·         संसद के बाहर विजय चौक पर किसानों की आवाज़ उठाने के बीच में रोकने पर गहरी नाराजगी जताते हुए सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने इसे असंवैधानिक व बतौर सांसद उनके विशेषाधिकार का हनन बताया

·         सरकार बता क्या वो देश को पुलिस स्टेट की ओर ले जाना चाहती है?

·         सरकार कह रही कि वो किसानों से बात करने को तैयार है, लेकिन किसानों की बात मानने को तैयार नहीं

·         किसानों के जले पर नमक छिड़कने का काम कर रही सरकार खुले दिल से किसानों से बात करे और उनकी मांगों को माने

·         किसान के मुद्दे पर चर्चा के लिये जब तक सरकार से सहमति नहीं मिलेगी, तब तक संसद में और संसद के बाहर लड़ाई लड़ते रहेंगे

चंडीगढ़, 22 जुलाई। राज्य सभा सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने आज लगातार तीसरे दिन भी कांग्रेस पार्टी और विपक्ष की तरफ से देश के किसानों के मुद्दे पर अविलम्ब चर्चा के लिये काम रोको प्रस्ताव दिया, जिसे पुनः राज्य सभा सभापति ने अस्वीकार कर दिया और सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी। इसके बाद सांसद दीपेन्द्र हुड्डा संसद के बाहर आये और मीडिया के सामने अपनी बात कहने लगे, जिस पर पुलिस ने बीच में ही रोक-टोक शुरू कर दी। इस पर सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने गहरी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि ये कैसी सरकार है जो किसानों की आवाज़़ न संसद में उठाने दे रही न सडक पर। दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि ये बहुत गंभीर विषय है। हम भारत के संविधान से कायम संसद के सदस्य हैं। उस रूप में हमें भारत देश के हर नागरिक, जिसमें भारत के किसान भी शामिल हैं, की आवाज़ संसद के अंदर और संसद के बाहर भी उठाने का अधिकार है। लेकिन क्या सरकार पुलिस भेजकर हमसे ये पूछेगी कि हम किसानों की आवाज़ क्यों उठा रहे हैं? सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने इसे नागरिक अधिकारों के साथ ही बतौर सांसद विशेषाधिकार का हनन बताते हुए सरकार से सवाल किया कि क्या सरकार देश को पुलिस स्टेट की ओर ले जाना चाहती है? उन्होंने कहा सरकार चाहे जितनी भी पुलिस लगा ले, हम किसानों की आवाज़ दबने नहीं देंगे, हम इस लड़ाई को लड़ते रहेंगे।

भारत के कृषि मंत्री के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए सांसद दीपेन्द्र ने कहा कि सरकार पहले किसानों की मांगों को खारिज कर रही है और फिर जले पर नमक छिड़कते हुए बातचीत करने की बात कह रही है। दीपेन्द्र हुड्डा ने मांग करी कि सरकार खुले दिल से किसानों से बात करे और उनकी मांगों को माने। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि सरकार को जो बात सुननी चाहिए वो तो नहीं सुन रही और जो बात नहीं सुननी चाहिए वो सुनने में पूरा समय लगा रही है। दुर्भाग्य की बात है कि पिछले 8 महीनों में 400 से अधिक किसानों की कुर्बानी हो चुकी है। टीकरी और सिंघु बॉर्डर से एक-एक करके किसानों के शव हरियाणा, पंजाब व पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गाँवों में वापिस लौट चुके हैं, उसके बाद भी सरकार में इतनी सी भी संवेदना और सहानुभूति नहीं है कि खुले दिल से किसान से बात भी कर ले। दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि किसान के मुद्दे पर चर्चा के लिये जब तक सरकार से सहमति नहीं मिलेगी, तब तक संसद में और संसद के बाहर भी किसानों की आवाज़ पुरजोर तरीके से उठाई जायेगी।

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