भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। ऐलनाबाद उपचुनाव का यदि विधानसभा में असर के बारे में सोचें तो वहां कोई विशेष असर पडऩे वाला नहीं है, क्योंकि यदि कांग्रेस की एक सीट बढ़ गई तो भी सरकार को कोई खतरा नहीं और अभय चौटाला जीत गए तो भी सरकार को कोई खतरा नहीं लेकिन हरियाणा राजनीति की दृष्टि से यह चुनाव सभी पार्टियों के लिए अति महत्वपूर्ण है।

भाजपा और जजपा नैतिक रूप से तो चुनाव आरंभ होने से पहले ही अपने सम्मान खो चुकी हैं, क्योंकि न तो भाजपा के पास और न ही ऐलनाबाद को अपनी कर्मभूमि बताने वाले दुष्यंत चौटाला के पास वहां के लिए उम्मीदवार मिला। आखिर हलोपा से उम्मीदवार लेना पड़ा। प्रश्न चिन्ह लग रहे हैं। गीतिका आत्महत्या केस के कारण सरकार बनाते वक्त भी भाजपा गोपाल कांडा का समर्थन नहीं ले पाई थी।

कांग्रेस की ओर देखें तो जब किसान आंदोलन, सरकार और प्रदेश का हर वर्ग भाजपा से नाराज है। ऐसी अवस्था में भी उसे चुनाव जीतने के लिए संघर्ष करना पड़े, यह कुछ अजीब बात है लेकिन कारण साफ नजर आ रहे हैं। कांग्रेस सात साल विपक्ष में बैठकर भी एकजुट नहीं हो पाई है। उनमें वर्चस्व की लड़ाई चल रही है और वही अब दिखाई दे रहा है कि ऐलनाबाद में कांग्रेस की प्रतिष्ठा से जुड़ा उपचुनाव हो रहा है और भूपेंद्र सिंह हुड्डा विधायकों के साथ अन्य स्थानों पर विपक्ष आपके समक्ष कार्यक्रम चला रहे हैं। देखिए क्या होता है?

नजर डालें इनेलो पर तो अभय चौटाला ने किसान आंदोलन के चलते त्यागपत्र दिया था। यदि वह अपनी बात पर कायम हैं तो किसान आंदोलन तो अभी समाप्त हुआ नहीं है। वह फिर विधानसभा में जाकर क्या करेंगे? क्या फिर त्यागपत्र देंगे? या त्याग पत्र देने की अपनी गलती का अहसास हो गया। सदन में बैठकर सरकार से प्रश्न पूछेंगे। हम ही नहीं अपितु जनता भी सवाल पूछ रही है। रही बात इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला के प्रचार की तो उससे कुछ अंतर पड़ता दिखाई नहीं दे रहा। कारण शायद यह रहा हो कि अब उनकी उम्र बहुत हो गई है या फिर यह भी हो सकता है कि जनता के मन में यह प्रश्न हो कि जो अपने पुत्र और पोत्रों को नहीं समझा सका, वह हमें क्या समझाएगा?

अब इस चुनाव के परिणाम से क्या असर हो सकता है, इस पर नजर डालते हैं। भाजपा यदि यह चुनाव जीत जाती है तो भाजपा के विधानसभा में 40 से 41 नहीं अपितु 42 सदस्य हो जाएंगे, क्योंकि गोबिंद कांडा के भाई गोपाल कांडा भी भाजपा में शामिल हो जाएंगे। उससे मुख्यमंत्री का आत्मविश्वास बढ़ेगा। फिर वह जजपा पर आश्रित नहीं रहेंगे। चार निर्दलीयों को साथ लेकर भी सत्ता चला सकेंगे। अर्थात उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला का सदन में महत्व कम हो जाएगा। ऐसे में यदि उपमुख्यमंत्री ने आंखें दिखाईं तो राजनीति में कुछ भी संभव है। हो सकता है कि जजपा के सात विधायक भी भाजपा में सम्मिलित हो जाएं, यह संभावना है।

क्योंकि वर्तमान राजनीति में नैतिकता, मर्यादा है ही नहीं केवल दबाव और अवसरवादिता की राजनीति नजर आती है। और यदि यह सीट भाजपा हारी तो भी दुष्यंत चौटाला का महत्व घटेगा ही, क्योंकि दुष्यंत चौटाला जाट नेता के नाम से यहां हैं और वह यह दावा भी करते हैं कि यह क्षेत्र हमारे समर्थकों का है। ऐसे में भाजपा और हलोपा की मदद पाकर भी चुनाव हारना महत्व तो घटाएगा ही। 

कांग्रेस की ओर से प्रदेश अध्यक्ष कुमारी शैलजा क्षेत्र में पूर्णतया: सक्रिय हैं। यह क्षेत्र उन्हीं का माना जाता है। उनके पिता भी इस क्षेत्र से चुनाव जीत चुके हैं लेकिन इस समय उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा का साथ मिलता नजर नहीं आ रहा, इसलिए उनके लिए स्थितियां कुछ कठिन अवश्य हुई हैं लेकिन जो जनता सत्ता पक्ष से रूष्ट है और उसकी कांग्रेस की ओर आने की संभावनाएं हैं।

ऐसे में कांग्रेस यह सीट जीत जाती है तो कुमारी शैलजा का कद बहुत बढ़ जाएगा और आने वाले समय में भूपेंद्र सिंह हुड्डा को हाइकमान की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है। इनेलो के बारे में पहले भी कहा कि यह उनके वर्चस्व की लड़ाई है। 2019 विधानसभा चुनाव में भी उनकी ओर से एकमात्र अभय चौटाला जीतकर आए थे और अब भी वही स्थिति है कि यदि अभय चौटाला जीतते हैं तो विधानसभा में इनेलो की उपस्थिति दर्ज हो जाएगी। वरना तो हरियाणा विकास पार्टी और हजकां वाला हाल इनेलो का भी हो सकता है।

उपरोक्त स्थितियां राजनैतिक विश्लेषकों से चर्चा कर निष्कर्ष निकाल प्रस्तुत की गई हैं और इनसे यह स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा है कि विधानसभा में गिनती के लिहाज से चाहे इस चुनाव का कोई महत्व न हो परंतु हरियाणा की आगामी राजनीति की दशा और दिशा शायद यह तय करेगा।

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