पंचकूला —लगभग पिछले 1 वर्षों से खेतों में काम करने वाले किसान अपने हक की लड़ाई लड़ते नजर आ रहे थे । मगर अपनी जिद के कारण सत्ताधारी सरकार को इस किसान आंदोलन के दौरान हुई किसानों की मौत का भी कुछ फर्क नही पड़ा । सत्ताधारी सरकार की किसानों पर ज्यादती ओर हठ के कारण सँघर्ष कर रहे किसानों को मौसम की मार भी टस से मस नही कर पाई । लेकिन सत्ता की लालच ओर लोकतंत्र के खोफ ने नजदीक आ रहे 2022 के चुनावों ने इस अहंकारी सत्ता पर राज कर रही सत्ताधारी सरकार को लोकतंत्र ने घुटने टेकने पर मजबूर कर कृषि कानूनों को खत्म करने के लिये झुका कर रख दिया । यह बात अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार ऑब्जर्वर्स महिला विंग की अंतरराष्ट्रीय निदेशिका प्रीति धारा ने एक प्रेसविज्ञप्ति जारी करते हुए कही ।

उन्होंने कहा कि भारत देश एकता और आपसी भाईचारे का दुनिया मे प्रतीक है । देश के महापुरुषों ने जब अंग्रेजो के तानाशाही रवैये को टिकने नही दिया ओर उन्हें देश से बाहर निकाल आजाद भारत की नींव रख एक नई शुरुवात की । उस समय भी अनगिनत देश भक्तो ने अपनी जान की कुर्बानी दी तो इस लोकतान्त्रिक भारत देश मे कोई कैसे अपनी जिद्द से लोकतंत्र को खत्म कर सकता है । यह केवल किसान आंदोलन नही था । यह आंदोलन हो रहे देश के नागरिकों का हो रहा मानव अधिकार हनन पर एक सँघर्ष था । जिसे देश के हर नागरिक का समर्थन और पूर्ण विश्वास था ।

उन्होंने कहा वर्ष 2022 चुनावो को लेकर जिस प्रकार से इस सत्ताधारी सरकार ने कृषि कानूनों को वापिस लेने का जो फैंसला लिया है । उसे देश की जनता भली भांति जानती है । और आने वाले चुनाव में देश की जनता जो भी फैंसला लेगी वो बहुत महत्वपूर्ण होगा क्योंकि इस आंदोलन के कारण चल रहे सँघर्ष ने ना जाने कितने परिवारों के चिराग बुझे हैं और ना जाने कितने किसानों पर मुकद्दमे दर्ज हुए । जिसका फैंसला देश की जनता सोच विचार कर इन राजनेतिक दलों को सत्ता की कुर्सी सौंपेगी ।महज कृषि कानून वापिस लेने से सत्ता की कुर्सी पर पहुंचने की राह आसान नही है ।

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