निर्यात किए जाने वाले बासमती में से अकेला प्रदेश 50 प्रतिशत तक का भागीदार हरियाणाचावल की उन्नत और सुरक्षा तकनीकों को लेकर किसान गोष्ठी का आयोजन हिसार : 24 अगस्त – धान की सीधी बिजाई प्रदेश सरकार द्वारा चलाई जा रही योजना ‘मेरा पानी-मेरी विरासत’ को बढ़ावा देने में कारगर साबित हो रही है। साथ ही भूमिगत जलस्तर के संरक्षण में भी मददगार है। दिनों-दिन जल के अंधाधूंध दोहन से भूमिगत जलस्तर घट रहा है जो बहुत ही चिंता का विषय है। ये विचार चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बी.आर. काम्बोज ने व्यक्त किए। वे चावल में आधुनिक उत्पादन और सुरक्षा तकनीकों को लेकर आयोजित किसान गोष्ठी को बतौर मुख्यातिथि संबोधित कर रहे थे। गोष्ठी का आयोजन एचएयू के विस्तार शिक्षा निदेशालय और कृषि एवं किसान कल्याण विभाग की ओर से किया गया था। मुख्यातिथि ने कहा कि धान की सीधी बिजाई से एक ओर जहां पानी की बचत होती है वहीं दूसरी ओर श्रम की समस्या से भी छुटकारा मिलता है। उन्होंने कहा कि प्रदेश चावल का मुख्य उत्पादक राज्य है और कुल निर्यात किए जाने वाले बासमती में से अकेला प्रदेश 50 प्रतिशत तक का भागीदार है। उन्होंने कहा कि धान में समन्वित पोषक तत्व प्रबंधन, खरपतवार प्रबंधन व समन्वित कीट एवं बीमारी प्रबंधन के द्वारा बेहतर उत्पादन हासिल किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि बासमती धान की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए कम से कम रसायनों का प्रयोग करें ताकि इसका निर्यात कर अधिक से अधिक विदेशी मुद्रा हासिल की जा सके। इसके अलावा धान की सीधी बिजाई करके व रसायनों व कीटनाशकों का कम से कम प्रयोग करके खर्चा कम किया जा सकता है जो आमदनी बढ़ाने में भी सहायक होगा। उन्होंने कहा कि धान की बिजाई से पहले मूंग व ढेंचा की हरी खाद का प्रयोग लाभदायक है। यह मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के साथ-साथ अधिक समय तक नमी रखने में भी सहायक होगी और कम पानी की जरूरत पड़ेगी। धान की सीधी बिजाई वाले खेत में शुरूआती दौर में खेत खाली दिखाई देता है जिससे किसानों के मन में शंका पैदा होती है कि उनकी फसल का घनत्व कम हो गया है और फसल का उत्पादन अच्छा नहीं मिल पाएगा। लेकिन पहली सिंचाई देर से देने पर पौधे पहले जड़ों को बढ़ाते हैं और उसके बाद ही ऊपरी भाग में धीरे-धीरे बढ़ोत्तरी होती है। सिंचाई के अगले 20 दिनों में ही खेत भरा-भरा नजर आने लगेगा। एचएयू वैज्ञानिकों की टीमें कर रही किसानों को जागरूक विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. रामनिवास ढांडा ने बताया कि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की टीमें धान वाले क्षेत्र के किसानों को लगातार जागरूक कर रही हैं। साथ ही किसानों को जल संरक्षण व धान की सीधी बिजाई के लिए भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। अनुसंधान निदेशक डॉ. एस.के. सहरावत ने कहा कि वैज्ञानिक निरंतर किसानों की भलाई के लिए आधुनिक तकनीकों को ईजाद करने में जुटे हुए हैं ताकि किसानों को अधिक से अधिक फायदा मिल सके। वैज्ञानिकों अनुसार बिजार्ई के 30 दिन बाद ही खेत में खरपतवार जैसे सांवक, मकड़ा, सांठी, कोंधरा, चौलाई, काचर बेल, कनकुआ, नूनिया, हुलहुल, तकड़ी घास, डीला व पानी घास इत्यादि उग आते हैं। धान की सीधी बिजाई में खरपतवारों द्वारा नुक्सान ही उत्पादन् में कमी का मुख्य कारण है। इनके छोटा होने के कारण किसान इनकी पहचान नहीं कर पाते और बड़े होने पर खरपतवारनाशियों द्वारा इनका नियंत्रण नहीं हो पाता। किसानों को सलाह देते हुए कहा कि बिजाई के तुरंत बाद एक लीटर पेंडी मैथलीन प्रति एकड़ की दर से स्पे्र करने पर खेत शुरू में खरपतवार रहित बना रहता है। बाद में समस्या आती है तो उन पर खरपतवारनाशकों का प्रयोग कर नियंत्रण पा सकते हैं। ध्यान रहे कि स्पे्र छोटी अवस्था में ही करना चाहिए नहीं तो खरपतवारों को नष्ट करना मुश्किल हो जाएगा। अगर खेत में एक से ज्यादा खरपतवारनाशकों का प्रयोग करना हो तो उनके बीच में एक सप्ताह का अंतराल अवश्य रखें और कभी भी दो दवाइयों को एक साथ मिलाकर प्रयोग न करें। कार्यक्रम में कृषि विज्ञान केंद्र के इंचार्ज डॉ. महासिंह ने मुख्यातिथि का स्वागत किया जबकि मंच का संचालन डॉ. विजय कुमार ने किया। गोष्ठी में क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. ओ.पी. चौधरी, एचटीआई के प्रिंसीपल डॉ. जोगेंद्र सिंह, कृषि उपपनिदेशक डॉ. आदित्य दहिया सहित अनेक गांवों के किसानों ने हिस्सा लिया। Post navigation कृषि मौसम विज्ञान विभाग का मौसम पूर्वानुमान….. कान के नीचे और मुर्गी चोर ,,,,