77 वर्ष पहले हिसार के हलवाई से खाई गई मिटाई की उधारी चूकाने के लिए अमेरिका से आए बीएस उप्पल

10 हजार रूपए देना चाहा मगर उन्होने केवल पुरानी राशि ली 
उप्पल उस पनडुब्बी के कमांडर थे जिसने भारत-पाक युद्ध के दौरान पाकिस्तान के जहाज को डुबो दिया था और अपनी पनडुब्बी तथा नौसैनिकों को सुरक्षित ले आए थे

हिसार, 4 दिसम्बर   । मनमोहन शर्मा

हरियाणा में प्रथम नौसेना बहादुरी पुरस्कार से सम्मानित होने वाले नौसेना कॉमोडोर बीएस उप्पल सेवानिवृति के पश्चात अपने पुत्र के पास अमेरिका में रहते हैं। वे गत दिवस हिसार के मोती बाजार स्थित दिल्ली वाला हलवाई के पास पहुंचे और दुकान के स्वामी विनय बंसल को बताया कि  ‘ तुम्हारे दादा शम्भू दयाल बंसल को मैंने 1954 में 28 रूपए देने थे, परंतु मुझे अचानक शहर से बाहर जाना पड़ गया और नौसेना में भर्ती हो गया। आपकी दुकान पर मैं दही की लस्सी में पेड़े डालकर पीता था जिसके 28 रूपए मैंने देने थे। फौजी सेवा के दौरान हिसार आने का मौका नहीं मिला और रिटायर होने के बाद मैं अमेरिका अपने पुत्र के पास चला गया। वहां मुझे हिसार की दो बातें हमेशा याद रहती थीं। एक तो आपके दादा जी के 28 रूपए देने थे और दूसरा मैं हरजीराम हिन्दु हाई स्कूल में दसवीं पास करने के बाद नहीं जा सका था।

आप की राशि का उधार चुकाने और अपनी शिक्षण संस्था को देखने के लिए मैं आज विशेष रूप से हिसार में आया हूं। श्री उप्पल ने विनय बंसल के हाथ में दस हजार की राशि रखी तो उन्होंने लेने से इंकार कर दिया। तब श्री उप्पल ने आग्रह किया कि ‘ मेरे सिर पर आपकी दुकान का ऋण बकाया है, इसे उऋण करने के लिए कृपया यह राशि स्वीकार कर लो। मैं अमेरिका से विशेष रूप से इस कार्य के लिए आया हूं। मेरी आयु 85 वर्ष है कृपया इस राशि को स्वीकार कर लो। तब विनय बंसल ने मुश्किल से उस राशि को स्वीकार किया तो श्री उप्पल ने राहत की सांस ली। उसके बाद अपने स्कूल में गए और बंद स्कूल को देखकर निराश लौट आए।

स्मरण रहे कि श्री उप्पल उस पनडुब्बी के कमांडर थे जिसने भारत-पाक युद्ध के दौरान पाकिस्तान के जहाज को डुबो दिया था और अपनी पनडुब्बी तथा नौसैनिकों को सुरक्षित ले आए थे। इस बहादुरी के लिए भारतीय सेना ने उन्हें बहादुरी के नौसेना पुरस्कार से सम्मानित किया था।

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