धर्मपाल वर्मा गुरुग्राम हरियाणा का वह इंटरनेशनल शहर बन गया है जिसने हरियाणा को नई पहचान देने का काम किया है ।यह शहर उद्योगों के कारण पूरी दुनिया में अपनी धूम मचा रहा है। साइबरसिटी के रूप में विख्यात गुरुग्राम अपनी धार्मिक पहचान के लिए भी जाना जाता है । सरकार को गुरु ग्राम से सबसे ज्यादा राजस्व प्राप्त होता है। इंटरनेशनल एयरपोर्ट और दिल्ली की समीपता के कारण गुरुग्राम मैं चहुंमुखी विकास हुआ है ।जब कभी पंजाब हरियाणा न्यायालय की एक और बेंच बनाने की बात चलती है तो गुरुग्राम के नाम पर ही सहमति बनती है। गुरुग्राम को हरियाणा की अघोषित राजधानी के रूप में देखा जाने लगा है ।अब तो सरकार और भारतीय जनता पार्टी के अधिकांश वह कार्यक्रम जो नई दिल्ली में हुआ करते थे गुड़गांव में होने लगे हैं। मतलब गुड़गांव की अहमियत की बात करें तो इसका कोई और सानी हरियाणा में नहीं है । इसके बावजूद भी मौजूदा सरकार में गुड़गांव का कोई प्रतिनिधि नहीं है यूं कहिए कि गुड़गांव का कोई विधायक मंत्री नहीं बन पाया और जानकार इस बात का दावा करते हैं कि जब तक मनोहर लाल मुख्यमंत्री बने रहेंगे गुड़गांव से कोई मंत्री नहीं बनेगा और इसका प्रमुख कारण यह बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री भविष्य में गुरुग्राम से ही चुनाव लड़ने की इच्छा रखते हैं । इससे पहले लगभग हर सरकार में कोई न कोई विधायक मंत्रिमंडल में जरूर शामिल रहा है । पिछली सरकार में राव नरबीर सिंह इससे पहले सुखबीर कटारिया उससे पहले धर्मवीर गब्बा और ओमप्रकाश चौटाला के शासन में गोपीचंद गहलोत डिप्टी स्पीकर के रूप में सत्ता में रहे हैं।पिछले चुनाव में भी मुख्यमंत्री मनोहर लाल की कोशिश गुड़गांव से ही चुनाव लड़ने की बताई गई थी परंतु कथित तौर पर पार्टी ने इसकी इजाजत नहीं दी । परंतु मजबूत इच्छाशक्ति के लिए विख्यात मनोहर लाल भविष्य में फिर गुड़गांव का रुख करने की कोशिश कर सकते हैं, ऐसी आम मान्यता है। बताते हैं कि इसी कोशिश में 2019 मे उमेश अग्रवाल की सिटिंग एमएलए रहते भी टिकट काट दी गई थी। गुरुग्राम में पंजाबी समुदाय का कितना हस्तक्षेप है ,यह सिद्ध करने के लिए मंत्री के पुराने सहयोगी मदन ग्रोवर के पुत्र मोहित ग्रोवर को निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ाया गया और वे 49000 वोट बटोरने में कामयाब हो गए थे ।यह प्रयास शायद इसलिए था कि भविष्य में यह साबित किया जा सके कि गुरुग्राम भी एक पंजाबी सीट हो सकती है। बताया जाता है कि मुख्यमंत्री अपने आगामी समायोजन के दृष्टिगत इस बात को दिमाग में रखकर चल रहे हैं कि उन्हें जब गुरुग्राम से चुनाव लड़ना ही है तो ऐसे में गुरुग्राम के किसी विधायक को मंत्री बनाने का फैसला मनोहर लाल जैसा राजनीतिक सोच का मुख्यमंत्री कभी नहीं कर सकता। मुख्यमंत्री मनोहर लाल का गुरुग्राम से लगाव होना स्वाभाविक है क्योंकि उन्होंने काफी वक्त गुरुग्राम में भी बिताया है। शायद इसी लगाव के कारण मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने गुरुग्राम जिला ग्रीवेंस कमेटी का चेयरमैन बनने का विचार किया। मुख्यमंत्री गुरुग्राम में कार्यक्रम भी ज्यादा रखते हैं और उनका आना-जाना भी अपेक्षाकृत गुरुग्राम में ही ज्यादा रहता है। भविष्य में यदि वे गुरुग्राम से चुनाव लड़ते हैं, विधायक बनते हैं मुख्यमंत्री भी बनते हैं तो गुरुग्राम उनके इस प्रयोजन के काम भी आएगा कि राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली गुरुग्राम से बहुत दूर नहीं है। इंटरनेशनल एयरपोर्ट भी गुरुग्राम से सटा हुआ ही है । एक बात और खास यह है कि जहां गुरुग्राम को विकसित करने में प्राइवेट बिल्डर्स का बहुत रोल है वही मनोहर लाल के मुख्यमंत्री बनने के बाद सरकार ने भी गुड़गांव के विकास और विस्तार में काफी रूचि ली है। मुख्यमंत्री का गुड़गांव से और यहां के लोगों से कितना लगाव है इसका एक प्रमाण रविवार की रात को उस समय देखने को मिला जब पूर्वांचल मतलब यूपी के प्रवासी गुरु ग्राम वासियों ने शहर में पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉ राजेंद्र प्रसाद की स्मृति में एक रंगारंग कार्यक्रम का आयोजन किया जिसमें जाने-माने कलाकारों को आमंत्रित किया गया था ।मुख्य अतिथि के रूप में हरियाणा के कृषि मंत्री जयप्रकाश दलाल भी उपस्थित थे तो अचानक मुख्यमंत्री मनोहर लाल बिना किसी पूर्व घोषित कार्यक्रम के इस कार्यक्रम में पहुंच गए। पीछे पीछे डिप्टी चीफ मिनिस्टर भी पहुंच गए ।कहने वाले तो यह भी कहने से नहीं चूके कि मुख्यमंत्री ने इस कार्यक्रम में आकर भी एक तीर से दो शिकार किए हैं। एक तो इस बात का लाभ उत्तर प्रदेश के चुनाव में मिलेगा दूसरे गुरुग्राम में प्रवासी लोगों की अच्छी खासी संख्या है और इनके वोट भी यही बने हुए हैं । जाहिर है कि गुरुग्राम में चुनाव के समय पंजाबी और प्रवासी एक पलड़े में चढ़ जाएंगे तो इसका बहुत बड़ा राजनीतिक लाभ किसी भी पंजाबी उम्मीदवार को मिल सकता है। वैसे जानकार यह मानकर चलते हैं कि कुछ भी हालात हो यदि मुख्यमंत्री मनोहर लाल गुरुग्राम से चुनाव लड़ते हैं तो उनके लिए यह चुनाव कठिन नहीं होगा और वे निश्चित तौर पर चुनाव जीत जाएंगे। परंतु अब हम यह जरूर कह सकते हैं कि गुड़गांव वासियों को मौजूदा सरकार में उनका मंत्री बनने की आस पक्के तौर पर छोड़ देनी होगी। वैसे भी हरियाणा में मंत्रिमंडल के विस्तार और फेरबदल की अभी कोई संभावना है नहीं हां चर्चाएं जरूर है। Post navigation कोरोना के नए वैरिएंट से बचाव की दिशा में स्वास्थ्य विभाग रहे सजग-डा. बनवारी लाल असंगठित क्षेत्रों के कामगारों का ई -श्रम योजना के तहत होगा 2 लाख रुपए तक का दुर्घटना बीमा – डीसी