संविधान की रचना अधिकारों की रक्षा और व्यवस्था संचालन के लिए
लोकतंत्र का मतलब स्वच्छंदता नहीं, अनुशासन भी सभी के लिये जरूरी
संविधान और परमात्मा का विधान हमारे ही भले सहिम संरक्षण के लिये
फतह सिंह उजाला
पटौदी । आजादी के साथ ही संविधान की संरचना अथवा रचना हमारे अपने मूल अधिकारों की रक्षा और देश की समस्त व्यवस्था संचालन के लिए ही की गई । गणतंत्र दिवस वास्तव में लोकतंत्र का असली पर्व है । लेकिन लोकतंत्र का मतलब स्वच्छंदता नहीं, उद्दंडता नहीं बल्कि अनुशासन में ही रहना है और अनुशासन सहित अनुशासनिक व्यवस्था के लिए ही संविधान की रचना की गई है । संविधान की शपथ लेकर ही राज्य और देश की सरकारें अथवा इनके संचालकों के द्वारा काम किया जाता है। सही मायने में गणतंत्र दिवस की लोकतंत्र का असली पर्व भी है । यह बात वेद पुराणों के मर्मज्ञ, धर्माचार्य , समाज सुधारक और चिंतक महामंडलेश्वर धर्मदेव महाराज ने 26 जनवरी बुधवार को अपनी कल्पवास साधना के 13 वें दिन साधकों को संबोधित करते हुए कही ।
उन्होंने कहा भारतीय संविधान को सीधा और सरल इस प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है कि प्रत्येक भारतीय के ऊपर एक तंत्र निगरानी के लिए काम कर रहा है और इस तंत्र का नाम सरकार ही है। उन्होंने कहा जीवन में चाहे वह देश के पीएम हो किसी राज्य के सीएम हो किसी जिला के जिलाधीश हों या अन्य अधिकारी सहित सामान्य नागरिक हो, सभी के लिए अनुशासन और अनुशासित होना बहुत जरूरी है। अनुशासन के बिना कोई भी व्यवस्था अथवा काम सही प्रकार से नहीं किया जा सकता है। महामंडलेश्वर धर्मदेव महाराज ने कहा दूसरों को नसीहत देना, उनको टोकना , उनकी कमियों को बताना बहुत आसान और सरल कार्य है । लेकिन संवैधानिक तौर पर हम सभी को अपने-अपने जीवन में आत्म अवलोकन करना भी चाहिए । इसके साथ ही समाज परिवार और राष्ट्र के हित में चिंतन सहित मंथन भी करना चाहिए । उन्होंने इस मौके पर मौजूद साधकों का आह्वान किया कि अनुशासित बने , मर्यादित बने, अपने आपको अपने परिवार को समाज को राष्ट्र को अनुशासन में रखना हम सभी का कर्तव्य भी बनता है। उन्होंने कहा की आध्यात्मिक रूप से भी हम सभी के ऊपर परमपिता परमेश्वर का संविधान लागू है और परमात्मा के इस संविधान को मानना भी हमारे लिए और अपने भले के लिए बहुत जरूरी है । कहा भी गया है परमात्मा के द्वारा विधान में जो लिखा गया उसे कोई भी ताकत मिटा नहीं सकती है । इसी प्रकार से भारतीय संविधान की भी व्याख्या की जा सकती है ।
महामंडलेश्वर धनदेव महाराज ने कहां की यज्ञ, हवन में मंत्रोच्चारण करते हुए कहा जाता है कि मातृ देवों भवः पितृ देवो भव, अतिथि देवो भव, आचार्य देवो भव, लेकिन राष्ट्र भी देवो भव ही है। हम जब देव पूजा, उपासना, अर्चना करते हैं तो इसका संरक्षण देवताओं के द्वारा ही किया जाता है । जिस प्रकार से राष्ट्र भी हमारे को संरक्षण दिए हुए हैं , राष्ट्र और राष्ट्रहित सबसे पहले और सर्वाेपरि है । इसके बाद में हम सभी नागरिक हैं । सीधे और सरल शब्दों में राष्ट्र भी हम सभी के लिए देवों के समान ही है । जिस के संरक्षण और छत्रछाया में हम सभी सुरक्षित हैं । उन्होंने कहा राष्ट्र का सम्मान तभी होगा जब हम सभी सविधान सहित कानून का भी आदर करेंगे। संविधान और कानून हमारे हित और अधिकारों की रक्षा के लिए ही बने हैं तथा जरूरत के मुताबिक समय-समय पर इन में संशोधन भी किए जाते आ रहे हैं । अंत में उन्होंने कहा कि मानव के बिना भगवान नहीं और भक्तों न हो तो फिर भगवान की कल्पना कैसे की जाए ? जब भगवान हैं तो फिर मानव भी है और भक्त भी मौजूद हैं । उन्होंने कहा भारतीय संविधान और परम पिता परमेश्वर के विधान का पालन करना प्रत्येक प्राणी अथवा व्यक्ति के लिए हितकर ही है।