मंत्र-तंत्र साधना में शनैश्चचरी अमावस्या का विशेष महत्व : कौशिक

शनैश्चचरी अमावस्या पर पीपल पूजन से होता जन्मकुंडली के कई दोषों का निवारण।

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक

कुरुक्षेत्र,3 दिसंबर : – 4 दिसंबर को शनिवार को शनैश्चरी अमावस्या है, जिसका ज्योतिष शास्त्र में विशेष महत्व माना जाता है। कुरुक्षेत्र यज्ञ मन्दिर ट्रस्ट दुख:भंजन मार्ग कुरुक्षेत्र के सचिव वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक ने जानकारी देते हुए बताया कि अमावस्या तिथि के दिन शनिवार दिन होने से इस को शनैश्चराी अमावस्या कहते हैं। यह दिन मंत्र-तंत्र साधना के लिए भी अति उत्तम दिन माना जाता है। व्यास जी ने कहा है कि इस अमावस्या काल में गंगाजी व कुरुक्षेत्र के 48 कोस के किसी भी तीर्थ में स्नान करने से हजारों गायों के दान का फल मिल जाता है। इस दिन अपने पूर्वजों के निमित्त पीपल का पेड़ लगाने से, श्राद्ध तर्पण, दान, पूजा-पाठ करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। अमावस्या एक ऐसी तिथि है, जिसकी रात्रि में संपूर्ण अंधकार होता है। अन्य रात्रियों में चंद्रमा के दर्शन प्राय: हो जाते हैं परंतु अमावस्या में चंद्रमा के दर्शन नहीं होते हैं। वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक ने बताया कि अमावस्या कृष्ण पक्ष की सबसे अंतिम रात्रि होती है, जिसके बाद शुक्ल पक्ष प्रारंभ हो जाता है। इस दिन पीपल के वृक्ष के मूल में विष्णु भगवान का पूजन करने का विधान दिया गया है।

इस दिन गऊशालाओं में कम से कम अपने वजन के बराबर गऊओं को हरी घास खिलाने का भी महत्व माना जाता है। अमावस्या को स्त्रियां अपने सुहाग की रक्षा और आयु वृद्धि के लिए पीपल की पूजा करती हैं। कौशिक जी ने बताया कि पीपल के वृक्ष को स्पर्श करने मात्र से पापों का क्षय हो जाता है और परिक्रमा करने से आयु बढ़ती है। संतान, पुत्ररत्न तथा लक्ष्मी की प्राप्ति होती है और जातक मानसिक तनाव से मुक्त हो जाता है। इस दिन काले रंग के बछड़े व काली गाय को गुड़ व हरी घास खिलाने का भी विशेष महत्व माना जाता है। इससे शत्रुओं का दमन और मुकद्दमे में विजय प्राप्त सभी मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं।

जिन व्यक्तियों की जन्म कुंडली में शनि की साढे सती या ढैया है या वे व्यक्ति जो भूमि के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं और उनके कारोबार मंदी के दौर से गुजर रहे हैं और मानसिक तनाव से ग्रसित हैं उनको इस दिन का लाभ उठाना चाहिए। उनको इस दिन जरूरतमंद व्यक्तियों को गर्म वस्त्र, कंबल इत्यादि दान करना चाहिए और वेद पाठशालाओं में ब्रह्मचारियों को वस्त्र, फल, छुआरे, खजूर इत्यादि का दान करना चाहिए।

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