
वार्ता को लेकर ईरान अमेरिका के अलग-अलग दावे- ईरान ने अप्रत्यक्ष वार्ता बताया तो अमेरिका ने प्रत्यक्ष बताया
अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को सुलझाने, कूटनीति को सद्भावना, सहयोग व मुद्दे सुलझाने का संकल्प कर,सकारात्मक नतीजों के अंजाम तक लाना ज़रूरी
– एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं

गोंदिया। वैश्विक अशांति के दौर में एक सकारात्मक पहल सामने आई है। ओमान की राजधानी मस्कट में अमेरिका और ईरान के बीच परमाणु कार्यक्रम को लेकर अहम वार्ता संपन्न हुई। दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने 12 अप्रैल 2025 को इस वार्ता में हिस्सा लिया। यह वार्ता वर्षों से चले आ रहे आपसी तनाव के बीच एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
हालांकि वार्ता के स्वरूप को लेकर दोनों पक्षों में मतभेद हैं। जहां ईरान ने इसे अप्रत्यक्ष बातचीत बताया, वहीं अमेरिका ने प्रत्यक्ष संवाद का दावा किया। ईरानी विदेश मंत्रालय के अनुसार, वार्ता अलग-अलग कमरों में हुई और दोनों पक्षों के बीच संवाद ओमान के विदेश मंत्री के माध्यम से संपन्न हुआ।

वार्ता का उद्देश्य तेहरान के परमाणु कार्यक्रम पर स्पष्टता और संभावित समझौते की दिशा में आगे बढ़ना था। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की हालिया धमकियों के बीच यह वार्ता और भी संवेदनशील मानी जा रही है। ट्रंप ने चेताया है कि यदि ईरान अमेरिका के साथ सहमति नहीं बनाता, तो उसे सैन्य कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है।
ईरानी विदेश मंत्री ने वॉशिंगटन पोस्ट में प्रकाशित अपने लेख में कहा है कि “हम गर्वित राष्ट्र हैं और किसी भी प्रकार की धमकी के आगे नहीं झुकेंगे।” उन्होंने यह भी दोहराया कि ईरान कभी परमाणु हथियारों की ओर नहीं बढ़ा है और यदि अमेरिका ईमानदारी दिखाता है, तो ईरान बातचीत को लेकर तैयार है।
इजरायल की ‘लीबिया मॉडल’ की मांग
ईरान-अमेरिका विवाद के बीच इजराइल की भी प्रतिक्रिया सामने आई है। इजराइली प्रधानमंत्री ने अमेरिका से अपील की है कि वह ईरान के साथ लीबिया जैसा मॉडल अपनाए, जिसमें सीधे जाकर परमाणु स्थलों को नष्ट किया जाए। इसके जवाब में ईरान ने स्पष्ट कर दिया है कि उसका परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण है और वह किसी भी स्थिति में पीछे नहीं हटेगा।

19 अप्रैल को फिर बैठक की सहमति
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अमेरिका और ईरान के प्रतिनिधियों ने मस्कट में हुई वार्ता के अंत में 19 अप्रैल 2025 को एक और बैठक आयोजित करने पर सहमति जताई है। दोनों देशों के बीच दशकों पुरानी दुश्मनी और तनाव के बावजूद इस प्रकार की कूटनीतिक पहल से वैश्विक समुदाय को शांति की आशा मिली है।
कूटनीति की आवश्यकता
इस वार्ता से स्पष्ट है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को सुलझाने के लिए कूटनीति, संवाद, सद्भावना और सहयोग आवश्यक है। केवल सैन्य ताकत के प्रदर्शन से वैश्विक स्थिरता नहीं लाई जा सकती। आवश्यकता इस बात की है कि सभी देश आपसी मुद्दों को संवाद से हल करने की दिशा में पहल करें।
निष्कर्ष
यदि हम इस वार्ता को वैश्विक शांति के दृष्टिकोण से देखें, तो यह एक नई शुरुआत हो सकती है। हालांकि वार्ता अभी प्रारंभिक चरण में है, लेकिन इससे यह उम्मीद की जा सकती है कि आगामी 19 अप्रैल को होने वाली बैठक से कोई ठोस समाधान निकलकर सामने आएगा।
-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र