प्राचीन राधे कृष्णा मन्दिर में परंपरागत तौर तरीकों से बनाया जाएगा ‘अन्नकूट’ का प्रशाद

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक

हिसार :- हिसार के साढ़े चार सौ साल पुराने मंदिर श्री राधे कृष्णा बड़ा मंदिर में आज भी अन्नकूट का परशाद परंपरागत तरीके से बनाया जाता है। मान्यता के अनुसार जब भगवान कृष्ण ने इंद्र के प्रकोप से न रुकनेवाली मूसलाधार वर्षा से बृजवासियों को बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत अपनी उंगली के ऊपर उठाया था उस समय भूख और प्यास से व्याकुल प्रजा के लिए संयुक्त रूप से इकट्ठा किये सभी खाद्य पदार्थों के मिश्रण से बने भोग को ‘अन्नकूट’ का प्रशाद कहा जाता है।

मंदिर मे महंत पंडित राहुल शर्मा ने बताया कि आज भी श्री राधे कृष्णा बड़ा मंदिर में श्री ठाकुर जी के प्रिय प्रशाद बाजरे की खिचड़ी और कढ़ी बनाई जाती है, जिसमें अन्नकूट से सात दिन पहले लस्सी इकठ्ठी की जाती है जो कि मिट्टी के बने झाकरों ( मिट्टी के बड़े घड़ों ) में रखी जाती है जिससे उसमें प्राकृतिक खटास और खुशबू भर जाती है। इसी तरह चार दिन पहले बाजरे को ऊखल मुस्सल से कूटना शुरू करते हैं फिर उसमें से लाली निकाल कर बाजरे को साफ किया जाता है जोकि खिचड़ी के लिए होता है।

पंडित राहुल शर्मा ने बताया कि बाजरे की खिचड़ी पंच धातु के टोकने (पात्र) में बनाई जाती है जिससे इसमें औषधीय गुण और परंपरागत स्वाद का समावेश होता है। कढ़ी और बाजरे की खिचड़ी पुरानी परंपरा के अनुसार चूल्हे पर लकड़ी और गोसे ( उपले ) की आंच पर ही बनाई जाती है। इनके अतिरिक्त ‘अन्नकूट’ प्रशाद में सुज्जी का हलवा, पंच मैली सब्जी, टिंड-फली, तले हुए पापड़, पुलाव, पूरी, आलू-गोभी की चटपटी सब्जी, खट्टा-मीठा पेठा, मूली का लच्छा बनाया जाता है। अन्नकूट का भोग गोवर्धन पूजा के दिन दोपहर 12 बजे लगता है, उसके बाद ही भक्तों को वितरित किया जाता है।

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