धर्मपाल वर्मा

चंडीगढ़ – कांग्रेस की नेत्री और समाज सेविका मुदिता शर्मा ने कहा है कि भारतीय जनता पार्टी के नेता राजनीति को एक इवेंट ,एक खेल की तरह खेल रहे हैं और जनता का साइक्लोजिकल ट्रीटमेंट करते और उसकी आंखों में धूल झोंकते हुए मुफ्त की वाहवाही लूटने का इंतजाम करके चल रहे हैं। इसे भाजपा की जादूगरी भी कहा जा सकता है और जादूगर की हाथ की सफाई भी। उन्होंने एक बयान में कहा कि भारतीय जनता पार्टी ने देशभर में उप चुनावो में अपना राजनीतिक धरातल खिसकते देख और फरवरी में कुछ प्रदेशों में हो रहे विधानसभा चुनाव के मध्य नजर जनता के दबाव में आकर पेट्रोल और डीजल के दाम घटाने का फैसला लिया है। इसमें कुछ टैक्स भारत सरकार ने घटा दिया कुछ हरियाणा सरकार ने । कुल मिलाकर हरियाणा में डीजल और पेट्रोल ₹12 लीटर सस्ते हुए हैं। इस फैसले के बाद भारतीय जनता पार्टी के समर्थक काख पीट रहे हैं, खुशियां मना रहे हैं और चाहते हैं कि जनता भी तालियां पीटे। कुछ लोग इस जादूगरी को समझे बिना तालियां पीट भी रहे हैं।

मुदिता शर्मा ने कहा कि पेट्रोल और डीजल के जितने रेट घटाए गए हैं उतने तो पिछले डेढ 2 महीने में बढ़ाए जा चुके थे।

₹30 बढ़ाकर यदि ₹12 घटा दिए जाएं तो इसे ₹12 का फायदा कहेंगे या ₹18 का नुकसान। असल में हो ही यह रहा है। सच्चाई यह है कि सरकार ने ₹12 दाम घटाकर जनता पर कोई बड़ा एहसान नहीं कर दिया है। वास्तविकता यह है कि थोड़ा-थोड़ा करके यही दाम एक डेढ़ महीने में फिर वही पहुंच जाएंगे। इस बात की क्या गारंटी है कि घटाए गए दाम फिर नहीं बढ़ेंगे ।उन्होंने कहा कि यदि भारतीय जनता पार्टी की दोनों सरकारें जनता को कोई राहत देना ही चाहती हैं तो पेट्रोल डीजल की बिक्री को जीएसटी के दायरे में ले कर आएं। लेकिन इस मामले में सरकार आरंभ से बहाने बनाते आ रही है और यह बहाने आगे भी जारी रहने की पूरी आशंका है। उन्होंने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार और हरियाणा की मनोहर लाल सरकार को इस तरह थोड़ी सी राहत देकर वाही वाही लूटने की अपेक्षा करने की बजाय इंधन की दरें घटाने की कोई ठोस व्यवस्था करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार को कांग्रेस पार्टी ने बार बार आंदोलन करके ऐसा करने को मजबूर किया है। बाकी अब जनता की एक ही मांग है कि डीजल पेट्रोल की बिक्री को जीएसटी के दायरे में शामिल किया जाए। उन्होंने कहा कि जागरूक लोग अभी से यह कहने लगे हैं कि सरकार पेट्रोल डीजल की दरो को लेकर उत्तर प्रदेश पंजाब उत्तराखंड आदि के चुनाव तक कुछ और दृष्टिकोण रखेगी और चुनाव संपन्न होते ही पहले की तरह महंगाई के चौके छक्के लगने शुरू हो जाएंगे।

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