राधेश्याम गोमला के नेतृत्व में गांवों का प्रतिनिधिमंडल अटेली के विधायक सीताराम यादव से मिला।

भारत सारथी/कौशिक

नारनौल । सर्व समाज मंच के अध्यक्ष और सामाजिक कार्यकर्ता राधेश्याम गोमला के नेतृत्व में बाघौत और स्याणा गांवों का प्रतिनिधिमंडल अटेली हल्का के विधायक सीताराम यादव से उनके अटेली स्थित कार्यालय पर मिला | प्रतिनिधिमंडल ने विधायक से वेदकालीन प्राचीन स्थल बाघौत और स्याणा गाँवो को पर्यटन स्थल बनाने की मांग की |

 श्री गोमला ने विधायक से बताया कि वेदकालीन ऋषि दधीचि और प्रातिथेयी के पुत्र ऋषि पिप्पलाद ने जन्म से लेकर अपने जीवन का आधा काल हरियाणा के जिला महेन्द्रगढ़ में स्थित बाघौत(तात्कालिक वनक्षेत्र) में बिताया | यहाँ स्थित पवित्र और चमत्कारी प्राकृतिक शिवलिंग के क्षेत्र में तपस्या की | 

उन्होने बताया कि ऋषि पिप्पलाद इतने महान विद्वान और तत्त्वज्ञानी थे कि वे अथर्ववेद की पिप्पलाद नामक एक शाखा ‘पैप्पलाद-शाखा’ के प्रवर्तक बने ।  प्रश्नोपनिषद में एक तत्त्वज्ञानी के रूप में इनका निर्देश प्राप्त है। गर्भोपनिषद्‍ में तो ‘पैप्पलाद’ को ही मोक्षशास्त्र कहने की प्रथा थी । अथर्ववेद के एक उपनिषद् प्रश्नोपनिषद् में प्रारम्भ में ही कथा आती है कि सुकेशा, भारद्वाज आदि ऋषि मुनिवर पिप्पलाद के पास गए और उनसे दर्शन संबंधी प्रश्न पूछे जिनका उन्होंने पाण्डित्यपूर्ण उत्तर दिया। वे परम विद्वान् और ब्रह्मज्ञानी थे। महाभारत के शांतिपर्व में भी यह उल्लेख मिलता है कि जब भीष्म शरशैय्या पर पड़े हुए थे तो उनके पास ऋषि पिप्पलाद उपस्थित थे।

उन्होंने जानकारी दी कि श्रीशिवमहापुराण में उल्लेख है कि ऋषि पिप्पलाद ने शनिदेव द्वारा दी जाने वाली पीडाओं से छुटकारे हेतु मंत्रों का निर्माण किया और अपने तपबल से शनिदेव को इस बात के लिए राजी किया कि वह बारह वर्ष से कम आयु वाले बालकों को कष्ट नही दे। कई ग्रन्थों में बारह वर्ष के स्थान पर सोलह वर्ष का निर्देश भी प्राप्त है । इसीलिये आज भी शनि की पीडा से छुटकारा पाने के लिए पिप्पलाद ऋषि का स्मरण किया जाता है ।

राधेश्याम गोमला ने बताया कि स्कंदमहापुराण के अनुसार एक बार पिप्पलाद ने क्रोधित होकर एक कृत्या का निर्माण कर, उसे याज्ञवल्क्य पर छोड़ा । याज्ञवल्क्य शिव की शरण में गये जिन्होने पिप्पलाद द्वारा छोड़ी कृत्या का नाश किया तथा याज्ञवल्क्य एवं पिप्पलाद में मित्रता स्थापित करायी ।

 यही कथा ब्रह्मपुराण में कुछ अलग ढंग से दी गयी है। अपनी माता-पिता (ऋषि दधिचि और प्रातियेथी) की मृत्यु का कारण देवताओं को मानकर, उनसे बदला लेने के लिए इन्होंने शिव की आराधना की, तथा एक कृत्या का निर्माण करके इसे देवों पर छोड़ा। यह देखकर शंकर ने मध्यस्थ होकर देवों तथा इसके वीच मित्रता स्थापित करायी । बाद में, अपनी माता-पिता को देखने की इच्छा उत्पन्न होने के कारण, देवों ने स्वर्ग में इन्हें दधीचि के पास पहुँचाया। दधीचि इन्हें देखकर प्रसन्न हुए तथा इससे विवाह करने के लिए आग्रह किया । स्वर्ग से वापस आकर पिप्पलाद ने ऋषि गौतम की कन्या से विवाह किया [ब्रह्मपुराण .११०.२२५] ।

इसी पवित्र भूमि पर जन्मे इनके पुत्र कहोड भी बहुत विद्वान और मंत्र-निर्माता थे | पद्मपुराण के अनुसार एकबार जब पिप्पलाद अपनी तपस्या में निमग्न थे तब वहाँ कोलासुर आकर इनका ध्यानभंग करने के हेतु इन्हें पीड़ित करने लगा । तत्काल, इनके पुत्र कहोड ने एक कृत्या का निर्माण करके उससे यहाँ कोलासुर का वध कराया ।

उन्होने स्याणा गाँव के वैदिक इतिहास की जानकारी देते हुए बताया कि ढाब क्षेत्र में मिले महाभारत कालीन अवशेष और ऋषि उद्दालक का आश्रम का इतिहास स्याणा गाँव के धार्मिक महत्व को दर्शाता है | वैदिक काल में स्याणा दूरदराज तक के विद्यार्थियों के लिए शिक्षा का केन्द्रस्थल था | ऋषि उद्दालक और उनकी विदूषी पुत्री सुजाता यहाँ आचार्य के रूप में शिक्षा देते थे | ऋषि कहोड और अष्टावक्र ने स्याणा आश्रम में ही शिक्षा ग्रहण की थी | 

प्रतिनिधिमंडल ने दोनों स्थलों को पर्यटन स्थल बनाने की मांग की | विधायक मांग पूरी करने का आश्वासन दिया |

इस अवसर पर उनके साथ महावीर पहलवान, राजबीर, वेदप्रकाश एडवोकेट, सूरजभान, रामनारायण रूपचन्द, अजीत, कर्णसिंह शास्त्री, प्रवीण अत्री, रमेश पहलवान ,हवासिंह, सुबेसिंह, करतार  जिलेसिंह, हिम्मत कुमार नरेश कुमार ,संदीप व रामपाल आदि साथ थे |

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