-कमलेश भारतीय राजनीति और पैर पखारने ? क्या एक ही चीज़ का नाम है ? राजनीति में एक फोटो बहुत तेज़ी से वायरल हो रहा है -हरियाणा के दाढ़ी वाले बाबा का , जिनके पैर उनके समर्थक पखारते हुए दिख रहे हैं । उनकी आरती भी उतारी गयी बताते हैं । यह वाकया उनके एक समर्थक के घर पारिवारिक समारोह में हुआ बताया जा रहा है । इस पर कुलदीप बिश्नोई ने चुटकी ली है कि कंगना के बाद इन महाशय को भी पद्मश्री मिल जानी चाहिए । हालांकि उनके समर्थकों का बचाव में यह कहना है कि जैन समाज में किसी को सम्मानित करने के लिए गर्म पानी में धोया जाता है । हमारे यहां यह विधि प्राचीन काल से चली आ रही है । उनका सम्मान संत के तौर पर किया गया । यह सम्मान जीवन पर्यंत उनकी साधु समान आचरण की कठिन तपस्या को देखते हुए दिया गया है । इस पर हम कुछ नहीं कहना चाहते । यह किसी की आस्था का विषय हो सकता है लेकिन राजनीति में यह परंपरा बहुत पुरानी है । आपको याद दिला दूं कि पंजाब के मटौर में हुए एक कार्यक्रम में तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह को युवराज संजय गांधी की चप्पलें उठाते देखा गया था । बाद में वे राष्ट्रपति पद तक पहुंचे और तब भी चौंकाने वाला बयान दिया था कि इंदिरा गांधी मेरी नेता हैं , वे यदि झाडू लगाने को भी कह देंगीं तो लगाऊंगा । सही कविता लिखी थी बाबा नागार्जुन ने : रानी हम ढोयेंगे पालकी ,,,,आपको दूर की नहीं बहुत निकट की याद दिला दूं जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पांव भी एक समाज के लोगों को पखारते देखा गया था । इस तरह पालकियां ढ़ोते, चरण पखारते आम दृश्य बनते जा रहे हैं राजनीति में । घुटनों तक हाथ छुआना तो आम रिवाज बन चुका है ।क्या यह अंध श्रद्धा राजनीति में उचित है ? क्या यह घुटने टेकने राजनीति में जरूरी हैं ? इसके बिना भी क्या होगा राजनीति में ? आप हर कार्यक्रम में घुटने छुआते या पांव पर माथा नवाते समर्थकों को देख सकते हो और कल्पना कर सकते हो कि यह किसी अंधभक्ति से कम है क्या ? राजनीति में प्यार और श्रद्धा होना कोई बुराई नहीं । तमिलनाडु की अम्मा यानी जयललिता भी इसकी बुरी तरह से शिकार हुई । पांव छुआते छुआते शशिकला ने सारा राज-पाट ही छीन लिया था और आखिरी दिनों किसी से मिलने न दिया । यही हाल बसपा की सुप्रीमो मायावती ने कांशीराम का किया। पंजाब से कांशीराम के परिवार के लोग भी उन्हें मिल नहीं पाये । चरण छुआते छुआते राज-पाट ही गंवा बैठे । कितने ऐसे उदाहरण होंगे कि कैसे समर्थक ने भी सत्ता पलट दी साहब की । इसलिए ये पैर पखारने या चरण छुआने से संकोच करना चाहिए नेताओं को ।-पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी । Post navigation सत्ता के साथ तो पद्मश्री और विरोध तो छापे इतिहास में लाला लाजपत राय का नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है