एडवोकेट कैलाश चंद

गुडग़ांव, 8 अक्तूबर (अशोक): कोरोना महामारी से उपजी आर्थिक समस्याओं के चलते निजी स्कूलों में शिक्षा ग्रहण कर रहे छात्रों के अभिभावक स्कूलों की फीस आदि जमा नहीं कर पाए थे, जिस पर निजी स्कूल प्रबंधन अभिभावकों व छात्रों पर दबाव बनाए जा रहे थे। यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में भी पहुंच गया था।

सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए बडा ही अहम फैसला सुनाया है। पीडि़त छात्रों व अभिभावकों की सहायता करने में
जुटे एडवोकेट कैलाश चंद का कहना है कि पिछले दिनों सोसायटी ऑफ कैथोलिक एजूकेशन इंस्टीट्यूट की याचिका के विरोध में राजस्थान अभिभावक संघ ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय में जबाव दाखिल कराया था।

सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस एएम खानविलकर की बैंच ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद निजी विद्यालयों की प्रबंधन द्वारा दी गई दलीलों को नहीं माना। सर्वोच्च न्यायालय ने छात्रों को ऑनलाईन कक्षाओं, परीक्षाओं से वंचित न करने के आदेश को भी बरकरार रखा। अधिवक्ता का कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय ने साथ ही अभिभावकों द्वारा फीस न चुकाने की स्थिति में स्कूलों को फीस वसूली के लिए कानूनी प्रावधानों के तहत कार्य करने के लिए कहा। न्यायालय ने स्कूलों की मांग के खिलाफ फीस एक्ट 2016 की वैधानिकता एवं स्कूलों द्वारा फीस निर्धारण के लिए अधिनियम की पालना को भी बरकरार रखा है।

न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि फीस एक्ट के अनुसार तय नहीं की गई फीस की शिकायत भी ब्लॉक, जिला एवं शिक्षा विभाग और
प्रदेश के शिक्षा मंत्री को की जा सकेगी। अभिभावकों के पास कानूनी विकल्प भी उपलब्ध रहेगा। गौरतलब है कि निजी स्कूलों ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका लगाकर मांग की थी कि इस वर्ष की 3 मई को दिए गए आदेश को बदला जाए जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने बदलने से इंकार कर दिया है और छात्रों व अभिभावकों को बड़ी राहत भी दी है।

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