लिखाई में आज के बच्चे पिछड़ रहे
बच्चों के ऊपर सिलेबस का भारी भरकम बैग का भी वजन

रमेश गोयत

चंडीगढ़/पंचकूला। हिंदी दिवस यानी राष्ट्रभाषा हम सबको यह याद रखना होगा और सत्य भी है हम सबकी जड़े अस्तित्व हिंदी ही है | राष्ट्रभाषा का पढ़ना पढ़ना लिखना लिखाना सभी को ज्ञात होना चाहिए | माना कि इंग्लिश आज के युग में बच्चों के लिए जरूरी है लेकिन यह कभी नहीं बोलना चाहिए हमारी पहचान हिंदी भाषा है और रहेगी | अपने बच्चों को हिंदी भाषा से जोड़कर रखें  आज की शिक्षा में और पहले की शिक्षा में बहुत अंतर है छोटे बच्चों के ऊपर सिलेबस का भारी भरकम बैग का भी वजन है |

लिखाई में आज के बच्चे पिछड़ रहे हैं सन 2000 से पहले तक हरियाणा पंजाब और राजस्थान व अन्य राज्यों में कक्षा पहली से कक्षा चौथी तक तख्ती पर ही लिखवाया जाता था | 1 से लेकर 100 तक गिनती स्वर व्यंजन और सुलेख की प्रतियोगिता कराई जाती थी जिससे सभी बच्चों की लिखाई दुरस्त रहती थी | आधुनिक युग में  बच्चे हिंदी में न गिनती लिख सकता है ना समझ सकता है पहाड़े भी याद नहीं है और सुलेख के बारे में तो शायद किसी को ही पता हो |

तख्ती के ऊपर मुल्तानी मिट्टी का लेप लगाया जाता था फिर बाद में काली स्याही जिसको दवात बोलते थे और सरकंडे की कलम बनाई जाती थी जिससे लिखा करते थे |इन सब का पर्यावरण के ऊपर न के बराबर ही प्रभाव पड़ता था आजकल  बच्चा छोटा हो चाहे बड़ा हो 5 से 7 नोटबुक सभी के लगी होती हैं | एक महीने में आराम से वह सभी भर जाती हैं एक से दो पैकेट पेंसिल लग जाती हैं इन सब का कहीं ना कहीं  पर्यावरण के ऊपर भी बहुत प्रभाव पड़ता है और बजट के ऊपर भी आधुनिक शिक्षा महंगी हो गई है |

मास्टर विवेक कुलड़िया ने हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर तख्ती लेखन प्रक्रिया को सीखा  अपने पापा प्रदीप त्रिवेणी से  फिर तख्ती लिखी त्रिवेणी ने बताया बीसवीं सदी तक शक्ति का प्रचलन था आजकल के बच्चों को यो यो कई दुकानदारों को भी तख्ती का नहीं पता |

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