सरसों में कीटों की पहचान व रोकथाम से बढ़ा सकते हैं पैदावार

कम खर्च में अधिक लाभ देती है सरसों की फसल

हिसार : 17 नंबवर – सरसों रबी में उगाई जाने वाली फसलों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। सरसों वर्गीय फसलों के तहत तोरिया, राया, तारामीरा, भूरी व पीली सरसों आती हैं। हरियाणा में सरसों मुख्य रूप से रेवाड़ी, महेन्द्रगढ़, हिसार, सिरसा, भिवानी व मेवात जिलों में बोई जाती है। किसान सरसों उगाकर कम खर्च में अधिक लाभ कमा रहे हैं। अगेती सरसों में चित्तकबरा कीड़ा (धोलिया) अधिक हानि पहुंचाता है तथा पछेती सरसों में चेपा का अधिक प्रकोप रहता है। इसलिए किसानों को इन फसलों की तापक्रम व मौसम की अनुकूल परिस्थिति को ध्यान में रखकर बिजाई करनी पड़ती है। किसान सरसों के कीटों को अच्छी तरह पहचान कर उनका आसानी से नियंत्रण कर सकते हंै। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बी.आर. काम्बोज ने किसानों से आह्वान किया कि वे विश्वविद्यालय से जुडक़र और वैज्ञानिक सलाह लेकर समय-समय पर अपनी फसलों संबंधी जानकारी हासिल कर सकते हैं और अपनी फसलों की पैदावार में बढ़ोतरी कर सकते हैं। आनुवांशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग के अध्यक्ष डॉ. एस.के. पाहुजा के अनुसार अगेती व पछेती सरसों की फसल में कई प्रकार के कीटों का प्रकोप हो सकता है, जिनकी किसान समय से पहचान कर रोकथाम कर फसल से अधिक पैदावार हासिल कर सकते हैं। डॉ. रामअवतार व डॉ. दलीप कुमार ने बताया कि सभी कीटनाशकों का छिडक़ाव सदैव सायंकाल को 3 बजे के बाद करें ताकि मधुमक्खियों को कोई नुकसान न हो, जो उपज बढ़ाने में सहायक होती हैं।

चित्तकबरा कीट या धोलिया : यह सरसों का मुख्य कीट है जिसके शिशु व प्रौढ़ पौधों से रस चूसकर नुकसान पहुंचाते हैं। इसके शिशु व प्रौढ़ अण्डाकार होते हैं जिनके उदर पर काले भूरे धब्बे होते हैं। यह पौधों के विभिन्न भागों से रस चूसकर नुकसान पहुंचाते हैं जिसके कारण पौधे की पत्तियों पर सफेद धब्बे बन जाते हैं। इसलिए इस कीट को धोलिया भी कहते हैं। इसके अधिक आक्रमण से पौधे सूख जाते हैं। कीट का प्रकोप फसल की प्रारंभिक अवस्था व कटाई के समय अधिक होता है। अधिक सर्दी में वयस्क अवस्था में निष्क्रिय रहता है। फसल उगने के समय इस कीट का आक्रमण होने पर 200 मि.ली. तथा फसल कटाई के समय होने पर 400 मि.ली. मैलाथियान 50 ई.सी. का 200 व 400 लीटर पानी प्रति एकड़ की दर से छिडक़ाव करें।

सरसों की आरा मक्खी : यह हाइमेनोप्टरा वर्ग का एकमात्र हानिकारक कीट है जो फसल को नुकसान पहुंचाता है। इस कीट की गहरे रंग की सूंडी पत्तियों में छेद करके तथा नई प्ररोह को काटकर हानि पहुंचाती है। इसकी सूण्डी दिन के समय छिपी रहती है। छेडऩे पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे मरी पड़ी हो। इसके उदर के ऊपरी भाग पर पांच काले रंग की पट्टियां होती हैं।

सरसों का माहू/चेपा/अल : इस कीट के शिशु व प्रौढ़ समूह में रहकर पौधों पर आक्रमण करते हैं जिससे फलियां व तना चिपचपा हो जाता है। फलियों में दाने नहीं बन पाते हैं और दाने बनते भी हैं तो कमज़ोर बनते हैं। यह कीट हल्के हरे रंग का होता है। जो कभी पंख रहित व कभी पंख सहित होता है जो फरवरी-मार्च माह में उड़ते भी दिखते हैं। इस कीट की संख्या दिसम्बर से मार्च माह तक प्रचुर मात्रा में होती है। कीट बिना निषेचन के ही सीधे शिशु पैदा करते हैं।

रोकथाम : इनकी रोकथाम के लिए किसान सरसों फसल की बिजाई अधिक देरी से न करें और आक्रमण होने पर कीटग्रस्त टहनियों को तोडक़र नष्ट कर दें। यदि कीट का आर्थिक स्तर 10 प्रतिशत पुष्पित पौधों पर 9-19 कीट या औसतन 13 कीट प्रति पौधा होने पर 250 से 400 मि.ली. (मिथाइल डेमेटान मेटासिस्टॉक्स) 25 ई.सी. या डाइमेथोऐट (रोगोर) 30 ई.सी. को 250 से 400 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिडक़ाव करें। आवश्यकता पडऩे पर दूसरा छिडक़ाव 15 दिन बाद करें।

सुरंग बनाने वाली सूण्डी : इस कीट की सूंडियां पत्तियों में सुरंग बनाकर हरे पदार्थ को खाती हैं। पत्ता सूर्य की तरफ करने पर कीट साफ दिखाई देता है। पौधे कमजोर हो जाते हैं तथा उत्पादन पर भी असर पड़ता है।

माहू/अल की रोकथाम हेतु बताए गए कीटनाशक से इसे आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है।

बालों वाली सूंडियां : इन सूंडियों का आक्रमण अक्तूबर से नवंबर में अधिक होता है। आरंभ में यह सूंडियां सामूहिक रूप में रहकर फसल की पत्तियों को खा जाती हैं। बड़े होने पर अकेले रहकर सारे खेत में फैल जाती हैं। ऐसी पत्तियां जिन पर सूंडियां समूह में हों उन्हें तोडक़र नष्ट कर देना चाहिए।

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