बेटियां बचाओ पर पढ़ाओ भी

-कमलेश भारतीय

बेटी बचाओ , बेटी पढाओ नारा दिया था हरियाणा के पानीपत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने । पानीपत को इसलिए चुना गया क्योंकि यहां तीन तीन बड़ी लड़ाइयां लड़ी गयी थीं और बेटियों को बचाने की लड़ाई का श्रीगणेश भी यहीं से किया जाना उचित समझा गया । वैसे यहां निरक्षरता के खिलाफ भी लड़ाई लड़ने के खूब जिक्र हैं । बेटियां दहेज प्रथा के चलते बोझ मानी जाती हैं और इनके पैदा होने पर कोई थाली नहीं बजाई जाती या खुशी नहीं मनाई जाती । बेटियों को तो बस बोझ मान कर पाला पोसा जाता है । इन्हें मुश्किल से स्कूल तक पढ़ने दिया जाता है और आगे की पढ़ाई पढ़ना भी चाहें तो नहीं करवाई जाती । मन मार कर ये घर बैठ जाती है और इनके सपने ज्यों के त्यों रह जाते हैं । जिंदगी बेरंग हो जाती है ।

राजस्थान के जैसलमेर से ऐसी ही खबर आई है कि बेटियां तो बचाईं लेकिन रोक दी पढ़ाई । छह साल से बड़ी 36 प्रतिशत बच्चियां स्कूल नहीं जातीं । हर तीसरी बेटी पंद्रह सोलह साल की उम्र में ही मां बन जाती है । जैसे विज्ञापन आया करता था कि मटकी क्यों फूटी ? कच्ची उम्र में बेटियों की शादी उनकी जान पर खतरे की तरह ही होती है और प्रसव वेदना में ये कच्ची मटकियां फूट जाती हैं ।

सर्वेक्षण के अनुसार प्रतापगढ़- जैसलमेर में चालीस प्रतिशत लड़कियां दसवीं तक भी नहीं पढ़ रहीं । इसके कारण जो सामने आए हैं उनमें स्कूल दूर होना , कम उम्र में शादी कर देना और इसी के चलते मातृ शिशु मृत्यु दर भी बढ़ती जा रही है । कहीं कहीं परिवार की आर्थिक स्थिति भी बेटियों की शिक्षा न होने का कारण है । इसलिए इन बच्चियों को या तो घर के काम काज में खपा दिया जाता है या फिर मेहनत मजदूरी में लगा दिया जाता है ।

बेटियों की हालत का यह एक छोटे स्तर पर किया गया सर्वेक्षण है । यह एक संकेत है कि सिर्फ नारा देना काफी नहीं है । बेशक बेटियां बचाई जा रही हैं और इनकी जन्मदर भी लड़कों के मुकाबले बढ़ रही है या सुधर रही है लेकिन यदि इनको शिक्षा न दी गयी तो इनका जीवन नर्क बनाने के समान होगा । अच्छा होगा जहां बेटी बचाने की मुहिम चलाई जा रही है, वहीं बेटी को पढ़ाने की मुहिम भी उतने ही ज़ोर शोर से चलाई जाये ।
-पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।

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