=भाजपा के स्टार प्रचारक भी नहीं पहुंचे ऐलनाबाद
=राकेश टिकैत ने अभय को दिया खुला समर्थन
=साम-दाम-दंड-भेद का खेल अब होगा शुरू

भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। ऐलनाबाद उपचुनाव हरियाणा की राजनीति में वर्चस्व के चुनाव के रूप में जाना जाएगा। चुनाव प्रचार में कांग्रेस तो बिल्कुल पिछड़ती नजर आई, भाजपा भी विश्व की सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप प्रचार नहीं कर पाई और इनेलो अपने सीमित साधनों में अपना प्रभाव दिखाती रही।

 यह चुनाव अभय चौटाला के इर्द-गिर्द ही घूमता नजर आ रहा है। कांग्रेस अपनी फूट के कारण अब तक अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप अपनी पहचान नहीं दिखा पाई, जबकि भाजपा जो रणनीति के लिए जानी जाती है, उसकी रणनीति भी कहीं नजर नहीं आई। यहां तक कि घोषित स्टार प्रचारक ही चुनाव मैदान में नहीं पहुंचे और 26-27 की मुख्यमंत्री की जनसभाओं में भी स्टार प्रचारक वाली बात नजर आई नहीं, क्योंकि उनके साथ मंच पर न तो प्रदेश अध्यक्ष दिखाई दिए और न ही भाजपा के चुनाव प्रभारी। ऐसे में कहा जा सकता है कि अब तक बाजी अभय चौटाला के पक्ष में दिखाई दे रही है।

आज अभय चौटाला किसानों के मुद्दे पर ही विधानसभा से त्याग पत्र देकर आए थे और अब वह फिर चुनाव मैदान में हैं। संयुक्त किसान मोर्चा के अध्यक्ष राकेश टिकैत ने आज सभा में खुला ऐलान किया कि यह पंचायत का मामला है और यह 6 महीने पहले अपनी पोटली रख गया था। अब उसे गठरी बनाकर उसे लौटाना है। तात्पर्य यह कि सबको एकमुश्त होकर अभय को वोट डालना है।

 यदि इनेलो पर नजर डालें तो विभाजन के पश्चात ताऊ देवीलाल के नाम की यह पार्टी बहुत छोटी नजर आती है। इसमें चौ. ओमप्रकाश चौटाला, अभय चौटाला व उनकी पत्नी सुनैना और करण-अर्जुन उनकी ओर से प्रचार कर रहे हैं, जबकि उनका विरोध करने के लिए उसी परिवार से अजय चौटाला, दुष्यंत चौटाला, दिग्विजय चौटाला, नैना चौटाला, रणजीत चौटाला, आदित्य चौटाला आदि नजर आते हैं परंतु विधानसभा क्षेत्र की जनता इन पर विश्वास कम कर रही है। सबसे बड़ी बात यह आती है कि अपने क्षेत्र से ही यह किसी अन्य उम्मीदवार का समर्थन कर रहे हैं। होना क्या है, वह तो 2 तारीख को ही पता लगेगा।चुनाव प्रचार आज समाप्त हो गया।

चुनाव प्रचार में जनता के विरोध के कारण भाजपा पिछड़ती ही नजर आई है। मुख्यमंत्री की सभाएं भी कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच हुई हैं। आमतौर से क्षेत्र की जनता का कहना है कि सारे हरियाणा के भाजपा के कार्यकर्ता ही भाजपा की सभाओं में होते थे लेकिन यह भी शाश्वत सत्य है कि सत्ता में बड़ी शक्ति होती है और पुराना इतिहास भी यही है कि सत्ता पक्ष ही उपचुनाव जीतता है। हां, बरौदा उपचुनाव अपवाद ही कहा जाएगा, यहां भाजपा ने बाजी हारी थी और यदि यहां भी बाजी हारती है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बाढ़सा कैंसर इंस्टीट्यूट के उद्घाटन में कहे शब्द बेमानी हो जाएंगे, जिसमें उन्होंने कहा था कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल हरियाणा के सबसे अच्छे मुख्यमंत्री हैं, क्योंकि एक चुनाव तो वह हार चुके, दूसरे का अभी पता लगेगा। इस उपचुनाव भी मुख्यमंत्री की रणनीति अभी तक तो असर डालती दिखाई नहीं दे रही।

पुराना वाक्य है कि चुनाव से पहली रात कत्ल की रात होती है। अर्थात उस रात में साम-दाम-दंड-भेद सब अपनाए जाते हैं और यहां तो इस कार्य के लिए बहुत लंबा समय मिला है। आज सायं 5 बजे से वह समय आरंभ हो चुका है और पोलिंग की समाप्ति तक वह कार्य चलते ही रहेंगे।

लोगों में यह चर्चा है कि वर्तमान में भाजपा सत्ता में है, चाहे ऐलनाबाद में न हो, सारे हरियाणा में उनके पास दो हजार कार्यकर्ता तो अवश्य होंगे और उन सभी को वह सौ-सौ वोटर से मिलने के लिए भी कह देंगे तो विधानसभा के हर वोटर से मिल पाएंगे। सौ वोटर का अर्थ 20-25 परिवार ही तो हुआ।

ऐलनाबाद चुनाव में आरंभ से ही भाजपा भेद की नीति से चुनाव लड़ ही रही है। जनता में संदेश दे रहे हैं कि यहां से जिता दो, उसे अच्छा पद मिलेगा। उस क्षेत्र का बड़ा विकास होगा। उनका एक ही नारा अधिक प्रचलित हो रहा है, चलो सरकार के साथ।साम-दाम-दंड-भेद का सीधा-सा अर्थ यह है कि पहले तो व्यक्ति को समझाया जाएगा, नहीं समझ तो फिर उसे दाम देकर अपने पक्ष में करने का प्रयास किया जाएगा, फिर भी बात नहीं बनी तो उसे किसी प्रकार का भय दिखाकर अपने पक्ष में किया जाएगा और फिर भी नहीं बनी तो परिस्थिति और माहौल अनुसार उस व्यक्ति को भ्रमित कर अपने पक्ष में करने का प्रयास किया जाएगा तो यह सब अब होना है और इसमें राजनैतिक चर्चाकारों का मानना है कि भाजपा इनेलो और कांग्रेस से बहुत-बहुत आगे है।

अत: अभी यह कहना कि बाजी किसके पक्ष में जाएगी, शायद जल्दबाजी होगी। हां, यह अवश्य कहा जा सकता है कि इतने उम्मीदवारों में से अब मुकाबला अभय चौटाला और गोबिंद कांडा के मध्य ही रह गया है।

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