चण्डीगढ़ । पंचकूला के चौधरी देवी लाल स्टेडियम में 13 अक्टूबर को भारतीय जनता पार्टी की ओर से प्रदेश परिषद बैठक का आयोजन हुआ जिसमें प्रदेशभर के पार्टी पदाधिकारी कार्यकारिणी के सदस्य मंत्री का सांसद केंद्रीय मंत्री मुख्यमंत्री सहित भाजपा के कार्यकर्ता और नेता शामिल हुए। बताते हैं कि यह आयोजन 1982 के उपरांत 39 वर्ष बाद हुआ है। यह आयोजन प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनकड़ की रहनुमाई में आयोजित किया गया।

इस बैठक में कई चीजें खास थी जिन पर हम अंत में चर्चा करेंगे। लेकिन इससे पहले हालातों की समीक्षा के लिए हमें 23 सितंबर को झज्जर जिले के पाटोदा गांव की शहीदी सम्मेलन के नाम पर आयोजित उस जनसभा पर विचार करना होगा जिसे केंद्रीय मंत्री भारतीय जनता पार्टी के नेता राव इंद्रजीत सिंह की तरफ से आयोजित किया गया था। इस रैली में भारतीय जनता पार्टी के पांच सांसद, कुछ मंत्री, कुछ विधायक भी शामिल हुए। इस आयोजन की विशेष बात यह थी कि एक तो इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री मनोहर लाल शामिल नहीं थे।

उनकी उपस्थिति तो छोड़िए , मंच पर कार्यक्रम में कहीं मुख्यमंत्री का फोटो तक नहीं लगाया गया था और यह जानकारी भी मिली कि इसके लिए मुख्यमंत्री को औपचारिक निमंत्रण तक नहीं भेजा गया था। इससे भी बड़ी बात यह है कि इस कार्यक्रम की अध्यक्षता भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ ने की। यदि भाजपा के सांसदों विधायकों के बारे में चर्चा करें तो एक बात पक्के तौर पर कही जा सकती है कि इनमें वही लोग शामिल थे जिनकी मुख्यमंत्री से बहुत अच्छी ट्यूनिंग नहीं मानी जाती है । जहां तक मुख्यमंत्री का सवाल है उनके स्वभाव को जानने वाले लोगों का मानना है कि इस कार्यक्रम में प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ की अध्यक्षता और भूमिका पर अलग तरह की चर्चा हुई होगी।

हरियाणा के मुख्यमंत्री आज एक पावरफुल व्यक्ति हैं ।हाईकमान में उनका पूरा हस्तक्षेप है । सरकारी तंत्र तो उनके हाथ में है ही, वह संगठन में भी अपनी मर्जी के फैसले ले लेते हैं और कई बार प्रदेश अध्यक्ष को भी दरकिनार कर देते हैं। अमूमन जिन कार्यक्रमों की अध्यक्षता प्रदेश अध्यक्ष को करनी होती है वह काम भी मुख्यमंत्री अपने हाथ में ले लेते हैं । लेकिन ऐसा लगता है कि 23 सितंबर की उपरोक्त रैली के बाद मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने एक्शन पर रिएक्शन करते हुए प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ और राव इंदरजीत सिंह दोनों को एक योजना बनाकर एक तरह से एक ही लाठी से आपने का उस समय परिचय दिया जब यह कार्यक्रम बना क्या गया कि भारतीय जनता पार्टी संगठन के जो 27 प्रकोष्ठ( सैल )हैं उनके पदाधिकारियों की लगातार बैठकें मुख्यमंत्री आवास पर आयोजित की जाएंगी और सभी बैठकों को प्रदेश अध्यक्ष नहीं बल्कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल संबोधित करेंगे । इसमें भाजपा प्रदेश अध्यक्ष को दरकिनार करते हुए संचालन और प्रबंधन का उत्तरदायित्व पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष जी एल शर्मा को सौंप दिया गया। जीएल शर्मा को शायद इसलिए उपयुक्त माना गया कि एक तो इससे ओमप्रकाश धनखड़ की प्रोक्सी लग जाएगी दूसरा इस खबर से राव इंदरजीत सिंह भी विचलित होंगे और इसमें एक अलग और खास संदेश जाएगा। वह इसलिए कि जीएल शर्मा कभी राव इंद्रजीत सिंह के खासम खास होते थे । लोग कहते हैं कि राव साहब के राजनीतिक साम्राज्य में दूसरा स्थान जीएल शर्मा का इसलिए होता था कि पहला स्थान राव इंद्रजीत सिंह का था और है। आप और हम समझ सकते हैं कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष को दरकिनार करते हुए यदि उपाध्यक्ष से काम लिया जा रहा है तो अध्यक्ष को कितनी कुंठा, निराशा और हताशा का दंश झेलना पड़ा होगा। यह कोई एक बैठक नहीं थी जिसमें प्रदेश अध्यक्ष उपस्थित न रहे हो। अनुसूचित जाति सेल ,पिछड़ा वर्ग सेल, महिला सेल आदि की बैठकें तो पहले ही हो चुकी हैं ,एक-एक करके सभी सेलो की बैठके होनी है और सब में प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ की बजाए जीएल शर्मा की ही उपस्थिति बनी रहने के आसार हैं।

ऐसा लगता है कि पाटोदा की 23 सितंबर की रैली में जो कुछ हुआ उसके रिएक्शन के फल स्वरूप मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने संगठन में अपना सीधा हस्तक्षेप करते हुए न केवल प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ को झटका देने की कोशिश की है बल्कि एक तरह से राव इंद्रजीत सिंह को भी एक संदेश देने का प्रयास किया है। यह तो चुनाव आ गया वरना यह बैठके लगातार होती रहती। अब चुनाव के बाद यही दौर फिर शुरू होने के आसार हैं ।

अब बात करते हैं उप चुनाव की। ऐलनाबाद में जिस तरीके से पार्टी केडर से बाहर टिकट दी गई उससे भी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की अहमियत पर सवाल खड़ा होता है। उम्मीदवार भी ऐसे व्यक्ति को बनाया गया जिनके विधायक भाई मतलब गोपाल कंडा के साथ सरकार बनाने पर भारतीय जनता पार्टी के बड़े-बड़े नेताओं को ऐतराज था। इस उपचुनाव में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष को एक तरह से इग्नोर कर ऐसे लोगों को जिम्मेदारियां दी गई हैं जिन्हें मुख्यमंत्री के विश्वास पत्रों में गिना जाता है। यहां चुनाव का प्रभारी भी पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला को बनाया गया है। जो नेता मुख्यमंत्री के विरोधी माने जाते हैं वह अभी तक उपचुनाव में नजर ही नहीं आए हैं। उनकी रूचि भी नहीं होगी और शायद उन्हें तरीके से बुलाया भी नहीं गया होगा।

ऐसा लग रहा है कि या तो मुख्यमंत्री खुद नहीं चाहते या फिर कोई और बात है, जब भी कोई खास जरूरत होती है, कोई दिक्कत या संकट होता है, पार्टी के वरिष्ठ नेता मुख्यमंत्री के पक्ष में कोई बात कहने या उनका पक्ष लेने के लिए आगे नहीं आते। मुख्यमंत्री के, उठा लो डंडे वाले वक्तव्य को लेकर कथित तौर पर मोदी विरोधी नेताओं ने ऐसी ऐसी बातें कही कि अंत में मुख्यमंत्री को माफी ही मांगनी पड़ी। जानकारों ने प्रदेश परिषद की प्रदेश स्तरीय बैठक को ओमप्रकाश धनखड़ का मुख्यमंत्री के इस नहले पर दहला के रूप में देखा है। इस कार्यक्रम में ओमप्रकाश धनखड़ के अलावा प्रदेश के मोदी भक्त बड़े नेताओं ने अलग अलग तरीके से ऐसी कार्रवाई अमल में लाने का ऐसा काम किया जिससे लगता रहा कि वह मुख्यमंत्री पर प्रत्यक्ष परोक्ष दबाव बनाने की कोशिश में है। उनके एक्शन पर रिएक्शन कर रहे हैं और यह दिखाना चाहते हैं कि मुख्यमंत्री को आज नहीं तो कल उनकी अहमियत को स्वीकार करना पड़ेगा।ओमप्रकाश धनखड़ ने भी अलग-अलग तरीकों से यह दर्शाने की कोशिश की कि वे अकेले नहीं है उनके साथ नेताओं का बड़ी ताकत है और मुख्यमंत्री से जिन नेताओं का तालमेल, समन्वय, सामान्य नहीं है वे और पार्टी के कार्यकर्ता उनके साथ है।

ऐसे नेताओं ने मंच से जहां नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार की कार्यशैली उपलब्धियों और विकास कार्यों की भूरी भूरी प्रशंसा की वहीं प्रदेश सरकार को आईना दिखाने की कोशिश की। मीठी मीठी भाषा में आलोचना भी की ।यहां तक कहा कि सरकार को पार्टी कार्यकर्ताओं पर नौकरशाहों को अहमियत नहीं देनी चाहिए।

मुख्यमंत्री के प्रतिद्वंदी माने जाने वाले केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने तो अपनी ही भाषा में सरकार की कार्यशैली पर जोरदार प्रहार किए । कार्यकर्ताओं की सहानुभूति बटोरी।यह अलग बात है कि जब वह बोलने लगे तो मुख्यमंत्री अपनी सीट से उठकर कहीं चले गए। राव इंदरजीत सिंह ने यहां तक कहा कि अब तक प्रदेश में प्रधानमंत्री मोदी के असर से लगातार दो बार पार्टी को वोट मिले हैं ,सरकार बनी है लेकिन जरूरी नहीं कि आगे भी मोदी जी के कारण ही वोट मिल जाएंगे ।इसके लिए कार्यकर्ता ही आगे आएंगे। इसलिए उनकी अनदेखी ठीक नहीं है। तीसरी बार 45 का आंकड़ा छू लेना आसान नहीं होगा। बिना कार्यकर्ताओं के आक्रामक हुए बिना अच्छे परिणाम प्राप्त नहीं की जा सकती। इस कार्यक्रम में कथित तौर पर मुख्यमंत्री की विचारधारा से इत्तेफाक नहीं रखने वाले परंतु प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ से अच्छी अंडरस्टैंडिंग रखने वाले नेताओं को अलग अलग तरीके से ज्यादा अहमियत देने की कोशिश की गई। कुछ को बोलने के लिए समय भी ज्यादा दिया गया।

इस अवसर पर 4 ,5 कार्यकर्ता ओमप्रकाश धनकड़ की एक बड़ी तस्वीर लेकर पहुंचे और मंच पर श्री धनखड़ को भेंट करके आए। इस सिस्टम को भी उचित नहीं कहा गया। वह इसलिए कि मुख्यमंत्री दो तीन केंद्रीय मंत्री भी स्टेज पर विराजमान थे। इसी अवसर पर एक यूट्यूब चैनल शुरू करने की घोषणा की गई इसे भाजपा का चैनल बताया गया इस चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए श्री धनखड़ ने बेशक बार-बार कहा लेकिन मुख्यमंत्री ने विधिवत बटन दबाने की औपचारिकता करने से अधिक और कोई टिप्पणी नहीं की।

इस कार्यक्रम में आयोजकों ने मीडिया के लोगों को भी नाराजगी मोल लेने की गलती की। बेशक मीडिया को आधे समय के लिए आमंत्रित किया गया था लेकिन मंच से उद्घोषणा करके उन्हें चले जाने को कहा गया जो किसी तरह से भी उचित नहीं था। जो बात पत्रकारों के पास जाकर चुपके से कही जा सकती थी उसे मंच से बार-बार कहा गया। इस आयोजन के संदर्भ में एक बात पक्के तौर पर कही जा सकती है कि प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ के करीबी परंतु मुख्यमंत्री के नाम पर असंतुष्ट भाजपा नेताओं को इस आयोजन से यह संतोष जरूर हुआ होगा कि उन्होंने एक तरह से अपनी बात कह कर अपना पक्ष मजबूत किया है और मुख्यमंत्री तथा सरकार को कार्यकर्ताओं की सुध लेने के नाम पर उन्हें प्रदेश की पूरी भाजपा के समक्ष सावधान करने का काम तसल्ली पूर्वक कर दिया है। मतलब इसे यूं कहा जा सकता है कि हमारा काम सच्चाई सामने लाने का था सरकार की आंखें खोलने का था, बाकी ,सवारी अपने सामान की खुद जिम्मेदार है।