-कमलेश भारतीय किसान आंदोलन के नौ माह पूरे । इस अवसर पर एकत्रित हुए किसान नेता पर सुर अलग अलग रहे । वैसे संयुक्त किसान मोर्चे ने ऐलान किया कि पच्चीस सितम्बर को भारत बंद का आह्वान किया है । इस सम्मेलन को संबोधित करते राकेश टिकैत ने कहा कि सभी किसान लीडर हैं , हम तो उनके चेहरे या प्रतिनिधि मात्र हैं । यह भी सवाल उठाया कि एक फोन काॅल की दूरी कब तक बनी रहेगी ? हमारे पास तो नम्बर ही नहीं । योगेंद्र यादव ने कहा कि नौ माह में तो नयी ज़िंदगी जन्म ले लेती है लेकिन किसानों की ज़िंदगी में बदलाव क्यों नहीं आया ? पर एक चीज़ पैरा हुई पचहतर वर्षों में कि अभूतपूर्व एकता पैदा हुई । सरकार की हठधर्मिता के चलते । जबकि गुरनाम सिंह चढूनी की सोच और कहें कि लाइन अलग रही कि हमें भारत बंद की बजाय दिल्ली और दिल्ली में प्रधानमंत्री आवास घेरने की घोषणा करनी चाहिए तब असर होगा सरकार पर । वे अरविंद केजरीवाल की राह पर भी चल रहे हैं और कह रहे हैं कि चुनाव लड़ने चाहिएं । बीच में ऐसे बयान आए भी थे कि चढूनी पंजाब विधानसभा लड़ेंगे बाकायदा पार्टी बना कर , फिर इंकार भी आया लेकिन मन से अभी वह बात निकली नहीं । कभी पंजाब विधानसभा निकट आते ही फिर यह मन वही कर बैठे । कौन भरोसा करे इनका ? किसान आंदोलन पर यह बात पूरी तरह स्पष्ट हो चुकी है कि सरकार पूरी तरह से उदासीन रवैया अपनाए हुए है । कोई खोज खबर तक नहीं लेती । शुरू में लगभग एक दर्जन दौर की वार्ताएं जरूर हुईं लेकिन बेनतीजा रहीं और फिर हमारे साहब पश्चिमी बंगाल के चुनाव में व्यस्त हो गये । वहां मनमुताबिक परिणाम न आए तो और खफा हो गये किसानों पर । सारा गुस्सा निकला किसानों पर बल्कि ज्यादतियों में इजाफा हुआ । हरियाणा में किसानों पर लाठीचाॅर्ज और आंसू गैस आम बात हो गयी । केस दर्ज होने लग गये और प्रदर्शन बढ़ते गये । दिल्ली की सीमाओं के बारे में सुप्रीम कोर्ट कह रहा है कि दो सप्ताह के अंदर रास्ते खोलने के बारे में सोचा जाए और ज्यादा देर तक रास्ते बंद रखना भी आम जनता की परेशानी का सबब बनता है । दूसरी ओर किसान खालीबाथ लौटने या आंदोलन समाप्त करने के मूड में बिल्कुल नहीं हैं । सरकार कुछ सुनने के मूड में नहीं है तो रास्ते कैसे खुलेंगे? सरकार , किसान नेताओं और सुप्रीम कोर्ट के लिए यह यक्ष प्रश्न के समान है ,, ,, -पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी । Post navigation घटती जोत में फसल विविधिकरण व आधुनिक तकनीक ही आय बढ़ाने का एकमात्र सहारा : काम्बोज हिन्दी साहित्य की समृद्ध परंपरा में जानदार हस्तक्षेप करना फ़िलहाल एक लक्ष्य है: शोभा अक्षरा