-कमलेश भारतीय

क्या किसान आंदोलन से पंजाब विधानसभा चुनाव में चढूनी के लिए जीत का रास्ता खुलेगा? वे बहुत उतावले थे किसान आंदोलन के बल पर राजनीति करने के लिए और राजनीतिक सीढ़ियां एकदम फलांगने के लिए । बहुत बार चेतावनी मिली और बहुत बार कांग्रेस के एजेंट भी कहे गये । फिर भी दिल है कि मानता नहीं चढूनी जी का । जैसे ही किसान आंदोलन समाप्त हुआ पंजाब पहुंच गये और नयी पार्टी बना कर ताल ठोक दी । हालांकि किसान नेता दर्शन पाल ने चेताया कि किसान आंदोलन को यह सफलता इसलिए मिली क्योंकि यह राजनीति से दूर था । इसमें किसी राजनीतिक दल का दखल नहीं था और हमें राजनीति से इसे अलग रखना होगा लेकिन चढूनी ने एक नहीं सुनी और अलग पार्टी बना कर पंजाब पहुंच गये । क्या वे अरविंद केजरीवाल की राह पर हैं ? अरविंद केजरीवाल ने भी अन्ना के भ्रषाटाचार विरोधी आंदोलन के बाद अन्ना के विरोध करने के बावजूद आखिर आप पार्टी बना ही ली थी और खुद राष्ट्रीय संयोजक बन गये थे ।

अब पंजाब और दिल्ली में बहुत फर्क है । यह चढूनी समझ नहीं रहे । पंजाब में मुख्य लड़ाई अकाली दल और कांग्रेस में होती आई है । फिर आप भी अपने पांव जमा रही है और कुछ जमा चुकी है । पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने भी अलग पार्टी बना ली है जिसका समझौता भाजपा से हो चुका है । कांग्रेस में काफी उठा पटक जरूर है लेकिन इसका फायदा चढूनी को नहीं बल्कि कैप्टन अमरेंद्र सिंह को मिल सकता है । अकाली दल ने बसपा के साथ समझौता कर लिया है । दलित वोट बैंक के लिए कांग्रेस ने चन्नी को मुख्यमंत्री बने रखा है । अब किसान आंदोलन का श्रेय लेकर चुनाव जीत पाना बहुत कठिन लग रहा है । चढूनी के पास न कोई पहले से संगठन है और न कार्यकर्त्ता । फिर बस्ते उठाने वाले एजेंट कैसे और कहां से आयेंगे , अमित शाह हर चुनाव में यह कहते हैं कि बूथ पर मजबूत रहो । अब बूथ पर ही कोई न मिलेगा तो वोट जब चाहे अंतिम क्षण भी परिवर्तित हो जायेगा ।

दिल्ली में भी आप से पहले भाजपा और कांग्रेस ही मुख्य प्रतिद्वन्दी रहीं । अब जहा कांग्रेस पूरी तरह साफ होती रही वही भाजपा को प्रतिपक्षी नेता बनने लायक समर्थन न मिला । हो सकता है यही आस चडूनी पंजाब में लेकर आए हों । जहा आप को सफलता मिली दिल्ली में नहीं स्वराज इंडिया के योगेंद्र यादव पहले आप मे होते हुए भी हरियाणा में चुनाव हार गये थे । हालांकि वे यह मानते हैं कि आंदोलन के बाद चुनाव लड़ने में कोई बुराई नहीं । अब भी वे स्वराज इंडिया को चुनाव के लिए तैयार कर रहे हैं और वे भी संयुक्त किसान मोर्चे का हिस्सा रहे हैं ।
फिर भी पंजाब मे चढूनी की राह इतनी आसान नहीं है । वे यदि चुनाव में कोई प्रभाव न दिखा पाये तो किसान की भी किरकिरी होगी । अब यह तो चुनाव परिणाम ही बतायेगा कि आंदोलन के बाद चढूनी अपनी लोकप्रियता भुनाने में सफल होते हैं या नहीं?
-पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।

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