समस्त श्यामप्रेमी परिवार, कुरुक्षेत्र द्वारा श्रीमद् भागवत कथा आयोजन का प्रथम दिवस।

कुरूक्षेत्र,8 दिसंबर : समस्त श्यामप्रेमी परिवार कुरूक्षेत्र द्वारा गीता जयंती के उपलक्ष्य में पहली बार श्री गीता धाम में बुधवार को श्रीमद् भागवत कथा अनुष्ठान, गीता ज्ञान महायज्ञ, भंडारा और खाटू श्याम संकीर्तन का शुभारंभ किया गया।कथाव्यास महामंडलेश्वर विकास दास महाराज ने श्रीमद्भागवत कथा की महिमा विस्तार से सुनाई।कार्यक्रम में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री ओम प्रकाश यादव, तिगांवां (फरीदाबाद) के विधायक राजेश नागर,थानेसर विधायक सुभाष सुधा व सूरज भान कटारिया ने शिरकत की।उन्होंने कहा कि धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र का इतिहास उतना ही पुराना है, जितना श्रीमद्भगवद गीता का ज्ञान और महाभारत का महासंग्राम। करीब 5 हजार वर्षों से भी ज्यादा काल से अपने सीने में भाई-भाई की दुश्मनी और खून का दंश लिए आगे बढ़ रहे इस शहर की मिट्टी आज पूरी दुनिया में अधर्म पर धर्म की सबसे बड़ी जीत का संदेश देती है। गीता का ज्ञान जीवन की हर दुविधा का समाधान उपलब्ध कराता है।भागवत अनुष्ठान यजमान श्यामप्रेमी अजय गोयल, दिनेश गोयल, अरुण गोयल,अशोक गर्ग व डिंपल गर्ग सहित अन्य यजमानों ने व्यासपूजन किया।

इससे पूर्व सुबह 11 कुण्डीय गीता ज्ञान महायज्ञ शुरु हुआ,जिसमें यजमानों ने आहुतियां दी।कथाव्यास महामंडलेश्वर विकास दास महाराज ने कहा कि श्रीमद भागवत पुराण सभी शास्त्रों का सार है। जब वेदों के संकलन और महाभारत, पुराणों की रचना के बाद भी उन्हें शांति न मिली तो उनके गुरु नारद मुनि ने उन्हें श्रीमद भागवत पुराण लिखने को प्रेरित किया। यह श्री वेदव्यासजी की आखिरी रचना है और इस कारण पूर्व के सारे रचनाओं का निचोड़ है।भागवत पुराण में भगवान स्वयं शब्दात्मक स्वरूप में विराजमान हैं।भागवत का अर्थ है- “भगवान का”। ‘का, के, की’ चिन्ह है संबंध का, जैसे माता का पुत्र, पिता की पुत्री; वैसे ही भगवान का भागवत। भगवान के होने का यह मतलब नहीं की हम बेटे के बाप नहीं रहेंगे बल्कि संसार के नातों के प्रति ममता (आसक्ति) का त्याग है।संसार में हर व्यक्ति किसी का होकर जीता है जैसे नाना का नाती, पति का पत्नी। लेकिन इन सांसारिक आसक्तियों से हमें मिला क्या? अवसाद, ग्लानी, पीड़ा, दर्द और परेशानी। जड़ वस्तु से हमारा नाता ही हमें दुःख देता है। लेकिन क्या कोई ऐसा नाता है जो हमें आनंद की ओर ले जाये? भगवान के होने का यह मतलब नहीं की हम बेटे के बाप नहीं रहेंगे बल्कि संसार के नातों के प्रति ममता (आसक्ति) का त्याग है। असली हम भगवान के हैं। क्या पिता का पुत्र हो गया तो पत्नी का पति वह नहीं है? मामा का भांजा नहीं है? नाना का नाती नहीं है? सबका रहेगा पर पिता का पुत्र, बस दिल से मान लिया तो पिता के सम्पति का वह अधिकारी हो गया। बस ह्रदय से मान लो और मान कर जान लो। इतना ही पर्याप्त है। यही मानाने वाले मुक्त हो गए, नहीं मानने वाले धोखा खा जाते हैं, यहीं रह जाते हैं।

जब से मानव बुद्धिमान माने जाने लगा, तभी से किसी ‘का’ होकर जीना सिख गया। सबसे संबंध स्थापित किया पर भगवान का होना नहीं सिखा और इसलिए उसकी ग्लानी, पीड़ा, दर्द आजतक समाप्त नहीं हुआ। अगर संसार का नाता लेते हुए हम भगवान से संबंध जोड़ लें, फिर हमारी पीड़ा सहज ही दूर हो जाए। हम भगवान से किसी भी तरह का संबंध जोड़ लें जैसे पिता, मित्र, पति या दुश्मन भी, तो बड़ा पार हो जायेगा। हम संसार के संबंधों का आधार लेकर भगवान से संबंध जोड़ सकते हैं।कथा के दौरान सुनाए गए भजनों पर भक्त झूम उठे।भागवत आरती में माता सुदर्शन भिक्षु , कुसुम दीदी, आचार्य नरेश कौशिक, अंकुर गर्ग,विकास गुप्ता, रवि गुप्ता,गौरव गुप्ता, पियांशु तायल, आशुतोष मित्तल, हर्ष गोयल, ए.पी.चावला, मनोज काठपाल,राकेश मंगल,पंकज सिंगला, अनिल मित्तल, राजकुमार मित्तल,मुनीष मित्तल, संजय चौधरी, अमित गर्ग,अनुज सिंगला,सतीश मेहता, योगेंद्र अग्रवाल और बड़ी संख्या में महिला श्रद्धालुओं सहित कई शहरों के श्यामप्रेमी शामिल रहे।

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