भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

चरणजीत सिंह चन्नी यह वह एक्सपेरिमेंट है जो कांग्रेस हाईकमान लंबे टाइम से करना चाह रहा था। यानी किसी राज्य में दलित मुख्यमंत्री चेहरे को आगे रखकर देखा जाए कि उससे कांग्रेस को कितना नफा या नुकसान होता है। इसके लिए हाईकमान की 2 राज्यों पर पैनी नजर थी- पंजाब और हरियाणा। दोनों ही राज्यों में जट/जाट प्लस दलित विनिंग कॉन्बिनेशन है।

जातीय समीकरण पर नजर डालें तो पंजाब में लगभग 32 प्रतिशत वोटर दलित हैं, जबकि हरियाणा में 19 प्रतिशत वोटर दलित तबके से आते हैं। इसी तरह पंजाब में जट सिख वोटर की तादाद करीब 24 प्रतिशत है जबकि हरियाणा में जाट, जट सिख और मुल्ला जाट वोटर की तादाद 35 प्रतिशत है। इसीलिए हाईकमान पंजाब में दलित वोटरों की ज्यादा तादाद को ध्यान में रखते हुए वहां दलित सीएम का चेहरा आगे किया है। ठीक इसी तरह हरियाणा में जाट-जट वोटरों की ज्यादा तादाद को देखते हुए जाट सीएम के चेहरे को सामने किया जा रहा है।

हरियाणा में सफल प्रयोग करने के बाद अब कांग्रेस पंजाब में जट प्रदेश अध्यक्ष और दलित मुख्यमंत्री के कॉम्बिनेशन को आजमाना चाहती है। बेशक इसके लिए हाईकमान को कांग्रेस की अंदरूनी कलह ने ही मौका दिया है। लेकिन आखिरकार हाईकमान जिस रणनीति को जमीन पर उतारने के बारे में सोच रहा था उसे अंजाम देने जा रहा है।

अगर पंजाब में यह एक्सपेरिमेंट सफल रहा तो कांग्रेस हरियाणा को लेकर काफी हद तक आश्वस्त हो जाएगी। क्योंकि हरियाणा में पार्टी के पास पहले से ही भूपेंद्र सिंह हुड्डा के रूप में मुख्यमंत्री का जाट चेहरा और कुमारी शैलजा के रूप में संगठन का दलित चेहरा मौजूद है। लेकिन पंजाब की तरह हरियाणा में भी खेमेबाजी इस कॉम्बिनेशन के आड़े आ सकता है। हाईकमान को अगर जाट और दलित वोट बैंक को एक पाले में लाना है तो फिर पंजाब और हरियाणा दोनों ही राज्यों में दोनों धड़ों को एकजुट करना होगा।

अब सबकी नजर इस बात पर होगी कि पंजाब में नया एक्सपेरिमेंट कितना कामयाब रहता है। अगर वहां पर यह सफल रहता है तो फिर हरियाणा में भी कांग्रेस को कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन अगर वहां यह नाकाम फार्मूला साबित होता है तो फिर हाईकमान को नए सिरे से सोचना होगा।

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