भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। गुरुग्राम आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक दृष्टि से विश्व में बहुत महत्वपूर्ण जिला है। हरियाणा के लिए भी सबसे अधिक राजस्व देने वाला और भाजपा की राजनीति का अघोषित केंद्र है तथा यहीं भाजपा बिखरी-बिखरी नजर आ रही है।

मैंने कहा अघोषित राजनीति का केंद्र है। वह इसलिए कि मुख्यमंत्री भी सप्ताह में एक-दो दिन गुरुग्राम में गुजारते हैं। प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ का तो निवास ही यहीं है। इसके अतिरिक्त भी भाजपा के अनेक वरिष्ठ अधिकारी, मंत्री, पूर्व मंत्री भी यहीं निवास करते हैं। सो इसलिए कहा कि भाजपा का प्रदेश कार्यालय बेशक गुरुग्राम में न हो लेकिन केंद्र तो यही लगता है।

यह विचार दिमाग में तब आया जब आज भाजपा का राज्य स्तरीय कार्यक्रम कैप्टन अमरेंद्र सिंह और राहुल गांधी का पुतला फूंकने का था, जिसमें केवल सैकड़ों कार्यकर्ताओं की उपस्थिति दिखाई दी, जबकि इतने कार्यकर्ता तो शायद एक मंडल के पदाधिकारी ही होंगे। इसे क्या माना जाए? या तो संगठन ने कार्यकर्ताओं तक सूचना नहीं पहुंचाई और यदि सूचना पहुंचाई तो कार्यकर्ता क्यों नहीं आए? क्या उन्हें भाजपा की कार्यशैली पसंद नहीं आ रही। क्या वे भी बिजेंद्र लोहान की विचारधारा पर चल रहे हैं? या फिर पिछले दिनों भाजपा के पूर्व कार्यकारी जिला अध्यक्ष कुलभूषण भारद्वाज को पार्टी से 6 वर्ष के लिए निष्कासित किया था, वह कारण है। क्या कार्यकर्ता कुलभूषण भारद्वाज द्वारा उठाई गई भ्रष्टाचार की आवाज को उचित समझते हैं और उनकी निगाह में भाजपा वर्तमान में भ्रष्टाचार की पोषक है? विचारनीय विषय हैं माननीय ओमप्रकाश धनखड़ जी के लिए।

यह आज की ही बात नहीं है, सदा ही ऐसा ही देखा जाता रहा है कि वरिष्ठ कार्यकर्ता कार्यक्रमों में नजर नहीं आते। कुछ वरिष्ठ कार्यकर्ताओं से बात हुई तो उनका कहना था कि पार्टी पहले सिद्धांतों और संघर्ष के नीति पर चलती थी और अब सत्ता और वैभव की नीति पर चलती है। जिस पार्टी में सदा यह कहा जाता था कि संघर्ष और वरीयता के हिसाब से पद दिए जाते हैं, उसी पार्टी में आज संबंधों और चेहरे देखकर पद दिए जाते हैं। जो कार्यकर्ता पार्टी के संघर्ष के काल में संघर्ष कर रहे थे, उन सभी को अब नजरअंदाज किया गया है। पार्टी कार्यक्रमों की सूचना तक नहीं दी जाती, आमंत्रण तो क्या मिलेगा?

पुराने कार्यकर्ताओं के दिल में बहुत दर्द दबा हुआ है। अनेक बातें कहते हैं। उनका कहना है कि पार्टी में वरीयता का कोई अर्थ रह नहीं गया है। नए आदमी को पद दे दिया जाता है, यह कहकर कि पार्टी का जनाधार बढ़ाना है। वर्तमान में नजर डालो तो पहले वरिष्ठों का सम्मान होता था लेकिन अब किसी कार्यक्रम में आपने पूर्व विधायक उमेश अग्रवाल या राव नरबीर को देखा है?इसके आगे उन्होंने पूछा कि पूर्व की बात क्यों करें, कार्यक्रमों में वर्तमान विधायक की उपस्थिति भी क्या कभी नजर आती है? आप स्वयं ही अनुमान लगा लीजिए कि इस प्रकार से संगठन बढ़ेगा या घटेगा?

उनसे की अनेक बातें ऐसी हैं, जो लिखना उचित नहीं लगता लेकिन सार यह है कि वर्तमान में अभी लगभग पार्टी के सभी पदाधिकारी यह सोचकर कार्य कर रहे हैं कि जितना लाभ उठाया जा सके, उठा लिया जाए। कोई अपने जानकारों को लगवाता है तो कोई गुरुग्राम में भूमि का खेल खेला जाता है, उनमें मशरूफ हैं। उनका कहना है कि यदि पार्टी हाइकमान ने शीघ्र ही इस ओर ध्यान नहीं दिया तो आने वाला समय कम से कम भाजपा का तो नहीं होगा।

प्रदेश अध्यक्ष यदि इन बातों पर ध्यान दें तो भाजपा के वरिष्ठ लोगों को प्रसन्न कर जनाधार बढ़ाया नहीं जा सकता तो स्थिर तो रखा जा सकता है।

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