ऋषि प्रकाश कौशिक 

हरियाणा में बीजेपी के नेता तिरंगा यात्रा के बहाने घर से तो निकले ही हैं, अपना शक्ति प्रदर्शन भी कर रहे हैं। आठ महीने बाद उन्हें घर से बाहर निकलने की स्वच्छंदता मिली है जिससे वो खुशी के मारे सारे क़ायदे कानून भूल गए हैं। वे अपनी ही सरकार के आदेशों का पालन नहीं कर रहे हैं। उनके इस रवैये ऐसा लगता है कि सारे बीजेपी नेता अपनी ही सरकार के खिलाफ बगावत पर उतर आए हैं। हर जिले का उपायुक्त रोजाना अपील जारी करता है कि कोविड-19 के प्रॉटोकोल का पालन किया जाए। उपायुक्त के आदेश का अर्थ है सरकार का आदेश। तिरंगा यात्रा के दौरान एक भी नेता ने सरकारी आदेश का पालन नहीं किया। यह अपनी ही सरकार के ख़िलाफ़ बगावत नहीं है तो और क्या है।      

करीब आठ महीनों से घरों में बंद नेता बेहद बेचैनी से समय गुजार रहे थे। घर से बाहर निकलते ही किसानों का विरोध झेलना पड़ता था इसलिए सब दुबके हुए थे। 

किसी भी नेता के लिए सबसे ज्यादा कष्टदायक स्थिति तब होती है जब वो जनता से कट जाता है। इस हिसाब से सारे नेता जनता से दूर होकर बेहद मानसिक पीड़ा झेल रहे थे। इस दयनीय स्थित से बाहर आने के लिए वे कोई आड़ या बहाना खोज रहे थे। तिरंगा सबसे सुरक्षित आड़ है। किसानों के विरोध का खतरा भी नहीं है इसलिए स्वच्छंदता से निकलने का उनका रास्ता साफ है। कोई विरोध करेगा तो उस पर देशद्रोह का लेबल लगा दिया जाएगा; विरोध नहीं होगा तो स्वछंद घूमेंगे; कोविड-19 का प्रॉटोकोल जाए भाड़ में। 

घरों में बंद नेताओं की राजनीति की चमक फीकी पड़ रही थी। घर में बैठे बैठे घुटनों को जंग लग गया था। तिरंगा यात्रा के बहाने सभी अपने घुटनों की जंग उतारने में जुट गए हैं। साथ ही, उनमें यह होड़ भी लग गई है कि तिरंगा यात्रा में कौन ज्यादा भीड़ जुटाता है। हर नेता खुद को ही आँक रहा है कि घरों में बंद रहने के कारण उनकी लोकप्रियता पहले जितनी ही है या कुछ कम हुई है। भीड़ उनकी लोकप्रियता का पैमाना है। कोविड-19 के प्रॉटोकोल यानी मास्क लगाना और सोशल डिसटेंसिग जैसे नियमों को ठेंगा दिखा कर अपनी लोकप्रियता का परीक्षण कर रहे हैं। 

 एक तरफ आईसीएमआर जनता को आगाह कर रहा है कि कोरोना का खतरा अभी टला नहीं है। यहाँ तक चेतावनी दी जा रही है कि जिन्हें दोनों वैक्सीन लग गए उन्हें भी लापरवाह नहीं होना है; कोविड-19 के प्रॉटोकोल का सख्ती से पालन करना है। यही बात हरियाणा के जिला उपायुक्त हर रोज कह रहे हैं लेकिन बीजेपी नेताओं पर सत्ता का नशा इस कदर चढ़ा हुआ है कि उन्हें आईसीएमआर और अपने जिला उपायुक्तों की चेतावनी भी समझ नहीं आ रही है। कोई नेता कोरोना की चपेट में आ गया तो गुरुग्राम के मेदांता में सरकारी खर्च पर इलाज करवा लेंगे, असली मरण तो जनता का होगा। 

 देश की स्वतंत्रता के इतिहास में 9 अगस्त बेहद महत्त्वपूर्ण है। राज्यपाल इस दिन शहीदों को याद करने के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन करते हैं। इस बार उन्होंने कोविड-19 के प्रॉटोकोल का पालन करते हुए कार्यक्रम रद्द कर दिया। बीजेपी के नेताओं ने राज्यपाल से भी सबक नहीं सीखा। उन्होंने साबित कर दिया है कि बीजेपी के सारे नेता कानून से ऊपर हैं। 

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