कोरोना के सबक

हरियाणा के पूर्व सीएम और विपक्ष के नेता भूपेंद्र हुड्डा ने डाक्टरों की सलाह पर घर से बाहर निकलना इन दिनों काफी कम कर रखा है। कोरोना की चपेट में आने के बाद वो दिल्ली में अपने आवास पर ही स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं। उनके पास मिलने वालों का तांता लगा रहता है। इसी दौरान उनसे मिलने आए उनके एक परिचित ने उनको अपने नवविहाहित पुत्र और पुत्रवधू को आशीर्वाद देने के लिए अपने घर पर निमंत्रित किया। उन परिचति ने हुड्डा को बताया कि कोरोना के कारण सिर्फ पांच लोग ही बेटे की बारात में गए और रिश्तेदारों को भी वो शादी में नहीं बुला सके। इस पर हुड्डा ने कहा कि आप ने तो तो कोरोना के कारण कम लोगों को शादी में बुलाया,लेकिन अब समय आ गया है कि जब हमें शादी-ब्याह में कम से कम खर्चा करना चाहि। कम से कम मेहमानों को बुलाना चाहिए। खाने की बर्बादी रोकने की जरूरत है। हुड्डा ने बताया कि उनके स्व.पिता रणबीर सिंह गांधीवादी विचारधारा के व्यक्ति थे। सादा जीवन-उच्च विचार, के मंत्र का अनुकरण करते थे। हुड्डा समेत उनके अन्य चारों भाईयों की शादी में भी ज्यादा बाराती नहीं गए थे। अगर कभी किसी भाई की शादी में 25 से ज्यादा बाराती होने लगते तो झट से हमारे बाबू जी कह देते कि फिर तुम ही चले जाओ,मैं शादी में नहीं जाऊंगा। हुडडा कहते हैं कि कोरोना ने हमें बताया और सिखाया है कि जीवन में क्या आवश्यक है और क्या अनावश्यक है। ऐसे में सबका ये दायित्व है कि शोशेबाजी, दिखावेबाजी, नाटकबाजी,पाखंडबाजी और चोचलेबाजी से दूर रहें।

फिर वही कहानी

रिवाड़ी जेल के कर्मठ जेल अधीक्षक को हरियाण सरकार ने सस्पैंड कर दिया है। उप जेल अधीक्षक को भी सस्पैंड कर दिया गया है। ऐसा कहा जाता है कि रिवाड़ी जेल से 12 कैदियों की फरारी के मामले में इन दोनों को सस्पैंड किया गया है। इन दोनों का गजब सर्विस रिकार्ड रहा है। इनका ऐसा समृद्ध इतिहास रहा है कि वो इस तरह की घटनाओं-दुर्घटनाओं के आदी रहे हैं। ये दोनों ही अतीत में अपनी विभिन्न पोस्टिंग के दौरान अलग अलग मामलों में अच्छी खासी शोहरत बटोर चुके हैं। पहले तगड़ा सा कांड कर जाना, फिर इसके एवज में अच्छी पोस्टिंग से दूर हो जाना और फिर जुगाड़ कर अच्छी पोस्टिंग पा जाना, इन वीर-शूरवीरों के जीवन का अभिन्न हिस्सा रहा है। इनके जानने वालों का दावा है कि इनको लंबे समय तक निलंबित रखना बहुत विकट कार्य है। लिहाजा, ये दोनों जल्द ही पोस्टिंग पाकर किसी जेल में जनसेवा को आतुर नजर आ सकते हैं।

..जन्नत इक और है, जो मर्द के पहलू में नहीं

टोकियो ओलंपिक से अच्छी खबर आई कि वेटलिफ्टर मीराबाई चानू ने सिल्वर मैडल जीत लिया है। देश को पदक दिलाने में खिलाड़ियों, खास तौर पर महिला खिलाड़ियों ने अतीत में भी निराश नहीं किया है। इस से पहले कर्णम मल्लेशवरी, मैरीकाम,सानिया नेहवाल,पीवी सिंधु,साक्षी मलिक आदि ओलंपिक खेलों में भारत की झोली में पदक डाल चुकी हैं। प्रख्यात शायर कैफी आजमी की चर्चित नज्म औरत की याद इस मौके पर ताजा हो गई है जिसमें उन्होंने औरत की शक्ति-जज्बे को कुछ यंू बयां किया है…

जीस्त (जीवन) के आहनी (लोहा) सांचे में भी ढलना है तुझे
उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे
जिंदगी जोहद (संघर्ष) में है, सब्र के काबू में नहीं
नब्ज-ए-हस्ती का लहू कांपते आंसू में नहीं
उड़ने खुलने में है निकहत (खुशबू) खम-ए-गेसू (बालों का घुमाव) में नहीं
जन्नत इक और है, जो मर्द के पहलू में नहीं
उस की आजाद रविश (रंग-ढंग ) पर भी मचलना है तुझे
उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे
गोशे- गोशे (कोने कोने) में सुलगती है चिता तेरे लिए
फर्ज का भेस बदलती है कजा (मौत) तेरे लिए
कहर है तेरी इक नर्म अदा तेरे लिए
जहर ही जहर है, दुनिया की हवा तेरे लिए
रूत बदल डाल, अगर फूलना फलना है तुझे
उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे
कद्र अब तक तेरी तारीख (इतिहास ) ने जानी ही नहीं
तुझ में शोले भी हैं बस अश्क-फिशानी (आंसू बहाना) ही नहीं
तू हकीकत भी है, दिलचस्प कहानी ही नहीं
तेरी हस्ती भी है, इक चीज जवानी ही नहीं
अपनी तारीख का उनवान (शीर्षक) बदलना है तुझे
उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे
तोड कर रस्म का बुत बंद-ए-कदामात (प्राचीनता के बंधन) से निकल
जोश-ए-इशरत से निकल वहम-ए-नजाकत से निकल
नफ्स( इच्छा )के खींचे हुए हल्का-ए-अज्मत (महानता का घेरा) से निकल
कैद बन जाए मोहब्बत, तो मोहब्बत से निकल
राह की खार (कांटा) ही क्या, गुल (फूल) भी कुचलना है तुझे
उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे

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