ऐलनाबाद उपचुनाव का बिगुल बज चुका है, भारत सारथी इस उपचुनाव के लिए एक विशेष श्रृंखला का आयोजन कर रहा है। इस श्रृंखला में भारत सारथी के पाठकों को इस उपचुनाव और हरियाणा की भूतकाल और वर्तमान राजनीति से सम्बंधित रोजाना बेहद रोचक जानकारियां मिलेंगी।

अमित नेहरा

हरियाणा विधानसभा में इनेलो के एकमात्र विधायक अभय सिंह चौटाला ने 11 जनवरी 2021 को ईमेल से हरियाणा विधानसभा अध्यक्ष को सशर्त इस्तीफा भेजा। इस ईमेल में कहा गया था कि अगर 26 जनवरी 2021 तक केंद्र सरकार तीनों कृषि कानूनों को वापस नहीं लेती तो 27 जनवरी 2021 को उनका इस्तीफा मंजूर समझा जाए। इस पर विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि उन्हें इस्तीफा नहीं मिला है तो अभय सिंह चौटाला ने 15 जनवरी 2021 को अपने प्रतिनिधियों को विधानसभा भेजा और अपने इस्तीफे की कॉपी रिसीव करवाई। इस बार उन्होंने ‘समझा’ जाए की बजाय लिखा कि 27 जनवरी को उनका इस्तीफा ‘स्वीकार’ किया जाए…और अंततः इनेलो के एकमात्र विधायक का इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया।

दरअसल पूरे देश में लगे लॉकडाउन के दौरान 5 जून 2020 को केन्द्र सरकार ने अचानक तीन नए कृषि अध्यादेश लागू कर दिए। फिर इन्हें 27 सितम्बर को कानूनों की शक्ल दे दी गई। इससे देशभर के किसान-मजदूर बेहद नाराज हो गए और पंजाब-हरियाणा-उत्तरप्रदेश-उत्तराखंड व राजस्थान समेत अनेक राज्यों में इन कानूनों के खिलाफ आंदोलन तेज हो गया। आखिरकार अनेक किसान संगठनों ने दिल्ली कूच के लिए 24 नवम्बर 2020 की तारीख निर्धारित कर दी। दिल्ली पुलिस ने किसानों को दिल्ली में प्रवेश नहीं करने दिया और दिल्ली की सीमाओं की भारी बेरिकेडिंग कर दी। नतीजतन किसान अनिश्चितकाल के लिए दिल्ली बॉर्डरों पर ही बैठ गए। खासकर सिंघु, टीकरी, गाजीपुर और ढांसा बॉर्डरों पर लाखों किसानों का जमावड़ा लग गया।

अब किसान आंदोलन पर राजनीति भी तेज हो गई। भाजपा और उसके सहयोगी दल जहाँ इन कानूनों को किसान हितैषी बता रहे थे वहीं विपक्ष इन्हें घोर किसान विरोधी करार दे रहा था।

किसानों के लिए पहला इस्तीफा आया प्रकाश सिंह बादल की पुत्रवधु हरसिमरत कौर बादल के रूप में। हरसिमरत ने 17 सितम्बर 2020 को केंद्रीय कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया, इसी दिन ये कृषि बिल लोकसभा में पारित हुए थे। वे एनडीए की सहयोगी पार्टी शिरोमणि अकाली दल की सांसद के रूप में केंद्रीय खाद्य एवं प्रसंस्करण उद्योग मंत्री थी। यहाँ देखना दिलचस्प है कि हरसिमरत ने सांसद पद से इस्तीफा नहीं दिया बस मंत्रिमंडल से अलग हो गई। उनकी आलोचना इस बाबत भी की जाती है कि जब इन कृषि कानूनों को अध्यादेशों के रूप में लाया गया तो उन्होंने कोई कदम क्यों नहीं उठाया।

इधर हरियाणा में 2018 से राजनीति में बहुत बड़ा बदलाव आ चुका था। हालांकि बदलाव 2014 से ही आना शुरू हो चुका था। क्योंकि बीजेपी उससे पहले प्रादेशिक स्तर पर काफी कमजोर हालत में रहती थी और उसे लोकदल/इनेलो या हविपा की सहयोगी बनकर रहना पड़ता था, उस बीजेपी ने अपने दम पर 2014 में हरियाणा में पूर्ण बहुमत से सरकार बना ली। इनेलो मुख्य विपक्षी दल के रूप में रही।

लेकिन 2018 में इनेलो में पारिवारिक फूट हो गई और ओमप्रकाश चौटाला के बड़े बेटे अजय सिंह चौटाला के दोनों पुत्रों दुष्यंत चौटाला और दिग्विजय चौटाला ने 9 दिसम्बर 2018 को जननायक जनता पार्टी (जजपा) के नाम से नई पार्टी की घोषणा कर दी। इसके चलते इनेलो का लगभग सारा कैडर जजपा में चला गया। इनेलो में पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला और उनके छोटे पुत्र अभय सिंह चौटाला ही रह गए। अक्टूबर 2019 में हुए विधानसभा चुनावों में जहाँ जजपा ने 10 सीटें जीत लीं वहीं इनेलो से सिर्फ अभय सिंह चौटाला ही विधायक बन पाए। जिस इनेलो की टिकटों के लिए पूरे हरियाणा में मारामारी रहती थी, उसे सभी 90 सीटों के लिए कैंडिडेट्स भी नहीं मिल पाए!
इनेलो का इतना लचर प्रदर्शन कभी नहीं रहा!

ऐसे में किसान आंदोलन इनेलो के लिए एक आशा की किरण लेकर आया। क्योंकि जजपा ने विधानसभा चुनाव में बीजेपी का खूब विरोध किया था मगर चुनाव परिणामों में किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला और जजपा, बीजेपी को समर्थन देकर सरकार में शामिल हो गई। जजपा के सबसे बड़े चेहरे दुष्यंत चौटाला खुद उपमुख्यमंत्री बन गए अतः वे बीजेपी द्वारा पारित तीनों कृषि कानूनों का मुखर विरोध नहीं कर पाए। इनेलो के लिए यह बहुत बड़ा अवसर था कि वह किसानों को अपना समर्थन देकर अपना कैडर वापस ले आये।

आखिरकार 8 जनवरी 2021 को अभय सिंह चौटाला ने एक बहुत बड़ा दाँव खेल दिया और घोषणा कर दी कि अगर केन्द्र सरकार 27 जनवरी 2021 तक इन कानूनों को वापस नहीं लेती तो वे विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे देंगे…मगर 27 जनवरी तक केन्द्र सरकार ने ये कानून वापस नहीं लिए…और जुबान के धनी अभय सिंह चौटाला ने विधायनसभा से अपना इस्तीफा दे दिया।

ये देश में किसान आंदोलन के समर्थन दिया गया अभी तक किसी भी सांसद या विधायक का एकमात्र इस्तीफा है। हम इस श्रृंखला के आगामी लेखों में इस इस्तीफे और इनेलो पर पड़ने इससे वाले प्रभावों की पड़ताल करेंगे। ये भी जानने की कोशिश करेंगे कि ऐलनाबाद में क्या रहने वाला है।

चलते-चलते

क्या आप जानते हैं कि ऐलनाबाद विधानसभा में पहला उपचुनाव 1970 में हुआ था और इस उपचुनाव में अभय सिंह चौटाला के पिता ओमप्रकाश चौटाला ने बाजी मारी थी!

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