..फिर वही दिल लाया हूँ

हरियाणा के पूर्व सीएम और इनैलो मुखिया ओमप्रकाश चौटाला इन दिनों पूरी फोर्म में हैं। जेल से आजाद होने के बाद वो पहली दफा चंडीगढ पधारे और अपने आवास पर प्रेस कांफ्रेस की। इस दौरान उनका पत्रकारों में खास क्रेज देखने को मिला। उनकी प्रैस कांफ्रेस में प्रचुर मात्रा में पत्रकार हाजिर थे। चौटाला अपने उसी पुराने रंग में थे, जब वो सत्ता में रहते हुए पत्रकारों पर जी भर के तंज किया करते थे। उनको पल पल नैतिकता का पाठ पढाया करते थे। पत्रकारों के सवालों के उन्होंने अपने खास अंदाज में जवाब दिए। किसी को इग्नोर किया, तो किसी पर टोंट किया, तो किसी को तसल्लीबख्श ज्ञान दिया। अलग अलग पत्रकारों के सवालों के जवाब उन्होंने अपने परंपरागत इस्टाइल में दिए। किसी पत्रकार को कहा कि आप को ये बात शोभा नहीं देती, तो किसी को कहा कि आप अपनी छोटी मानसिकता का त्याग करो। किसी को कहा कि मैंने तो बता दिया कि मेरा दुष्यंत के साथ क्या रिश्ता है,लेकिन आप जो बार बार वही सवाल पूछ रहे हो आप भी बताओ कि आपका दुष्यंत के साथ क्या रिश्ता है? बात है तो कड़वी, लेकिन कह के रहंूगा, के साथ ही उन्होंने एक हरियाणवी कहावत सुनाते हुए, कह दिया कि अभी तक आपको इसका इल्म ही नहीं कि मैं सरकार की नीतियों के हक में हंू या खिलाफ?

किसी सवाल के जवाब पर कहते हैं कि इसका जवाब ना तो आपके पास है और न मेरे पास,इसका फैसला तो हमारी पार्टी करेगी। ऐसा कह कर वो ये दर्शाने की कोशिश करते हैं कि उनके यहां पार्टी का फैसला ही सर्वोपरि है,जबकि ये किसी से छिपा नहीं कि क्षेत्रीय दलों में पार्टी सुप्रीमो की इच्छा ही आमतौर पर पत्थर की लकीर हुआ करती है। 87 बरस की उम्र में भी चौटाला की ऊर्जा, सक्रियता और वाकपटुता देखते ही बनती है। इस उम्र में भी इतनी भागदौड़ करने के राज से पर्दा उठाते हुए कहा कि वो तो दरअसल हरियाणा के नागरिकों को रोजी रोटी, कपड़ा, मकान,स्वास्थ्य और शिक्षा की मूलभूत सुविधाएं देने के स्व.देवीलाल के सपने को साकार करने के लिए ही संघर्षरत हैं। भले ही उनकी पार्टी इनैलो का आज के दिन एक भी विधायक और सांसद नहीं हैं,लेकिन इस से उनके फौलादी इरादों-मंसूबों पर जरा भी आंच नहीं आई है। वो देश भर में भाजपा विरोधी नेताओं से मुलाकात कर सरकार के खिलाफ तीसरे मोर्चे का गठन करने की पुरजोर कोशिश करेंगे।

एक अच्छे मेजबान की तरह चौटाला ने पत्रकारों के लिए घर के खाने का प्रबंध किया, जिसमें उन्होंने अन्य लजीज पकवानों के अलावा कढी और तौरी की सब्जी खासतौर पर बनवाई। उम्र के इस पड़ाव पर भले ही वो पुराने दिनों की तरह एक एक पत्रकार के पास खाने की टेबल जाकर न बतिया पाएं हों,लेकिन उनका जोश और जज्बा ठाठें मार रहा है। चलने फिरने के लिए उनको अब कभी कभी व्हील चेयर की जरूरत पड़ने लगी है,लेकिन उनकी यादाश्श्त पूरी तरह दुरूस्त है और मिजाज कड़क है। एक पत्रकार ने उनसे शिकवा करते हुए कहा कि चौधरी साहब, आप तो सवाल पूछने मात्र से मुझ से नाराज हो गए तो उन्होंने अपनी कातिल मुस्कान बिखेरते हुए कहा कि आप को तो पता ही है कि मैं किसी से नाराज नहीं हुआ करता। बढती-चढती उम्र के साथ वो कुछ कुछ और जवान से होते जा रहे है। उनको लगता है कि ऐलनाबाद उपचुनाव में उनकी पार्टी का उम्मीदवार बहुमत से जीतेगा और इसमें सरकार की जमानत जब्त होगी। उनको उम्मीद है कि इसी उपचुनाव से फिर से इनैलो के अच्छे दिन वापस आने की शुरूआत होगी।

चौटाला अब पब्लिक को ये बताने के फेर में हैं कि उम्र के इस पड़ाव पर वो तो- तेरा तुझको अर्पण-क्या लागे मेरा, के मूलमंत्र के साथ जीवन जी रहे हैं। उनका तो एक सूत्री कार्यक्रम जनता के कष्टों का निवारण करना मात्र है। अब पता नहीं उनकी ये मनोहारी चाहत अब पूरी हो पाएगी के नहीं? कहीं उनकी ये सारी भागदौड़ व्यर्थ तो नहीं चली जाएगी? बहरहाल भविष्य में चाहे जो भी हो,चौटाला के अरमान पूरे हों या ना हों,लेकिन प्रतिकूल परिस्थितियों में भी वो अपने दृढ इरादों के बलबूते पर फिर से राजपाठ लाने के ख्वाब संजो रहे हैं। शारीरिक विषमताओं के बावजूद खुद को अलर्ट और फिट रखे हुए हैं। मेहनत करने में वो आजकल के युवा नेताओं पर भारी पड़ते हैं। उनका ये जज्बा सबके लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं। हम उनके उन्नत स्वास्थ्य की कामना करते हैं। इनैलो की हालात पर इतना ही कहा जा सकता है:

जरा सी बात पर बरसों के याराने गए
लेकिन इतना तो हुआ कुछ लोग पहचाने गए
मैं इसे शोहरत कहंू या अपनी रूसवाई कहंू
मुझ से पहले उस गली में मेरे अफसाने गए
अब भी उन यादों की खुशबू जहन में महफूज है
बारहा हम जिन से गुलजारों को महकाने गए

बारिश और डीसी

बारिश का मौसम है। आए दिन खबरें आ रही हैं कि यहां बारिश का पानी घुसा, वहां घुसा। कई जिलों के डीसी की फोटू छप रही है कि वो किस तरह से इस संकट से पब्लिक को उबारने के लिए लगे हुए हैं। इस सबके बीच खबरें ये भी आ रही हैं कि भाजपा विधायकों के घरों में ये निगौड़ा बारिश का पानी जा घुसा। इस से ये भी ना हुआ कि घुसना ही था तो कम से कम किसी विपक्ष के विधायक के यहां ही जा घुसता। कम से कम सरकार के विकास की यंू पोल तो न खुलती।

अब बारिश जो कर रही है, कर रही है, उस पर तो किसी जोर नही,पर जो ये पत्रकार कर रहे हैं, वो क्या उचित है? फोटो छाप देते हैं कि फलां डीसी का घर पानी में डूबा,फलां डीसी का आफिस पानी में डूबा। ये सही नहीं है। बारिश की आड़ में यंू शिकार करना ठीक नहीं है। किसी दिन राष्ट्रद्रोह का मुकदमा होगा क्या तभी चुप बैठोगे? बारिश भला कभी ये देखती है कि ये डीसी का घर है, इसलिए यहां नहीं बरसना। अब ये कहना-लिखना कितना ठीक है कि जो डीसी अपना घर और आफिस ही बारिश से नहीं बचा पाए वो पब्लिक को बारिश से कैसे बचाएंगे? आईएएस को लेकर पब्लिक कैसे कैसे भाव मन में संजोए होती है? आईएएस की परीक्षा पास कर ली तो ये समझिए कि खुदा हो गए।

अब दूसरा पहलू ये है कि इन शहरों में कितने ही डीसी,कैसे कैसे डीसी,विभिन्न प्रकार के डीसी, एक से बढ कर उस्ताद-पहुंचे हुए डीसी,विभिन्न स्थानों से पढे-ट्रेनिंग लेकर डीसी आए होंगे,लेकिन ये माई के लाल अपने घर-आफिस की समस्या का ही समाधान नहीं कर पाए। अब आप खुद ही सोचिए कि ये काहे के डीसी? ये तो बस नाम नाम के डीसी। ये तो बस फोटू खिंचवाने के डीसी। ये तो हैं थोथे प्रचार के भूखे डीसी। अब ज्यादा क्या ही कहें? इस हालात पर कहा जा सकता है:

आईना होने का सदा ही नुकसान उठाया हमने
मिट्टी होते तो किसी भी शक्ल में ढल सकते थे

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