गुडग़ांव।
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डिनर डिप्लोमेसी से क्या दिलों की दूरियाँ कम होंगी!
ऋषि प्रकाश कौशिक
जन आशीर्वाद यात्रा संपन्न हो गई लेकिन सवालों का काफिला अभी भी चल रहा है। हालात की पीठ पर बैठे जन आशीर्वाद यात्रा के पीछे जो सवाल चल रहे थे वो अब भी परिक्रमा कर रहे हैं और जनता का ध्यान खींच रहे हैं। मुख्य सवाल जो खुद बीजेपी नेताओं को परेशान कर रहा है वो यह है कि बीजेपी के सभी नेता खासतौर से केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत खेमे के नेता यात्रा से नदारद क्यों थे। क्या यह यात्रा सिर्फ भूपेंद्र यादव की थी, क्या इस यात्रा का पार्टी से कोई लेना देना नहीं था? यदि यह बीजेपी की जन आशीर्वाद यात्रा थी तो इस यात्रा से राव साहब और उनके समर्थक दूर क्यों रहे?
यूँ तो हर पार्टी में गुटबाजी होती है लेकिन अनुशासन की घुट्टी पिला कर पोषित कार्यकर्ताओं की पार्टी बीजेपी में गुटबाजी की अपेक्षा नहीं की जाती। गुटबाजी कहीं दिखती है तो पार्टी के दरकते अनुशासन पर सवाल खड़े होना लाजिमी है।
ताज्जुब की बात है, हाल में केंद्रीय मंत्री बने भूपेंद्र यादव की जन आशीर्वाद यात्रा में ना राव इंद्रजीत आए और ना ही उनके दरबार में हाजिरी लगाने वाले नेता। राव साहब का ना आना तो समझ आता है कि वे अहीरवाल में अपनी आंखों से किसी अहीर का बढ़ता कद कैसे देख सकते हैं। हैरानी की बात है कि उनके दरबारियों ने भी यात्रा में हाजिरी नहीं लगाई। उन्हें यात्रा में जाने का इशारा ही नहीं मिला होगा; बिना इशारा कैसे जाते! राजनीति में ऐसे अवसरों पर ही समर्थकों की निष्ठा की अग्नि परीक्षा होती है।
भूपेंद्र यादव की जन आशीर्वाद यात्रा तो सफल रही लेकिन बीजेपी की गुटबाजी ढंकने के प्रयास विफल रहे। गुटबाजी की गर्म चर्चायें पूरे प्रदेश में तो थीं ही, दिल्ली दरबार में भी पहुंचीं होंगी। दो केंदीय मंत्रियों का मामला था इसलिए दिल्ली का दखल जरूरी मान कर वहाँ तक बातें पहुंचाई गई होंगी। जाहिर है, वहीं से ही रास्ता निकलना सम्भव है। अगले दिन 17 अगस्त को जो चमत्कार देखने को मिला उससे इस संभावना को बल मिला है कि जन आशीर्वाद यात्रा की गुटबाजी की चर्चा दिल्ली तक पहुँच गई है।
गुटबाजी से घिरी जन आशीर्वाद यात्रा के कुछ ही घंटों बाद इलाके के दो माननीयों राव इंद्रजीत और भूपेंद्र यादव के रिश्तों से शहद टपकने लगा। पूरे प्रदेश में यह चर्चा जंगल की आग की तरह फैल गई कि भूपेंद्र यादव रात का भोजन राव इंद्रजीत के घर पर करेंगे। डिनर डिप्लोमेसी से रिश्ते सुधारने का प्रयास किया जा रहा है। क्या साथ बैठ कर डिनर करने से दिलों की दूरियाँ खत्म हो जाएँगी? क्या दोनों नेता दो दो कदम आगे बढ़ कर अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं से समझौता कर लेंगे। यदि डिनर डिप्लोमेसी सी इतनी ही असरदार है तो सारी गुटबाजी अब तक खत्म हो जानी चाहिए थी।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा था कि किसी के घर भोजन दो ही परिस्थितियों में किया जाता है – प्रेम और मजबूरी। दोनों नेताओं में प्रेम दिख नहीं रहा है। यदि प्रेम होता तो राव साहब अपने समर्थकों के साथ जन आशीर्वाद यात्रा में अवश्य जाते। इस भोजन के पीछे मजबूरी ही हो सकती है। दिल्ली दरबार के आदेश की मजबूरी। दिल्ली से हुक्मनामा आया होगा कि दोनों मिल कर रात्रि भोज करो। राव साहब को समझाया (समझाने का कोई भी तरीका हो सकता है) गया होगा कि भूपेंद्र यादव को खाना खिलाओ और गुटबाजी की चर्चाओं पर विराम लगाओ। राव साहब के स्वभाव की तासीर समझने वाले लोग यह भली तरह जानते हैं कि वे आसानी से पिघलने वाले नहीं है; दिल्ली की आंच से पिघले होंगे!