रेवाड़ी – विधायक लक्ष्मण यादव ने विधानसभा के मानसून सत्र में क्षेत्र की चिर-परिचित अहीर रेजीमेंट के गठन की मांग को जोरदार ढंग से उठाया। अपनी इस मांग की जमकर पैरवी करने के साथ-साथ इसके समर्थन में दिए गए तर्कों पर पक्ष व विपक्ष सहित पूरे सदन ने इसका समर्थन किया। उन्होंने दोहराया कि रेजीमेंट के गठन को लेकर प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजे, ताकि अहीरवाल की सैन्य परंपरा एवं वीरता को उसका हक दिया जा सके।

लक्ष्मण यादव ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित होने के तत्काल बाद रेवाड़ी में 15 सितंबर 2013 को विशाल पूर्व सैनिक रैली की थी। जिसमें उन्होंने अपने वायदे के अनुरुप प्रधानमंत्री बनते ही वन रैंक-वन पेंशन संबंधी सैनिकों एवं अर्धसैनिक बलों की पुरानी मांग को पूरा किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सदा से ही सैनिकों व पूर्व सैनिकों का सम्मान करते आए हैं तथा आगे भी यूं हीं करते रहेंगे।

यादव ने अपनी मांग के समर्थन में कहा कि उन्हें गर्व है कि वह ऐसे क्षेत्र से आते हैं, जिसे सैनिकों की खान कहा जाता है। अहीरवाल का इतिहास हमारी गौरवमय भारतीय सेना की तरह ही काफी पुराना है। अहीरवाल के राजा राव तुलाराम के नेतृत्व में पांच हजार लोगों ने एक दिन में अपनी कुर्बानियां दी थी। नसीबपुर की माटी आज भी हमारे वीरों के खून से लाल है। 1961 के रेजांगला युद्ध में शहीद होने वाले 118 सैनिकों में से 114 अहीर सैनिकों ने वीर गति को प्राप्त होते हुए चीनी सेना के 1300 सैनिकों को धूल चटा दी। प्रथम विश्व युद्व में अहीरवाल ने 19300 अहीर सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुतियां दी थी। जो आबादी व सेना में भेजे गए सैनिकों के अनुपात में संयुक्त भारत में सबी हिंदू जातियों में प्रथम स्थान पर था। दूसरे विश्व युद्ध में भी अहीरवाल क्षेत्र से 38 हजार अहीरवाल सैनिकों ने अपना पराक्रम दिखाया। आजादी से पूर्व विक्टोरिया क्रॉस एक, जार्ज क्रॉस दो, मिलिट्री क्रॉस तीन, आईओएम 3 तता आईडीएसएम 7 वीरता के पदक जीते। आजादी के बाद वीर अहीरों ने 1 परमवीर चक्र, 4 महावीर चक्र, 30 वीर चक्र, 6 कीर्ति चक्र तथा 37 शौर्य चक्र समेत अनेकों वीरता के पदक हासिल किए हैं।

विधायक ने अपनी मांग के समर्थन में सदन को बताया कि आजादी के बाद 1948 के बडगाम, 1961 के गोवा, 1962 के रेजांगला, 1965 के हाजीपीर, 1967 के नाथू-ला, 1971 के जैसलमेर, 1984 के आपरेशन मेघदूत, 1987 के श्रीलंका, 1999 के टाइगर हिल कारगिल, 2001 संसद भवन व अक्षरधाम हमला तथा 26-11 के मुंबई हमले सहित अनेकों आपरेशनों में अहीर जवानों ने अपनी वीरता के नये आयाम स्थापित किए हैं।

उन्होंने बताया कि अहीर या अहीरवाल रेजीमेंट नहीं होने से अहीरों की भर्ती निम्न स्तर पर पहुंच गई है। यह एक गंभीर विषय है। भारतीय सेना और राज्य सरकार का कर्तव्य है कि इस सैनिक इतिहास, परंपरा व बलिदान की परिपाटी को विलुप्त होने से बचाए। इसलिए प्रदेश सरकार अहीर या अहीरवाल रेजीमेंट की स्थापना के लिए प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजे ताकि चुशुल दिवस 18 नवंबर को अहीर या अहीरवाल रेजीमेंट की स्थापना की जा सके।

error: Content is protected !!