-कमलेश भारतीय -पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी जी हां , प्रधानमंत्री जी बहुत दुखी हैं । मानसून सत्र में संसद की कार्यवाही न चलने देने से । कितने कितने करोड़ों रुपये आम जनता के बेकार जाने से । भारतीय जनता पार्टी की संसदीय दल की बैठक में ये व्यथा उजागर की । हम भी बहुत व्यथित हैं । यह कैसी संसद और कैसा सत्र ? न कुछ नया , बस वही पुराना । हंगामे के बीच सत्र का खत्म या स्थगित होते जाना । सत्ता पक्ष का दुखी होना और विपक्ष का खुश होना । कुछ नया नहीं । रिवाइंड कीजिए और देखिए जब आप विपक्ष में थे तब कैसा व्यवहार करते थे ? हिमाचल के नेता जो कांग्रेस राज में संचार मंत्री थे , उनके मामले को उठाने के लिए क्या क्या हंगामे नहीं किये ? आज विपक्ष यदि कृषि कानूनों पर चर्चा करवाने के लिए हर हत्थकंडा अपना रहा है तो दोष किसका है या किसे दिया जाये ? फिर आज दुखी होकर क्या होगा ? क्या आपने बिना चर्चा के कोरोना की आड़ लेकर कृषि कानून पारित नहीं किये ? अब अगर तृण मूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद डेरेक ओ ब्राइन इस तरह बिल पारित किये जाने की तुलना चाट पकौड़ी बनाने से कर गये तो आप दुखी हो गये । इस असंसदीय भाषा से आप बहुत दुखी हैं लेकिन जब पश्चिमी बंगाल की चुनाव रैलियों में देश के प्रधानमंत्री दीदी ओ दीदी के नारे लगा रहे थे तब कौन सी मर्यादा का पालन कर रहे थे आप ? पहले आप अपनी भाषा और मुहावरों को देखिए , फिर सोचिये कि विपक्ष को क्या करना चाहिए क्या नहीं ? एक बहुत प्यारी बात सोशल मीडिया पर पढ़ी है बहुत बार कि यह दुनिया अच्छे लोगों से भरी है और यदि आपको ऐसा नहीं लगता तो आप ही दूसरों के लिए अच्छे बन जाइए । यही निवेदन करना चाहता हूं कि आप खुद अपनी भाषा, मुहावरा और आचरण व्यवहार देखिए फिर दूसरों के व्यवहार व आचरण पर दुख व्यक्त कीजिए । यूपी चुनाव के दौरान शमशान और कब्रिस्तान कहां से आया था ? वह क्या बहुत बड़ा मुद्दा था ? हर उस राज्य को आप उत्तम राज्य बना देने का ख्वाब दिखाते है जहां चुनाव होने वाले होते हैं । सारी नौकरियां , सारे लाभ उसी राज्य के निवासियों को देने की घोषणाएं होती हैं लेकिन चुनाव के बाद वे राज्य भी ठगे गये महसूस करते हैं । अब पंजाब , उत्तराखंड और यूपी में सपनों की बहार आने वाली है । कभी आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल वहां मुफ्त मुफ्त गाते हैं तो कभी दूसरी पार्टियां । चुनाव ने क्या क्या ख्वाब दिखाये और दिखाते हैं और बाद में सब झूठा संसार यानी माया ही माया,, अब देखिए न मायावती बहन जी भी जागी हैं और ब्राहमण की रट लगाये हैं । कितने साल सोयी रहीं ? कुछ भी हो गया बस बना बनाया बयान जारी किया और अज्ञातवास में चली गयीं । जनता के मुद्दों पर लगातार खामोशी बनाये रखी । एक समय प्रधानमंत्री पद की दावेदार की यह खामोशी बहुत अखरने वाली रही । ममता बनर्जी ने दिल्ली के चक्कर लगाने की बात कही है लेकिन इसे शरद पवार कितना पसंद करेंगे ? विपक्ष की एक जुटता की कभी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संगतरे से तुलना की थी कि यह देखने में एक लेकिन इसके अंदर अलग अलग फांकें हैं । हमेशा विपक्ष एकजुट नहीं हो पाता क्योंकि अपने अपने राज्यों के हित इसमें रुकावट के लिए खेद का बोर्ड लगा देते हैं । क्या और कैसे करना है यह विपक्ष को सोचना है पर हमारे प्रधानमंत्री का दुख दूर कीजिए । कोई दुआ कीजिएगा दवा कीजिए या कोई झाड़ फूंक ही लगाइए,,दुआ करो कि प्रधानमंत्री जी का दुख दूर हो जाये ,, आओ यारो दुआ करोमिल के फरियाद करो Post navigation 41 साल बाद ओलम्पिक खेलों में पुरुष हॉकी टीम को कांस्य पदक जीतने पर बधाई : योगराज शर्मा एचएयू में विभिन्न कोर्सों के लिए ऑनलाइन फार्म भरने की तिथि बढ़ाई, अब 11 अगस्त तक कर सकते हैं आवेदन