उमेश जोशी

नाथ संप्रदाय के अनुयायियों की भावनाओं और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के फरमान के बीच तुष्टिकरण का रिश्ता स्पष्ट दिखाई दे रहा है। मुद्दे पर गहराई  से विचार किए बिना फरमान जारी किया हुआ लगता है। खट्टर ने हाल में आदेश जारी कर कहा है कि प्रदेश में कोई भी व्यक्ति किसी भी रूप में ‘गोरख-धंधा’ शब्द का इस्तेमाल नहीं करेगा। उनका मत है कि गोरखधंधा नकारात्मक अर्थ में इस्तेमाल होता है इसलिए नाथ संप्रदाय के अनुयायियों की भावनाएँ आहत होती है।  

 ‘गोरख-धंधा’ शब्द विशेष परिस्थितियों की अभिव्यक्ति के लिए सबसे सशक्त माना जाता है। जो बात दर्जनों पंक्तियों या सैकड़ों शब्दों में कहना शायद मुमकिन ना हो, उसे एक शब्द ‘गोरख-धंधा’ से आसानी से अभिव्यक्त किया जा सकता है। मुहावरे, लोकोक्ति और शब्द विशेष (जो अश्लील नहीं हैं) जब जनसाधारण तक पहुँच जाते हैं तब वो सार्वजानिक सम्पत्ति बन जाते हैं; भाषा में विशेष स्थान प्राप्त कर लेते हैं। देवी-देवताओं, संतों, महापुरुषों के चरित्र, व्यवहार और कार्यशैली से प्रभावित होकर जनमानस ने अभिव्यक्ति के लिए नए नए शब्द खोजे हैं।

 किसी व्यक्ति को जब कृष्ण कन्हैया कह कर बुलाया जाता है तो सभी समझते हैं कि यह अभिव्यक्ति कम से कम सकारात्मक तो नहीं है। कृष्ण भक्त भी एतराज कर सकते हैं कि ऐसा कहने से हमारी भावनाओं को ठेस पहुंचती है इसलिए ‘इस अर्थ’ में कृष्ण कन्हैया का प्रयोग ना किया जाए। कोई व्यक्ति मैदान छोड़ देता है तब लोग उसे रणछोड़ दास कहते हैं जो कृष्ण का ही नाम है। रणछोड़ सकारात्मक शब्द तो नहीं है। चूंकि कृष्ण ने रण का मैदान छोड़ा था इसलिए नाम रणछोड़ दास हो गया। रण का मैदान छोड़ कर भागने वाले लोगों के लिए इससे बेहतर अभिव्यक्ति नहीं हो सकती है।

ऐसी ही सशक्त अभिव्यक्ति के कितने ही उदाहरण मिल जाएंगे। संत गोरख नाथ ने भी मानव जाति के लिए अनंत कार्य किए हैं। धार्मिक मामलों के इतिहासकार भी कहते हैं कि मनुष्य के भीतर, अंतस की खोज के लिए गुरु गोरखनाथ ने जितना आविष्कार किया, उतना शायद ही किसी ने किया हो। उन्होंने इतनी विधियाँ दीं कि लोग उलझ गए कि कौन-सी ठीक, कौन-सी गलत, कौन-सी करें, कौन-सी ना करें। यह उलझन हताशा बन गई और गोरख-धंधा शब्द प्रचलन में आ गया। किसी को कोई बात समझ ना आए, उसके लिए वो ही गोरख-धंधा है। यह तो इस्तेमाल करने वाले की अक्ल पर निर्भर करता है कि गोरख-धंधा सही अर्थ में इस्तेमाल कर रहा है या नहीं।

 ‘गोरख-धंधा’ शब्द कोई अश्लील नहीं है, गाली नहीं है, किसी की बपौती नहीं है। फिर प्रतिबंध किसलिए? यह शब्द भी उतना ही पुराना है जितने कि संत गोरखनाथ। संत गोरखनाथ के लिए समाज में पूरा सम्मान है इसलिए यह भी नहीं कह सकते कि गोरख-धंधा शब्द उन्हें अपमानित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। कोई सही अर्थों में इसे इस्तेमाल करना चाहे तो उसे कैसे रोका जा सकता है। वैसे भी जो शब्द देश की मिट्टी में रच बस गए हैं, क्या उनका प्रयोग रोकना मुमकिन है। मनोहर लाल खट्टर अपने आदेश से यह भ्रम पाल सकते हैं कि उनके आदेश से गोरख-धंधा शब्द का प्रयोग रूक गया है। सच्चाई यह है कि  भाषाई प्रयोग सरकारी आदेश से नहीं रूकते हैं। मनोहर लाल खट्टर अपने आदेश के साथ यह भी बता देते तो बेहतर होता कि इस शब्द का विकल्प क्या है?

हरियाणा से पहले उत्तर प्रदेश और राजस्थान में भी इस शब्द पर रोक लगाने की माँग उठ चुकी है। वहाँ के शासक समझ गए थे कि ऐसा प्रतिबंध व्यावहारिक नहीं है इसलिए कोई आदेश जारी नहीं किया गया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ तो खुद ही गोरख नाथ संप्रदाय के अनुयायी है। उन्होंने तो अपने प्रदेश में प्रतिबंध नहीं लगाया। वैसे भी शब्दों का प्रयोग जनमानस की सोच और बौद्धिक स्तर से जुड़ा है; कोई भी सरकार, कितनी भी ताकतवर हो, लोगों की सोच और बौद्धिक स्तर पर पहरा नहीं लगा सकती या आदेशों से नियंत्रित नहीं कर सकती। हरियाणा को छोड़ सारे देश में ‘गोरख-धंधा’ चलेगा; अकेले हरियाणा में रोक से ‘गोरख-धंधा’ खत्म नहीं हो जाएगा फिर खट्टर का आदेश समझ से परे है और जो समझ नहीं आए, आप जानते हैं, उसे क्या कहते हैं।

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