डॉ. अम्बेडकर भारत के लिए ही नहीं अपितु पूरे विश्व के लिए एक आदर्श : प्रो. रोनकी राम।
अखण्ड भारत की पहचान भारत का संविधान है : प्रो. मोहम्मद अफजल वाणी।
कुवि के डॉ. भीम राव अंबेडकर अध्ययन केंद्र द्वारा राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित।

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक

कुरुक्षेत्र, 26 नवम्बर :- कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा ने बाबा साहेब के जीवन एवं भारतीय संविधान पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बाबा साहेब ने जिस भेदभाव को सहन किया उसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि जाति, धर्म, भाषा एवं प्रांतीयता के आधार पर किए जाने वाला भेदभाव सबसे बड़ा अपराध है। उन्होंने कहा डॉ. अम्बेडकर का मानना था कि भाग्य को बदलने का एकमात्र सहारा शिक्षा है। शिक्षा से ही हम समाज में फैले अंधकार को दूर कर सकते हैं। डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने बिना विचलित हुए अपने जीवन में नारी मुक्ति, जाति विहीन समाज व अंधविश्वास के खिलाफ लड़ाई लड़ी। तब से लेकर आज तक हमारे देश में मजबूत लोकतांत्रिक परम्परा रही है जो हमारे संविधान के कारण संभव हुआ है क्योंकि हमारे देश का संविधान देश का सबसे मजूबत स्तंभ है जो हमें दूसरे देशो से अलग करता है। हमारी विविधता के अंदर एकता हमारी पहचान है जिसे बनाए रखने की क्षमता हमारे संविधान में है।

उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान में बाबा साहेब की आत्मा निवास करती है। यह एकमात्र दुनिया का ऐसा संविधान है जो विविधतापूर्ण भारत होते हुए भी पूरे देश को एकता के सूत्र में बांधे हुए है। वे शुक्रवार को कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के सीनेट हॉल में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के डॉ. भीम राव अंबेडकर अध्ययन केंद्र द्वारा कुवि के सीनेट हॉल में डॉ. बीआर अम्बेडकर तथा भारतीय लोकतंत्र विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार में बतौर मुख्यातिथि बोल रहे थे। इससे पहले कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा, प्रो. रौनकी राम, प्रो. मोहम्मद अफजल वाणी, कुलसचिव डॉ. संजीव शर्मा, प्रो. महाबीर नरवाल, डॉ. गोपाल प्रसाद ने डॉ. अम्बेडकर की प्रतिमा पर दीप प्रज्ज्वलित कर उन्हें पुष्पांजलि अर्पित की। इस मौके पर अध्ययन केन्द्र की ओर से सम्पादित पुस्तक एसेज ऑन डॉ. बीआर अम्बेडकर का विमोचन कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा ने किया।

कुलपति ने कहा कि बाबा साहेब उच्चकोटि के विद्वान, सुलझे हुए विचारक, ओजस्वी लेखक, प्रखर पत्रकार, लोकप्रिय वकील, महान अर्थशास्त्री, और भारतीय संविधान के निर्माता, दलितों, नारी के उत्थान के प्रहरी, शोषितों और पीड़ित मानवता के प्रबल समर्थक थे। कुवि कुलपति प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा ने विश्वविद्यालय के ध्येय वाक्य योगस्थ कुरू कर्माणि के विषय में बताते हुए कहा कि योग का अर्थ किसी भी प्रकार की परिस्थिति में विचलित न होना है। इसी प्रकार का उदाहरण भारतरत्न डॉ. भीमराव अम्बेडकर के जीवन से मिलता है जिन्होंने जीवन में चुनौतियों का सामना किया तथा किसी भी परिस्थिति में विचलित नहीं हुए। कुवि कुलपति प्रो. सोमनाथ ने डॉ. भीम राव अम्बेडकर स्टडीज सेन्टर में डॉ. अम्बेडकर के जीवन के अनछूए पहलुओं को लेकर शोध करने पर भी जोर दिया।

कार्यक्रम के प्रथम मुख्य वक्ता पंजाब विश्वविद्यालय के राजनीतिक विज्ञान विभाग के प्रोफेसर रोनकी राम ने कहा कि मोहम्मद बिन कासिम के आक्रमण से लेकर आजादी तक भारत में कभी लोकतंत्र नहीं रहा। उन्होंने बताया कि 712 ईस्वी से पहले भारत का अफगानिस्तान के साथ बेटी-रोटी के सम्बंध थे लेकिन इसके पश्चात् समाज में अस्पृश्यता बढ़ी। परन्तु डॉ. अम्बेडकर ने संविधान द्वारा लोगों को सामाजिक एवं राजनीति न्याय प्रदान किया जो समानता, स्वतंत्रता एवं बंधतत्व पर आधारित था। सामाजिक वैज्ञानिक बनने के लिए इतिहास को विज्ञान की तरह पढ़ने की आवश्यकता है। भारत में काफी समय राज करने वाले मुगलों तथा अंग्रेजों ने सामाजिक समस्याओं में सुधार के लिए कोई भी कार्य नहीं किया।

कार्यक्रम के दूसरे मुख्य वक्ता इद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय दिल्ली के प्रो. मोहम्मद अफजल वाणी ने संविधान दिवस की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि डॉ. भीमराव अम्बेडकर भारत के लिए ही नहीं अपितु पूरे विश्व के लिए एक आदर्श है। उन्होंने बौद्व संस्कृति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह संस्कृति अनेक देशों में विकसित थी जिसमें अफगानिस्तान, कम्बोडिया, भूटान, तिब्बत व जापान आदि सम्मिलित थे। उन्होंने कहा कि अखण्ड भारत की पहचान भारत का संविधान है।

उन्होंने तालिबान द्वारा अफगानिस्तान में बौद्ध प्रतिमाओं को तोड़े जाने पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने इस बात को भी खारिज किया कि भारतीय संविधान विदेशी संविधानों से लिया गया है। उन्होंने बिना नाम लिए पाकिस्तान के विषय में कहा कि वह इसलिए लोकतंत्र नहीं है क्योंकि संविधान हमारे पास है उनके पास नहीं। इतनी विविधताओं एवं चिंताओं के होते हुए भी उन्होंने ऐसा संविधान बनाया जो पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि 26 नवम्बर 1949 को विश्व की सबसे बड़ी घटना भारत का संविधान था। इसके साथ ही उन्होंने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में स्थापित डॉ. अम्बेडकर स्टडीज सेन्टर द्वारा किए गए कार्यों की सराहना की।

केन्द्र के निदेशक डॉ. महाबीर नरवाल ने सभी का स्वागत करते हुए कहा कि डॉ. अम्बेडकर एक विख्यात सामाजिक कार्यकर्ता, अर्थशास्त्री, कानूनविद, राजनेता और समाज सुधारक थे। उन्होंने दलितों और निचली जातियों के अधिकारों के लिए छुआछूत और जाति भेदभाव जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ संघर्ष किया। उन्होंने भारत के संविधान को तैयार करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने केन्द्र की गतिविधियों के बारे में भी विस्तारपूर्वक बताया। केन्द्र के उप-निदेशक डॉ. गोपाल प्रसाद ने सभी अतिथियों का धन्यवाद किया। मंच का संचालन केन्द्र के सहायक निदेशक डॉ. प्रीतम सिंह ने किया।

इस मौके पर कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि कुवि कुलसचिव डॉ. संजीव शर्मा, अम्बेडकर केन्द्र के उप-निदेशक डॉ. गोपाल प्रसाद, डॉ. प्रीतम सिंह, प्रो. अनिल मित्तल, प्रो. तेजेन्द्र शर्मा, प्रो. चांद राम जिलोवा, प्रो. दलीप कुमार, प्रो. सुभाष चन्द्र, डॉ. सतीश कुमार, डॉ. एसके दुबे, प्रो. फकीर, डॉ. रमेश कुमार सिरोही, डॉ. कृष्णा देवी, डॉ. ललित गौड़, डॉ. प्रदीप चौहान, डॉ. सोमवीर जाखड़, डॉ. जोगिन्द्र सिंह, डॉ. पवन कुमार, डॉ. कामराज सिंधू, डॉ. संत लाल, डॉ. महाबीर रंगा, डॉ. रामचन्द्र, डॉ. जितेन्द्र जांगड़ा सहित 150 शोधार्थी, प्रतिभागी एवं समाजसेवी मौजूद थे।

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