डाॅ. मारकन्डे आहूजा, …….कुलपति
गुरुग्राम विश्वविद्यालय, गुरुग्राम

अलग-अलग परिस्थिति और व्यक्तियों के लिए स्वतंत्रता शब्द के भिन्न अर्थ हो सकते हैं। जब यह सापेक्ष दृष्टि से विचारित होता है तो स्वतंत्रता के बारे में पाश्चात्य विचार को प्रकट करने वाले

अंग्रेजी शब्द INDEPENDENCE के निकट होता है। जिसमें स्वतंत्रता का अर्थ किसी व्यक्ति, परिस्थिति या शासन से आजाद होने का ही अर्थ समाहित होता है। भिन्न-भिन्न परिस्थिति में इस अर्थ को देखें तो एक भूख से मरते व्यक्ति के लिए खाना मिलना भूख से आजादी है. किसी कैदी के लिए जेल से छूटना या भागना आजादी है, अफ्रीकी मूल के लोगों के लिए नस्लीय भेदभाव का ना होना आजादी है। दूसरे शब्दों में कहें तो प्रचलित मान्यता में किसी भी प्रकार के प्रतिबंधों की अनुपस्थिति को स्वतंत्रता कहा जाता है। इसी परिभाषा के अनुसार 15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजी सरकार की बाध्यता से आजाद हुआ। मेरे मन में सदैव इसके बारे में यह प्रश्न उठता रहा कि क्या एक राष्ट्र के रूप में भारत की आजादी थी या एक राज्य के रूप में ? क्या रेडक्लिफ द्वारा मानचित्र पर खीची गई रेखाए एक राष्ट्र की स्वतंत्रता को परिभाषित कर सकती हैं ? एक लंबा सामाजिक जीवन जीने के पश्चात में विश्वासपूर्वक कह सकता हूं कि स्वतंत्रता एक सर्वथा निरपेक्ष अवस्था है, वह किसी से छूटने, बचने की शर्त नहीं है। एक राष्ट्र के लिए स्वतंत्रता एक राज्य की राजनैतिक आजादी नहीं है क्योंकि राष्ट्र एक चैतन्य अवस्था है । राष्ट्रीय चेतना का निरंतर प्रवाह ही एक राष्ट्र का प्राण है। इसलिए जब हम राजनैतिक आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं तब इस सर्वाधिक महत्वपूर्ण पक्ष की मुखर विवेचना की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने।

वे संभवतः देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होने इस विषय पर मुखर होकर विचार को प्रकट किया। भारत की राजनैतिक आजादी के अमृत-महोत्सव को इतने बड़े फलक पर मनाने और जन-जन का उत्सय बनाने की उनकी आकांक्षा के मूल में राष्ट्रीय चेतना का यही विचार है। जब पूरा विश्व कोरोना रूपी विषधर के विष से उत्पन्न विषम परिस्थितियों से जूझ रहा हो तो ऐसे में अमृत महोत्सव की कल्पना ही व्यक्ति नीलकंठ की श्रेणी में ले जाती है। प्रधानमंत्री के रूप में उनके अब तक के कार्यकाल के ऐसे अनेक कार्य है जो इस विचार की ही परिणिति हैं।

मैने अपने जीवन के लगभग चार दशक शिक्षा क्षेत्र को दिए है, इसलिए सर्वप्रथम शिक्षा की बात करते है। भारतीय आध्यात्मिक चेतना एवं ज्ञान परंपरा में हजारों साल पहले से ही कहा जाता रहा है : “सा विद्या या विमुक्तये’ अर्थात विद्या वह है जो मुक्ति की ओर ले जाए। दुर्भाग्य से हमने अंग्रेजों से राजनैतिक आजादी तो प्राप्त की किंतु शिक्षा व्यवस्था में भारतीय दृष्टि को अपनाने के प्रति उदासीन रहे। इसलिए हमने पश्चिमी औपनिवेशिक विचार वाली वह शिक्षा प्राप्त की जो कभी मुक्त ना होने देना ही सुनिश्चित करती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबसे महत्वपूर्ण कार्य के रूप में इस शिक्षा व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन का संकल्प लिया और परिणाम हम सबके समक्ष नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के रूप में है। यह नीति भारतीय चेतना के प्रवाह के साथ एकात्म करने के साथ-साथ विचार, अनुसंधान, संवाद का मुक्त आकाश प्रदान करेगी जो सही मायने में एक राष्ट्र के रूप में भारत की स्वतंत्रता का वास्तविक उत्सव है ।

शिक्षा क्षेत्र के बाद मैं जिक्र करना चाहता हूं आर्थिक विचार की। भारत दुनिया का सबसे महान् अर्थशास्त्र लिखने वाले चाणक्य की भूमि है। 1947 में मिली राजनैतिक स्वतंत्रता के बाद आवश्यकता थी भारत को भारतीय अर्थशास्त्र से पुनः जोड़ने की किंतु इस मोर्चे पर भी आयातित विचारों को अहमियत दी गई। यही वजह है कि तमाम क्षमताओं के बावजूद हम एक विकासशील देश से विकसित देश की यात्रा पूरी ना कर सके। मेक इन इंडिया से आत्मनिर्भर भारत तक के समस्त अभियान प्रधानमंत्री की इस आकांक्षा का प्रकटीकरण हैं जिसमें वे एक राष्ट्र की मुक्त चेतना का विचार केंद्र में रखते हैं। चाणक्य का अर्थशास्त्र आर्थिक क्षेत्र में उसी भारतीय चेतना का प्रतिनिधित्व करता है और इसमें आर्थिक गतिविधियों में उच्च नैतिक मानदंड तथा भ्रष्टाचार के प्रति सम्पूर्ण अस्वीकार्यता रखने पर बल दिया गया है। अंग्रेजों से आजादी के बाद संभवत: यह सबसे लंबा समय होगा जिसमें भारत घोटालों और भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर सुर्खियों में नहीं है। नैतिकता और शुचिता का यह वातावरण सही अर्थों में भारत को राष्ट्र चेतना की ऊर्जा प्रदान करता है । एक-एक कर लिखें तो ऐसे सैकड़ों विषय गिनाए जा सकते हैं जिन पर वर्तमान नेतृत्व भारत के राष्ट्रीय गौरव को पुनर्स्थापित किया है। एक महत्वपूर्ण विषय मैं यहां पर अवश्य रखना चाहता हूँ वह है देश के लिए बलिदान देने वाले महान सपूतों के योगदान को सम्मान एवं पहचान देने का कार्य ।

बचपन से ही देश की राजधानी में आना होता था तो बताया जाता था कि इंडिया गेट पर शहीदों का स्मारक है। युवावस्था में पता चला कि असल में यह अंग्रेजों के लिए विश्वयुद्ध में लड़कर शहीद हुए भारतीयों का स्मारक है जिसके गुंबद के नीचे ही स्वतंत्र भारत की सरकार ने अमर जवान ज्योति जलाकर अपने देश लिए कुर्बान हुए बलिदानी सैनिकों का स्मारक बनाने की जिम्मेदारी पूरी कर ली। देश की राजधानी के जिस इलाके में कई-कई एकड़ में नेताओं की समाधियां और स्मारक बने वहां देश के बलिदानियों के लिए एक ज्योति जलाकर कर्तव्य की इतिश्री कर ली गई। जो राष्ट्र अपने वीर बलिदानी सपूतों को सम्मानपूर्वक याद भी ना रखता हो उसमें राष्ट्रीय चेतना का संचार किस प्रकार होगा इसका विचार भी किया प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने। अब वो हो रहा है जो 15 अगस्त 1947 से ही प्रारंभ होना चाहिए था, देश अपने बलिदानी सपूतों के लिए अद्वितीय स्मारक बना रहा है। यह स्मारक प्रत्येक नई पीढी के रक्त में अपनी महान विरासत के लिए राष्ट्रीय चेतना के गौरव का संचार करेगा। इसी प्रकार कुछ नामों को छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व करने वाले महानायकों को भी विस्मृत करने का कार्य हुआ ।

प्रधानमंत्री ने इसके लिए भी अपने संकल्प को पूरा करने के लिए अभियान लिया है। अग्रेजों से भारत की आजादी के आंदोलन में महत्त्वपूर्ण
भूमिका निभाने वाले और फिर एक राजनीतिक राज्य के रूप में पुनर्गठन में प्रमुख एवं मजबूत भूमिका निभाने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल के महान योगदान को स्मरण कराने वाले दुनिया के सबसे सबसे बडे मूर्ति-स्मारक ‘स्टेच्यू ऑफ युनिटी’ को देश के चरणों में समर्पित कर वर्तमान नेतृत्व ने दिखाया कि एक राष्ट्र अपने नायकों के प्रति कृतज्ञ रहता है। भारत का स्वतन्त्रता संग्राम अनेक विभिन्न विचार एवं दृष्टि से किया गया संघर्ष था। विडबना रही कि इनमें अधिकतर के योगदान का मूल्यांकन करने में स्वतंत्र भारत का इतिहास विफल रहा। एक देश के देशभक्त पाशिकों के लिए दुखद आश्चर्य का विषय है कि अग्रेजो से संघर्ष में फासी चढ़ने वाले उस कैद होने वाले अंग्रेजों की धरती पर जाकर उनके सीने में गोली उतारने वाले और तो और भारत की पहली लाखों सैनिकों की सेना तथा उसके सुप्रीम कमांडर नेताजी सुभाष चंद्र बोस को भी वह सम्मान नहीं दिया गया जिसके वे हकदार थे । कल्पना की जा सकती है कि किस प्रकार इन वीरों की स्मृति मात्र भी हमारे देश की पीढियों के लिए राष्ट्रीय गौरव और प्रेरणा का माध्यम हो सकती है. और इस कल्पना को साकार किया प्रधानमंत्री मोदी ने । अब नेताजी का जन्मदिवस पराक्रम दिवस के रूप में कृतज्ञ राष्ट्र मनाता है ।

सही कहा जाए तो आजादी का अमृत महोत्सव मनाना उस राष्ट्रीय चेतना को नव-ऊर्जा प्रदान करने का अवसर है जिसे विस्मृत करने का अनजाना या सुनियोजित प्रयास हुआ । अपनी बात का अंत मैं उस नाम के जिक्र से कर रहा हूं जिनके नाम से भारत को बीसवीं सदी की दुनिया सर्वाधिक पहचानती रही है। जी हां, महात्मा गांधी के नाम से आजादी के बाद क्या कुछ नहीं बनाया गया, लेकिन फिर वही विडंबना कि गांधी के सभी स्वप्न विस्मृत किए गए। आजादी का अमृत महोत्सव मनाते हुए हम संतोष अनुभव कर सकते हैं कि आज देश स्वच्छता के उनके स्वप्न को एक आंदोलन के रूप में देख रहा है। स्वदेशी निर्माण एवं कौशल के प्रति उनके विश्वास को आज देश अपना रहा है। महात्मा गांधी भारत को उसके नागरिकों के व्यवहार में जीवित आत्मा के रूप में वर्णित करते रहे और आज राष्ट्र उसी चेतना के पुनर्जागरण एवं ओजस्वी प्रवाह का उत्सव आजादी के अमृत महोत्सव के रूप में मना रहा है। और मेरा विश्वास है कि इसके लिए प्रधानमंत्री के संकल्प, दृष्टि
मेहनत तथा समर्पण का सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान है। में प्रधानमंत्री जी के आजादी के महानायकों के प्रति अतुल्य, अदभुत. अनूठे. दिव्य और भव्य योगदान को नमन करता हूं तथा उनके इकहत्तरवे (71 ) जन्मदिवस पर प्रभु से उनके उत्तम स्वास्थ्य एवं पूर्णायु होने की मंगल कामना करता हूं।

कोई भेद न हो तन का तन से ।
कोई खेद न हो मन का मन से ।
मिले सभी का साथ, हो सभी का विकास, सबका मिले विश्वास ।
यह अमृत महोत्सव मेरे भारत देश के लिए बने खास ।
सफल हों मोदी जी आपके प्रयास, यही है जन-जन की आस ।।

error: Content is protected !!