कमलेश भारतीय

अफसरशाही , भ्रष्टाचार और सरकार एक ऐसा मधुर सा मिलन है जो हर सरकार में हो जाता है । अफसरशाही इतनी चतुर है कि सरकार किसी की भी आए , नेताओं को अपने बस में कर ही लेती है । इसलिए इन तीनों का मिलन हर प्रदेश की सरकार में मिलना कोई मुश्किल काम नहीं । फिलहाल जो सर्वे आया है , वह हरियाणा सरकार को लेकर सामने आया है जिसमें 46 प्रतिशत विधायक यह मान कर चल रहे हैं कि अफसरशाही सरकार पर हावी है और 41 प्रतिशत विधायक यह कह रहे हैं कि भ्रष्टाचार बढ़ा है । फिर भी सरकार चल रही है और मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबसे ईमानदार सरकार का मेडल भी दे दिया है और खुद मुख्यमंत्री यह कहते नहीं थकते कि इस सरकार में पर्ची और खर्ची सिस्टम की हवा निकाल दी है । पर जो घोटाले सामने आ रहे हैं उनके बारे में क्या कहेंगे ? कभी पेपर लीक घोटाला तो कभी दवा घोटाला तो कभी कोई घोटाला ,,,घोटाले भी हैं और ईमानदार सरकार भी । दोनों साथ साथ कैसे हो सकते हैं ?

जिन दिनों मुझे हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष का कार्यभार मिला था उन दिनों हरियाणा सचिवालय जाने का काफी अवसर मिला तब देखता थे कि कैसे हाथ बांधे विधायक अपने काम करवाने के लिए अफसरशाही के आगे बैठे रहते थे और अफसरशाही उन्हें चुटकुले सुनाती और अप्रत्यक्ष मज़ाक उड़ाती थी । मैं दूर क्यों जाऊं ? मेरी अपनी पे फाइल के बारे में बताऊं ? जब यह फाइनेंस में गयी तो इंतज़ार किया गया कि कुछ देंगे चेयरमैन साहब । जब यह क्लियर हो गया कि एक तो चेयरमैन साहब मुख्यमंत्री की गुडबुक्स में हैं , दूसरे पत्रकार रहे हैं कहीं ऐसा न हो कि स्टिंग ही कर डालें तब बिना खर्ची के फाइल पार लगी यानी वैतरणी भ्रष्टाचार की बिना कुछ दिये ही पार कर ली । यह सब सरकार की नाक के नीचे सचिवालय में हो रहा है तो छोटे छोटे कस्बों के दफ्तरों में क्या हाल होता होगा ? अंदाजा लगाना मुश्किल तो नहीं । यह सब विधायक आज भी सह रहे होंगे तभी यह सर्वेक्षण सामने आया कि अफसरशाही हावी है । मेरे अनुभव बहुत सीमित हो सकते हैं लेकिन भ्रष्टाचार ऐसा कि किसी के रोके नहीं रुकता या रुक सकता ऐसी धारणा बन गयी है आम आदमी की । इसलिए वह जिस भी दफ्तर काम करवाने जाता है तो उसे कोई न कोई काम करवाने के रेट बता जाता है । फिर कोई भी या किसी भी सरकार को कैसे ईमानदार सरकार का तगमा दिया जा सकता है ?

मैंने एक मज़ेदार लघुकथा पढ़ी थी जो वर्षों तक याद रहने वाली है । किसी ने पूछा कि आज के युग में ईमानदार अधिकारी कौन ?
जवाब-जो पैसे लेकर भी काम कर दे ।

यानी यह भी विश्वास नहीं कि अफसर पैसे ले ले और काम भी हो जाये और यदि वह काम कर दे तो अफसर सचमुच ईमानदार है ।
अब आप ही बताइए ऐसी भ्रष्ट व्यवस्था में जब जनप्रतिनिधि ही बेबस हैं तो आम आदमी क्या करे ? कहां जाये ? किसके पास अपना दुखड़े रोये ? फिर अशोक खेमका जैसा आईएएस के अर्द्धशतक से ऊपर तबादले यही तो बताते हैं कि वे इस व्यवस्था में कितने मिसफ़िट हैं ? यानी व्यवस्था के ऊपर सवाल हैं ऐसे आईएएस के तबादले -दे दना-दन ।

क्या यह सर्वे सरकार की आंखें खोल पाने के लिए काफी है ? शायद नहीं ।

श्रीकांत आप्टे जी बिनोवा भावे के बाद संत हुए । एक बार हिसार के सर्वोदय भवन में आए और कैसे बदले यह देश के जवाब में कहा कि भ्रष्टाचार छोड़ दो । देश बदल जायेगा । अब एक पैरोडी :

अब कोई ऐसा मजहब बनाया जाये
जिसमें सरकार को ईमानदार बनाया जाये
-पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।

error: Content is protected !!