भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। ऐलनाबाद उपचुनाव के प्रचार के दो दिन भी नहीं बचे हैं। स्थितियां कुछ-कुछ स्पष्ट होने लगी हैं। लगता है कि कांग्रेस तीसरे नंबर पर रहेगी। मुकाबला अभय चौटाला और भाजपा प्रत्याशी गोबिंद कांडा में माना जा रहा है। चर्चा है कि मुख्यमंत्री की सभा के बाद वातावरण कुछ भाजपा के पक्ष में जाएगा या भाजपा को इससे कोई नुकसान भी हो सकता है।

वर्तमान चुनाव में दोनों बड़ी पार्टियां भाजपा और कांग्रेस को अपने कार्यकर्ताओं पर भरोसा नहीं था। कांग्रेस ने कुछ समय पूर्व भाजपा से कांग्रेस में मिलाए पवन बैनीवाल को टिकट दिया और भाजपा ने तो उसी दिन भाजपा में शामिल करा गोबिंद कांडा को टिकट दे दिया। इन बातों का असर पार्टी पर पड़ता तो अवश्य है लेकिन बिखरी हुई पार्टी में वे बातें मुखर होकर सामने आती हैं और सत्तारूढ़ पार्टी की वह बातें गुपचुप तरीके से की जाती हैं। यही कुछ भाजपा और कांग्रेस में हो रहा है।

कांग्रेस में तो पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष श्रीमती शैलजा के बीच 36 के आंकड़े की बातें आम हैं लेकिन भाजपा के बीच प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ और मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के बारे में चर्चाएं होने लगी हैं। कुछ भाजपा के अंदरूनी लोगों ने गुपचुप तरीके से बताया कि भाजपा के 17 उम्मीदवार लाइन में थे लेकिन मुख्यमंत्री ने वीटो पावर इस्तेमाल कर गोबिंद कांडा को टिकट दिलाया। दूसरा ओमप्रकाश धनखड़ राव इंद्रजीत के शहीद सम्मान समारोह में अध्यक्षता कर रहे थे। तीसरा उन्होंने बताया कि गुरुग्राम में जब मुख्यमंत्री सरमथला में विकास रैली निकाल रहे थे तो ओमप्रकाश धनखड़ गुरुग्राम में अपने निवास पर अपना जन्मदिन मना रहे थे।

इसी प्रकार मुख्यमंत्री अपने निवास पर मोर्चों से मिल रहे हैं और प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ न जानें किन कार्यो में व्यस्त रहते हैं, जो संगठन के मोर्चों की बैठक में उपस्थित नहीं हो पाते। इसी प्रकार आज ऐलनाबाद में ही स्टारक प्रचारक मुख्यमंत्री मनोहर लाल की सभा थी, जिसमें न तो प्रदेश अध्यक्ष उपस्थित थे और न ही भाजपा के वहां प्रभारी सुभाष बराला थे। इस प्रकार की बातों से लगता है कि कुछ न कुछ अनबन है प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ और मुख्यमंत्री मनोहर लाल में।

इस चुनाव की बात तो यह चुनाव सभी पर्टियों के सम्मान का है। विधानसभा में कोई इसका अंतर विशेष पडऩे वाला नहीं। भाजपा की तरफ देखें तो पहली नैतिक लड़ाई तो वह बाहर से उम्मीदवार उतारकर हार चुके हैं। परंतु फिर भी यदि वह यह चुनाव नहीं जीते तो जिस प्रकार मुख्यमंत्री और भाजपा का सारा संगठन किसान आंदोलन व अन्य समस्याओं को कांग्रेस की देन बता रहा है, वह अनुचित हो जाएगा और सिद्ध हो जाएगा कि जनता भाजपा के साथ नहीं।

कांग्रेस की ओर देखें तो यदि वह चुनाव हारते हैं तो हाइकमान को और गंभीरता से सोचना पड़ेगा कि किस प्रकार शैलजा और हुड्डा के विवाद को सुलझाएं या अनुशासन के नाम पर हुड्डा पर गाज गिर सकती है।

रही बात अभय चौटाला की तो वह किसान नेता के रूप में स्थापित होकर चुनाव लड़ रहे हैं। इनेलो का वर्चस्व तो इनेलो के विघटन से ही समाप्त हो गया था। परंतु यदि वह यह चुनाव हार जाते हैं तो कहीं इनेलो भी हविपा और हजकां की राह पर तो नहीं जा रही है।

error: Content is protected !!