डॉ मीरा सहायक प्राध्यापिका
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दुनिया भर में जैसे-जैसे डिजिटलाइजेशन से इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की खपत बढ़ रही है उसके साथ साथ ई कचरा भी बढ़ रहा है। जैसे-जैसे नई तकनीकें प्रचलन में आ रही हैं वैसे वैसे पुराने उपकरणों जैसे पुराने और अनुपयोगी टीवी,वॉशिंग मशीन, मोबाइल फोन, कंप्यूटर आदि खराब होने और ऐसे उत्पादों की मरम्मत बहुत महंगी होने से ज्यादातर लोग उन्हें अपशिष्ट मानकर या तो फेंक देते हैं या कचरे में डाल देते हैं, जो ई कचरा बन जाते हैं। ऐसे पुराने उपकरणों को पुनः प्रयोग करने की बजाय, नया ई उत्पाद खरीदना लोग ज्यादा पसंद करते हैं। देखा जाए तो ई कचरे में मौजूद पारा,कैडमियम क्रोमियम जैसी एक हजार से भी अधिक विषैली चीजें हमारे पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए जहर के समान है।
अत्यधिक जनसंख्या होने के कारण हमारा देश कचरे के उत्पादकों में शिर्ष 5 देशों में गिना जाता है। प्रतिवर्ष करीब 50 मिलियन टन का ई वेस्ट पूरी दुनिया में उत्पन्न हो रहा है। यदि सही तरीके से इसका निपटान नहीं किया गया तो यह भविष्य में बड़ा खतरा बन सकता है। हम आज भी कोरोनावायरस से मुक्त नहीं हो पाए हैं वही ई वेस्ट के बढ़ने से भविष्य की चिंता और बढ़ती जा रही है। राष्ट्रीय बाल अधिकार एवं संरक्षण आयोग ने अपनी एक रिसर्च में यह स्पष्ट किया है कि अगर हमने समय रहते ई कचरे से संबंधित खतरनाक पक्षों पर ध्यान नहीं दिया तो भविष्य में लाखों बच्चे कैंसर, हार्मोन असंतुलन और ऐसी कई खतरनाक बीमारियों की गिरफ्त में होंगे।
ई वेस्ट से पर्यावरण में भूमि, वायु और पानी पर भी खतरनाक प्रभाव पड़ रहा है। ई कचरा रिपोर्ट 2021 के मुताबिक पिछले 5 वर्षों में 21 फ़ीसदी कचरे में बढ़ोतरी देखी गई, वही भविष्य में भी इसके और अधिक बढ़ने का अनुमान है। संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय के मुताबिक 2030 तक 38% ई-कचरा बढ़ने की आशंका है। हमारे देश में ई कचरे के बढ़ने का सबसे मुख्य कारण है भारत में मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या का अधिक होना। यह जानकर हैरानी होगी कि एक मोबाइल फोन की बैटरी ही करीब 6 लाख लीटर पानी दूषित कर सकती है। वैसे तो हमारे देश में ई कचरे के प्रबंधन और निपटान के लिए 2011 और उसके बाद 2016 में कई नियम बनाए गए हैं,जिसमें इलेक्ट्रॉनिक्स गेजेट्स बनाने वाले निर्माताओं को ही अंततः ई वेस्ट का कलेक्शन करना होता है लेकिन समस्या यह है कि कई निर्माता अपने दायित्वों का निर्वहन ठीक से नहीं कर रहे हैं। इसी संबंध में सीपीसीबी ने भी ऐसे निर्माताओं को ई वेस्ट कलेक्शन को लेकर कई बार चेतावनी भी दी है।
भारत विकसित देशों से ई कचरा उत्पन्न करने वाले उत्पादों के आयात करने वाले देशों में शीर्ष स्थान पर है ऐसे उत्पादों के आयात को कम किया जाए, जिनमें खतरनाक तत्व मौजूद हैं और जिनका पुनर्चक्रण भी हानिकारक साबित होता है। हमारे देश में मुंबई दिल्ली बेंगलुरु कोलकाता चेन्नई अहमदाबाद हैदराबाद ई कचरा उत्सर्जित करने में शीर्ष स्थान पर हैं ।देश का लगभग 90% ई-कचरे का पुनर्नवीकरण अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा किया जा रहा है। ई कचरे को वैज्ञानिक ढंग से निस्तारित करने के बारे में जन जागरूकता अभियान चलाते रहना होगा और लोकल गवर्नमेंट द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करना होगा। भारी मात्रा में ऐसे अपशिष्ट पदार्थों को यूंही इधर उधर फेंक दिया जाता है जिसे इस कचरे में मौजूद किमती धातु जैसे तांबा चांदी बर्बाद होने से आर्थिक नुकसान होता है। हम ऐसे ई उत्पादों को फेंकने या ई वेस्ट में डालने की बजाए दान देकर भी पुनप्रयोग में ला सकते हैं, हो सकता है जो वस्तु हमारे लिए अनुपयोगी हो गई है वह किसी अन्य व्यक्ति के लिए उपयोगी साबित हो जाए इसलिए ऐसे उत्पादों का हमें दान करना चाहिए। ई वेस्ट परिवहन वाहनों के प्रस्थान एवं गंतव्य पर लेबल होने चाहिए जिससे पता चल सके कि अपशिष्ट पदार्थों को कहां पहुंचाया जा रहा है। ईवेस्ट के सुरक्षित उपचार और निस्तारण के लिए सुरक्षित विधि से भूमि में दबाना, भस्मीकरण,रीसाइक्लिंग, एसिड के द्वारा मेटल की रिकवरी और पुन उपयोग विधियां अपनाई जाए तभी ईवेस्ट की इस बढ़ती समस्या पर काबू पाया जा सकेगा।