शिविर के लिए चुना गया था और उन दिनों अहमदाबाद ही गुजरात की राजधानी था । इस शिविर के दौरान हमें न केवल विभिन्न स्थल दिखाये गये थे बल्कि साबरमती आश्रम भी लेकर गये थे । वहीं मैंने महात्मा गांधी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ की एक प्रति खरीदी थी और वापस आकर इसे गहरे से पढ़ा और कुछ समझने की कोशिश की ।

महात्मा गांधी के जीवन की छोटी छोटी घटनाएं बहुत कुछ सिखाती हैं । बचपन में मास्टर द्वारा बूट की नोक से नकल करने के इशारे को भी नज़रअंदाज कर गये और गलत शब्द को ठीक नहीं किया । आज भी स्कूलों में वार्षिक परीक्षाओं के दौरान हमारे शिक्षक खुद ही नकल करवाने में सबसे आगे देखे जाते हैं । यह नकल प्रचलन में तब भी थी और आज भी है । एक छोटी सी बात भी इतनी दिल को छू गयी कि पिता के कुर्ते की जेब में चिट्ठी लिख कर रख दी और माफी मांगी । अपनी भूल को स्वीकार किया । कितने ही सत्य के प्रयोग दिल को छू जाते हैं ।

एक युवा वकील केस लड़ने दक्षिण अफ्रीका क्या गया , खुद ही बदल गया और पूरी दुनिया को सत्य व अहिंसा का संदेश देकर बदलने की कोशिश की । रेल से जब सामान सहित नीचे फेंके गये तब आत्मसम्मान को ठेस लगी और लम्बी लड़ाई लड़ कर महात्मा बने । टाई लगाने वाले वकील से सिर्फ धोती लगाने वाले महात्मा के रूप में सामने आए । देश की परिक्रमा की और जाना सच्चा हाल । हिंदी न केवल सीखी बल्कि समझ गये कि हिंदी ही इस देश को जोड़ने की भाषा है और इसे खूब प्रचारित किया । हिंदी को अपनाया ।

महात्मा गांधी को जहां राष्ट्रपिता माना गया वहीं एक विचारधारा ने सन् 1948 में उनके प्राण ले लिये । स्वतंत्र भारत में ऐसा गांधी के साथ गांधी के देश में ही हुआ । क्यों ?

एक विचारधारा गांधी के सत्य व अहिंसा के मार्ग का विरोध करती आई है और देश विभाजन का जिम्मेदार भी मानती है । इसके चलते गोडसे ने उन पर हमला किया और प्राण हर लिये । ‘हे राम’ कहते वे धरती पर गिर गये । अब इसी विचारधारा के लोग ऐसी फिल्में और नाटक भी बनाने लगे हैं जिनमें कहा जा रहा है कि मैंने गांधी को नहीं मारा । जिससे उनके प्रति श्रद्धा कम हो जाये । कभी साध्वी प्रज्ञा तो कभी एक्ट्रेस कंगना रानौत सब एक ही बोली बोलने लगी हैं । क्या कोई धर्म संसद हो उसमें भी गोडसे का गुणगान सुनने को मिलने लगा है । यह एक धीमी साजिश है गांधी को अवायड करने की । यह एक साजिश है गांधी की विचारधारा को कम करके आंकने की । लेकिन जो लोग सोचते हैं कि गांधी को इस तरह मार सकते हैं , खत्म कर सकते हैं वे बहुत ही गलत सोच व राह पर चल रहे हैं । इस सोच का लगातार विरोध भी हो रहा है और गांधी लगातार प्रासंगिक बने हुए हैं और बने रहेंगे । कितनी कितनी फिल्में गांधी की सोच को बता रही हैं यहां तक कि विदेशों में भी गाँधी की विचारधारा को अपनाया जा रहा है ।

गांधी को नमन् और जो इनके विरोध में चल रहे हैं उनको गांधी के प्रिय भजन के माध्यम से कहना चाहूंगा :

ईश्वर अल्लाह तेरे नाम
सबको सन्मति दे भगवान्,,,,,
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।

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