-कमलेश भारतीय

अधिकारी होते हैं स्वतंत्र भारत में या जनसेवक ? संविधान के अनुसार संभवतः जनसेवक होते हैं अधिकारी लेकिन जितना ठाठ बाठ इन अधिकारियों का देखने में आता है , वह कभी कभी मंत्रियों के बराबर लगने लगता है और यह भी कि काश , हम भी आईएएस हो गये होते । पर हमने तो कलम की मजदूरी करनी थी क्योंकि हम ठहरे मुंशी प्रेमचंद के वारिस जो समाज पर पहरा दे सकें ।

हरियाणा का उदाहरण दूं तो हिसार में पहले उपायुक्त और बाद में आयुक्त रहे डाॅ युद्धवीर ख्यालिया ने अपनी सारी ताकत रक्तदान में लगा दी । मेरी बेटी रश्मि पीजीआई में दाखिल थी और उन्हें कहीं से पता चला तो मुझे फोन आया कि रक्तदान की जरूरत हो तो बता दीजिए , मैं इंतजाम करवा दूंगा । संयोग से रक्तदान का प्रबंध हो चुका था लेकिन जो सद्भाव डाॅ ख्यालिया ने दिखाया , उसे आज तक भूल नहीं पाया । ये लगातार बड़े बड़े रक्तदान शिविर आयोजित करते रहते थे । ये जनसेवक की श्रेणी में रखे जा सकते हैं पर हमारे आईएएस अधिकारी अशोक खेम्का न अधिकारी बनने दिये गये और न ही जनसेवक । इतने तबादले किये गये कि कीर्तिमान बन गया । हां , कार छीनी तो साइकिल पर सचिवालय चल दिये मीडिया की छांव में । कोई भी सरकार आई इन्हें तबादले ही झेलने पड़े । अब तो खेम्का ने अपने तबादलों पर किताब ही लिख दी है ।

खैर , एक आईपीएस अधिकारी श्रीकांत जाधव आए थे हिसार । तलवंडी राणा के निकट रात के समय एक कार को गाय ने टक्कर मार दी और उसमें सवार लोग ऐन घर के पास आकर जान गंवा बैठे । बस , इस घटना से इतने द्रवित हुए कि मिशन स्ट्रे कैटल अभियान ही चला दिया । एक एक गौशाला में गये और सहयोग मांगा । इस तरह लगभग हिसार की सड़कों पर निराश्रित गाय गौशालाओं में पहुंचा दीं । एक और आईपीएस मित्र राजवीर देसवाल जो जहां भी रहे नये अभियान चलाते रहे । फतेहाबाद में रहे तो फतेह ध्वज संस्था बना कर सामाजिक ही नहीं साहित्यिक कार्य किये तो अम्बाला में साइकिल रैलियां कर सामाजिक अभियान चलाये ।

अब आपका ध्यान दिलाता हूं हिसार नगर निगम के आयुक्त व साहित्य प्रेमी अशोक गर्ग को ओर । फैसला आपने करना है कि वे अधिकारी की श्रेणी में रखे जायें या जनसेवक की श्रेणी में । पहले पहले उन्होंने महिला दिवस पर सफाई महिला कर्मियों के सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गुरु जम्भेश्वर विश्विद्यालय के रणबीर सभागार में जिसे खूब सराहना मिली । फिर वे इनके साथ गलियों में झाडू लगाते भी दिखे और कहा भी सिर्फ दिखावे के लिए नहीं बल्कि सचमुच आपके बराबर झाडू लगाने आया हूं । फिर दिखे पुस्तकालय बनाने के लिए किताबें इकट्ठी करते ताकि इन सफाई कर्मियों के बच्चों को पुस्तकें मिल सकें और उनकी पढ़ाई जारी रह सके । अब तो एक दो नहीं कई कदम आगे जाकर क्रांतिकारी कदम उठा दिया । निगम के अधिकारियों के शौचालयों पर ताले लगवा कर ताकि ये आम जनता के लिए बनें शौचालयों का उपयोग करें और जानें कि इनकी इतनी दुर्दशा क्यों है ? कुछ अधिकारियों के निजी शौचालय जनता के लिए खोल दिये हैं । अब ऐसे क्रांतिकारी कदम उठाने पर किस श्रेणी में रखेंगे आप ? वैसे ऐसे अधिकारियों के लिए दुष्यंत कुमार के शब्दों में कह सकता हूं :

कौन कहता है आसमान में सुराख़ हो नहीं सकता
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो ,,,
-पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।

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