ऐलनाबाद उपचुनाव में 21 दलित बूथों में से सिर्फ एक बूथ पर सैलजा के कंडीडेट पवन बेनीवाल को जीत नसीब हुई। एक बूथ पर वो दूसरे नंबर पर रहे। बाकी सभी बूथों पर वो तीसरे नंबर पर रहे। भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक गुरुग्राम। दलित चेहरा होने और दलित नेता होने में जमीन-आसमान का फर्क है। ये फर्क ऐलनाबाद उपचुनाव में स्पष्ट तौर पर नजर आया है। यह चुनाव कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा के लिए अपने आप को साबित करने के लिए बड़ा मौका था। क्योंकि प्रदेश में पार्टी की कमान उनके हाथ है, साथ ही पार्टी ने उनके कंडीडेट पवन बेनिवाल को ही टिकट देकर चुनाव मैदान में उतारा, चुनाव लड़ाने और पार्टी के तमाम नेताओं की ड्यूटी लगाने का जिम्मा भी खुद कुमारी सैलजा पर था। बावजूद इसके पवन बेनीवाल अपनी जमानत नहीं बचा पाए। कांग्रेस और कुमारी सैलजा के लिए इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि दलित बूथों पर भी पवन बेनिवाल पूरी तरह फिसड्डी साबित हुए। सैलजा का धुआंधार प्रचार दलित वोटर्स पर कोई असर नहीं छोड़ पाया। दलित बूथों पर वोटिंग का पैटर्न देखा जाए तो आंकड़े शर्मसार करने वाले हैं। बेनिवाल दूर-दूर तक कहीं भी प्रतिद्वंदि उम्मीदवारों के मुकाबले में नजर नहीं आए। बल्कि इस चुनाव के मुकाबले 2019 के चुनाव में मिले टोटल दलित वोट बहुत ज्यादा पवन बेनीवाल को हासिल हुए थे। 21 दलित बूथों में से सिर्फ एक बूथ पर सैलजा के कंडीडेट पवन बेनीवाल को जीत नसीब हुई। एक बूथ पर वो दूसरे नंबर पर रहे। बाकी सभी बूथों पर वो तीसरे नंबर पर रहे। जहां अभय चौटाला और गोपाल कांडा को लगभग हर बूथ पर 200-300 वोट मिल रहे थे। वहीं, 21 में से सिर्फ 2 बूथों पर बेनिवाल को 100 से ज्यादा वोट मिले। 19 बूथों पर उन्हें 100 से भी कम वोट मिले। हैरानी की बात है कि बेनिवाल को 21 में से 9 बूथों पर तो 50 या 50 से भी कम वोट मिले। एक बूथ (137) पर तो उन्हें सिर्फ 10 वोट प्राप्त हुए। इससे पहले बरोदा उपचुनाव में हाईकमान ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साधारण कार्यकर्ता को इंदुराज नरवाल को मैदान में उतारा था। पार्टी ने चुनाव की पूरी जिम्मेदारी हुड्डा को सौंपी थी। दीपेंद्र हुड्डा ने इंदुराज नरवाल के साथ अपनी साख को भी दांव पर लगा दिया था। कांग्रेस ने बरोदा में बड़ी जीत दर्ज की। बरोदा में एक-एक वोट हुड्डा के नाम पर पड़ा। हालांकि प्रदेश अध्यक्ष होने के बावजूद सैलजा बरोदा में एक-दो बार महज हाजिरी लगाने के लिए पहुंची थी। कॉर्पोरेशन के मेयर इलेक्शन में हुड्डा ने सोनीपत संभाला था । वहा जीत मिली और दूसरी और सेल्जा ने पंचकुला और अंबाला में जहा कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। ऐलनाबाद में सीन बिलकुल उलट था। यहां पहले दिन से कुमारी सैलजा ने मोर्चा संभाल लिया था। उनके पास बीजेपी से कांग्रेस में आए पवन बेनिवाल मजबूत कैंडिडेट थे। लेकिन चुनाव में ना बेनिवाल का दम दिखा और ना ही सैलजा का कोई असर दिखा दलित में। इसके विपरित पिछली बार 35 हजार वोट मिले थे घटकर 20 हजार रह गए और कांग्रेस पार्टी की जमानत जब्त हो गई । ना भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी एलनाबाद में एक दो प्रोग्राम को छोड़कर ज्यादा नजर नहीं आए । कांग्रेस पार्टी के लिए हिमाचल में ज्यादा दिन प्रचार करते नजर आए। Post navigation सड़क सुरक्षा समिति की मासिक बैठक आयोजित नमाज के लिए न हो पार्क का उपयोग