ऐलनाबाद उपचुनाव 2021 पर विशेष श्रृंखला

अमित नेहरा

भरत सिंह बेनीवाल

हैदर अली आतिश का एक मशहूर शेर है कि ‘बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का जो चीरा तो इक क़तरा-ए-ख़ूँ न निकला।’ यह शेर भरत सिंह बेनीवाल पर बिल्कुल फिट बैठती है।

दरअसल, भरत सिंह बेनीवाल ऐलनाबाद उपचुनाव में कांग्रेस द्वारा पवन बेनीवाल को टिकट दिए जाने से बेहद खफा नजर आ रहे थे। उनके तेवरों से लग रहा था कि वो कांग्रेस पार्टी से बगावत कर सकते हैं। लेकिन उनकी दुविधा यही थी कि वो जाएं तो कहाँ जाएं ? इसी बारे में हाल ही में मेरे द्वारा ‘भरत सिंह बेनीवाल के लिए आगे कुआं पीछे खाई’ लेख लिखा गया था। लेख में विश्लेषण किया गया था कि अब उनके सामने दो ही विकल्प हैं कि वे इनेलो या बीजेपी को अपना समर्थन दें। सिरसा जिले में तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ माहौल बना हुआ है। भरत सिंह बेनीवाल की दुविधा यह थी कि बीजेपी को समर्थन देकर वो किसानों की नाराजगी मोल नहीं ले सकते थे। उधर भरत सिंह बेनीवाल कहते रहे हैं कि इनेलो कार्यकाल में उनपर बहुत जुल्म हुए। इस दौरान उन पर पर फर्जी मुकदमे दर्ज किए गए। अतः इनेलो को भी सार्वजनिक रूप से सर्मथन देने में परेशानी थी। अतः उन्होंने पवन बेनीवाल का विरोध तो कर दिया मगर ऐसा करके वे भी उहापोह में फंस गए थे।

यह सब कुछ सोच विचार करके भरत सिंह बेनीवाल ने ऐलान कर दिया है कि वे कांग्रेस हाईकमान के साथ ही रहेंगे, जब भी हाईकमान चाहेगी वे पार्टी के पक्ष में प्रचार शुरु कर देंगे। बेशक भरत सिंह बेनीवाल ने कह दिया है कि वे कांग्रेस आलाकमान के साथ हैं पर उनकी पवन बेनीवाल के साथ नाराजगी अभी तक दूर नहीं हुई है। भरत सिंह का कहना है कि लोग कांग्रेस के साथ हैं पर पवन के साथ कम लोग हैं। पवन कभी भी कांग्रेस में नहीं थे। पहले वह इनेलो में थे फिर बीजेपी में आए। भरत सिंह बेनीवाल अब भी कह रहे हैं कि पवन बेनीवाल ने इनेलो और कांग्रेस पार्टियों में रह कर लोगों को खूब परेशान किया है। भरत सिंह बेनीवाल ने कहा है कि मैं हाईकमान के साथ दिल से साथ हूँ। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि हैदर अली आतिश का शेर ‘बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का जो चीरा तो इक क़तरा-ए-ख़ूँ न निकला’ भरत सिंह बेनीवाल पर बिल्कुल फिट बैठा है। अगर वे कांग्रेस हाईकमान के साथ दिल से साथ थे तो पिछले एक हफ्ते से रूठने का नाटक क्यों कर रहे थे। वो बारम्बार रट लगा रहे थे कि ऐलनाबाद हल्के में उनके 35,000 वोटर हैं जो उनके कहने पर वोटिंग करते हैं। ये बहुत बड़ी संख्या है अगर ये जिताऊ नम्बर नहीं है तो किसी का खेल बिगड़ने के लिए पर्याप्त अवश्य है। लगता है शायद भरत सिंह बेनीवाल को अपने वोटरों या अपने पर विश्वास नहीं रहा! लोग इस बाबत भी खूब चटखारे लेकर बातें कर रहे हैं।

जमीनी हकीकत यह है कि वर्तमान ऐलनाबाद उपचुनाव यहाँ अभी तक हुए आम या उपचुनावों से बिल्कुल अलग है। क्योंकि ये देशव्यापी मुद्दे पर लड़ा जा रहा है जो भावनात्मक तो है ही साथ में किसान और किसानी के भविष्य से जुड़ा हुआ है। शायद भरत सिंह बेनीवाल इस बात को समझ गए और उन्हें लगा होगा कि वे अपने वोटरों को अपने हिसाब से मैनेज नहीं कर पाएंगे। हो सकता है कि इसलिए उन्होंने कह दिया कि वे कांग्रेस आलाकमान के साथ हैं। लेकिन पवन बेनीवाल के लिए प्रचार करने के प्रश्न का सीधा जवाब नहीं दे रहे। यह इशारा बहुत कुछ कह रहा है। खैर, भरत सिंह बेनीवाल के चैप्टर को यही विराम देते हैं और आगामी अंकों में इस उपचुनाव से जुड़े बाकी पहलुओं पर विचार-विमर्श करेंगे।

चलते-चलते

क्या आप जानते हैं कि अपनी चुटीली टिप्पणियों के कारण भरत सिंह बेनीवाल को ऐलनाबाद इलाके का लल्लनटॉप नेता भी कहा जाता है। बहुत से लोग उनके भाषणों के खासे मुरीद हैं। भरत सिंह बेनीवाल, अक्टूबर 2014 में अपनी टिकट कटने से नाराज होकर गोपाल कांडा की पार्टी हलोपा (हरियाणा लोकहित पार्टी) में शामिल हो गए थे।

क्रमशः

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, राजनीतिक विश्लेषक, लेखक, समीक्षक और ब्लॉगर हैं)

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